Geeta Saar: गीता को हिन्दू धर्म में बहुत खास स्थान दिया गया है। गीता अपने अंदर भगवान कृष्ण के उपदेशों को समेटे हुए है। गीता की रचना संस्कृत भाषा में की गई है, सामान्य व्यक्ति भी गीता को आसानी से पढ़ सकता है। गीता में चार योगों के बारे विस्तार से बताया हुआ है, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग और जन योग।
गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता हैं, जो लोग वेदों को ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ है, वे गीता को पढ़कर भी ज्ञान की प्राप्ति कर सकते है। गीता न सिर्फ जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के अनंत रूप से हमें रुबरु कराती है। इस संसारिक दुनिया में दुख, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या आदि से पीड़ित आत्माओं को गीता सत्य और आध्यात्म का मार्ग दिखाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाती है।
गीता में लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नहीं है, इसके उपदेश तो सारे संसार के लिए है जिसमें आध्यात्म और ईश्वर के बीच गहरे संबंध के बारे में विस्तार से लिखा गया है। गीता में धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे में उपदेश दिया गया है।
आज से हजारों साल पहले महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अपने ही भाईयों के विरुद्ध लड़ने के विचार से कांपने लगे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह संसार एक बहुत बड़ी युद्ध भूमि है, असली कुरुक्षेत्र तो तुम्हारे अंदर है। अज्ञानता या अविद्या धृतराष्ट्र है, और हर एक आत्मा अर्जुन है। और तुम्हारे अंतरात्मा में श्रीकृष्ण का निवास है, जो इस रथ रुपी शरीर के सारथी है। इन्द्रियां इस रथ के घोड़े हैं। अहंकार, लोभ, द्वेष ही मनुष्य के शत्रु हैं।
गीता हमें जीवन के शत्रुओं से लड़ना सिखाती है, और ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने में भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती है। गीता में कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है। अहंकार, ईर्ष्या, लोभ आदि को त्याग कर मानवता को अपनाना ही गीता के उपदेशों का पालन करना है।
गीता सिर्फ एक पुस्तक नहीं है, यह तो जीवन-मृत्यु के दुर्लभ सत्य को अपने में समेटे हुए है। भगवान कृष्ण ने एक सच्चे मित्र और गुरु की तरह अर्जुन का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि गीता का महान उपदेश भी दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि इस संसार में हर मनुष्य के जन्म का कोई न कोई उद्देश्य होता है। मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नहीं जा सकता। जो जन्म लेगा उसकी मृत्यु भी निश्चित है।
जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्रों को धारण करते है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर के नष्ट होने पर नए शरीर को धारण करती है। जिस मनुष्य ने गीता के सार को अपने जीवन मे अपना लिया उसे ईश्वर की कृपा पाने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
भगवद्गीता 700 श्लोकों का अद्भुत संवाद है, जो 18 अध्यायों में विभाजित हैं। ये श्लोक महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा हैं। इन 700 श्लोकों को अलग-अलग वक्ताओं द्वारा कहा गया है: भगवान कृष्ण: 574 श्लोक अर्जुन: 84 श्लोक संजय: 41 श्लोक धृतराष्ट्र: 1 श्लो, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन, कर्तव्य, धर्म, भक्ति और मोक्ष के बारे में विस्तृत ज्ञान देते हैं। यह सिर्फ धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि जीवन का “User Manual” है — सरल, स्पष्ट और पूरी तरह व्यावहारिक।
गीता का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
महाभारत युद्ध के समय, जब अर्जुन अपने ही सगे संबंधियों से युद्ध करने की स्थिति में टूट रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया। यह संवाद कुरुक्षेत्र की रणभूमि में हुआ, लेकिन इसका संदेश हर मानव के लिए है।
गीता का हिन्दू धर्म में स्थान
हिंदू धर्म में गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना गया है। सामान्य व्यक्ति वेदों को न भी समझ पाए, तो गीता उसे वही ज्ञान सरल भाषा में दे देती है।
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गीता का सार हमें बताता है कि जीवन में सबसे बड़ा युद्ध बाहरी दुनिया का नहीं, बल्कि अपने भीतर के अज्ञान, अहंकार और लोभ से लड़ने का है।
गीता क्यों पढ़नी चाहिए?
सोच स्पष्ट होती है
तनाव कम होता है
रिश्ते सुधरते हैं
निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है
आध्यात्मिक विकास होता है
गीता का सरल भाषा में सार
आत्मा अमर है
मनुष्य का कर्तव्य कर्म करना है
फल की इच्छा से मुक्त रहना चाहिए
ईश्वर सदैव साथ हैं
मृत्यु सत्य है, डरना नहीं चाहिए
कर्म योग – निःस्वार्थ कर्म करने का मार्ग
कर्म योग बताता है— “कर्म करो, पर फल की चिंता मत करो।” कर्मयोगी वही है जो ईमानदारी से काम करे और परिणाम ईश्वर पर छोड़ दे।
भक्ति योग – ईश्वर से प्रेम और समर्पण
राज योग – मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण
ध्यान, शांति और एकाग्रता के माध्यम से आत्मा तक पहुँचने का मार्ग।
ज्ञान योग – आत्मा और ब्रह्म का सत्य
ज्ञान योग हमें बताता है कि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अमर और अजर है।
कुरुक्षेत्र का वास्तविक अर्थ "कुरुक्षेत्र सिर्फ युद्धभूमि नहीं है। असली कुरुक्षेत्र मनुष्य के अंदर है — जहाँ वह हर दिन लोभ, ईर्ष्या, क्रोध, मोह से लड़ता है।"
जीवन के शत्रु
अहंकार
लोभ
द्वेष
क्रोध
ईर्ष्या
भगवान कृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति इनसे मुक्त हो जाता है, वह शांत और सफल जीवन जीता है।
कर्तव्य का महत्व
श्रीकृष्ण कहते हैं— “मनुष्य का धर्म है उसका कर्तव्य।” जिसने कर्तव्य को समझ लिया, उसने जीवन को समझ लिया।
गीता में आत्मा और शरीर का सिद्धांत
जीवन-मृत्यु का सत्य: आत्मा न कभी जन्म लेती है न कभी मरती है। वह केवल शरीर बदलती है — जैसे मनुष्य पुराने कपड़े त्याग कर नए कपड़े पहनता है।
आधुनिक जीवन में गीता की उपयोगिता
तनाव घटाती है
रिश्तों में सुधार करती है
नेतृत्व कौशल बढ़ाती है
चुनौतियों को अवसर में बदलने में मदद करती है
आत्मविश्वास बढ़ाती है
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