इंसान का व्यवहार और कार्य, कुंडली के शुभ और अशुभ योगों से प्रभावित होता रहता है। जहाँ शुभ योग, अच्छे फल प्रदान करते हैं वहीँ अशुभ योग पीड़ादायक साबित होते हैं। अगर समय से कुंडली के अशुभ योगों को पहचान लिया जाए और सावधानियां बरती जायें तो पीड़ा को कुछ कम भी किया जा सकता है। अशुभ योग में एक नाम ‘विष योग’ आता है।
आईये पढ़ते हैं क्या होता है विष योग और इसकी पीड़ा को कैसे कम किया जा सकता है-
व्यक्ति की कुण्डली में विष योग का निर्माण ‘शनि और चन्द्रमा’ के कारण बनता है। शनि और चन्द्र की जब युति( दो कारकों का जुड़ा होना) होती है तब विष योग का निर्माण होता है।
आपकी कुंडली में विषयोग है या नहीं ? एस्ट्रोयोगी पर इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से गाइडेंस लें।
लग्न में अगर चन्द्रमा है और चन्द्रमा पर शनि की 3, 7 अथवा 10 वे घर से दृष्टि होने पर भी इस योग का निर्माण होता है।
कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का रहे अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दुसरे को देख रहे हो तो तब भी विष योग की स्थिति बन जाती है।
यदि कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि (मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक) लग्न में हो तब भी विष योग की स्थिति बन जाती है।
यह योग मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, आलस और कर्ज जैसे अशुभ योग उत्पन्न करता है तथा इस योग से जातक (व्यक्ति) नकारात्मक सोच से घिरने लगता है और उसके बने बनाए कार्य भी काम बिगड़ने लगते हैं।
यदि आप अपनी कुंडली किसी अच्छे और विद्यवान ज्योतिष को दिखाते हैं तो वह कुंडली का विश्लेषण कर, आपको विष योग बनने के समय को बता सकता है।
कुंडली में बने विषयोग का प्रभाव कैसे होगा कम? जानिए भारत के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषाचार्यों से
विष योग की पीड़ा को कम करने के लिए महादेव शिव की आराधना व उपासना शुभ रहती है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का नित्य रोज (सुबह-शाम) कम से कम 108 बार करना चाहिए।
शिव भगवान के ‘महा म्रंत्युन्जय मन्त्र’ का जाप, प्रतिदिन (5 माला जाप) करने से भी पीड़ा कम हो जाती है।
राम भक्त, हनुमान जी की पूजा, पूरे नियम के साथ करना भी इस योग में शुभ बताया गया है।
शनिवार को शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने से भी पीड़ा कम हो जाती है।