Maa Siddhidatri: नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा का अंतिम और नवां स्वरूप हैं। मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं, इसलिए इन्हें 'सिद्धिदात्री' कहा जाता है। इनके आशीर्वाद से भक्तों को आठ प्रमुख सिद्धियां प्राप्त होती हैं, जिससे जीवन में सफलता और समृद्धि आती है। भगवान शिव ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है, और यह कमल के फूल पर विराजमान होती हैं। इनकी पूजा से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। वह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह अंतिम देवी हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं। देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका स्वरुप मां सरस्वती का भी स्वरुप माना जाता है।
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दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। यह नौ दुर्गा का आखरी दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है।
सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर सिद्धिदात्री माँ की तस्वीर या मूर्ति रख इनकी आरती और हवन किया जाता है।
हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए।
बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें।
भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए।
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वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
माता सिद्धिदात्री की व्रत कथा
माता सिद्धिदात्री देवी दुर्गा के नवें रूप के रूप में प्रसिद्ध हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने माता पार्वती को अपने हृदय में बसा लिया, तब देवी ने अपनी शक्ति से सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तपस्या की। मां सिद्धिदात्री ने शिव को दर्शन देकर उन्हें सभी सिद्धियों का वरदान दिया। इस प्रकार, माता सिद्धिदात्री का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला है।
माता सिद्धिदात्री की उपासना से भक्तों को आत्मज्ञान, सुख-समृद्धि और विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वे कमल का फूल, वर मुद्रा, गदा और शंख धारण करती हैं। मां का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
नवरात्रि के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ इनकी आराधना करते हैं। उनकी कृपा से सभी बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में नई दिशा मिलती है। माता सिद्धिदात्री का आशीर्वाद पाने के लिए सच्चे मन से पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
माता के रुप:👉 माँ शैलपुत्री | माँ ब्रह्मचारिणी | माता चंद्रघंटा | कूष्माण्डा माता | माता कात्यायनी | माता शैलपुत्री | माता महागौरी | माता सिद्धिदात्री