ओम जय जगदीश हरे घरों से लेकर मंदिरों तक सुबह-शाम गायी जाने वाली आरती, एक आरती जिसे गाने व सुनने वाले अपने आप को धन्य समझते हैं। एक आरती जिसके हर शब्द से आस्था का असीम व गहरा सागर हृद्य में उमड़ आता है। एक आरती जिसे गाकर व सुनकर दिल को तसल्ली मिलती है। एक उम्मीद जगती है कि प्रभु सबके संकटों को दूर कर लेंगें। एक ऐसी आरती जिसमें जीवन का हर नाता, हर कष्ट परमात्मा को समर्पित है। ओम जय जगदीश हरे यह सिर्फ एक आरती नहीं बल्कि प्रभु की महिमा का गान करने वाली पवित्र माला है जिसका हर शब्द एक मोती के समान पिरोया हुआ है। बहुत कम लोग जानते हैं कि शब्द रुपी मोतियों को एक माला के रुप में किसने पिरोया अर्थात इस आरती की रचना किसने की। तो आइए आपको बताते हैं इस आरती के रचयिता के बारे में।
ओम जय जगदीश हरे के रचयिता थे श्रद्धा राम फिल्लौरी। इनका जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब प्रांत में जालंधर के कस्बे फिल्लौर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता जयदयालु पेशे से ज्योतिषाचार्य थे। इनके जन्म पर ही उन्होंनें बालक के प्रतिभावान व प्रसिद्ध होने की भविष्यवाणी की थी जो कालातंर में सच भी साबित हुई। मात्र सात साल की उम्र में उन्होंने गुरुमुखी सीख ली थी। इसके बाद इन्होंने हिंदी, संस्कृत, पर्शियन, ज्योतिष शास्त्र व संगीत का ज्ञान लिया।
श्रद्धा राम फिल्लौरी सनातन धर्म के एक अच्छे मिशनरी व समाज सुधारक तो थे ही साथ ही हिंदी व पंजाबी साहित्य में गद्य साहित्य की नई विधाओं का चलन करने वालों में भी उनका नाम लिया जाता है। हिंदी साहित्य के कुछ विद्वान तो इनके उपन्यास भाग्यवती को हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं। फिल्लौरी अपनी रचनाओं सत्य धर्म मुक्तावली एवं शतोपदेश से तुलसी व सुर की परंपरा के भक्तकवि के रुप में स्थापित हो गए थे। गुरुमुखी में सिक्खां दे राज दी विथिया एवं पंजाबी बातचीत दो गद्यात्मक रचनाएं उन्होंने लिखी जिस कारण उन्हें आधुनिक पंजाबी गद्य जनक कहा जाता है।
हिंदी साहित्य के जाने माने आलोचक रामचंद्र शुक्ल ने उनके बारे में लिखा है, ‘‘उनकी भाषा प्रभावशाली एवं भाषण सम्मोहक होती थी। वे एक सच्चे हिंदी प्रेमी एवं अपने समय के प्रभावी लेखक थे।’’
हिंदी व पंजाबी साहित्य और हिंदू समाज को अपनी रचनाएं सौंपकर 24 जून 1881 को लाहौर में श्रद्धा राम फिल्लौरी हम से विदा ले गए।