होली, इस त्यौहार का नाम सुनते ही अनेक रंग हमारी आंखों के सामने फैलने लगते हैं। हम खुदको भी विभिन्न रंगों में पुता हुआ महसूस करते हैं। लेकिन इस रंगीली होली को तो असल में धुलंडी कहा जाता है। होली तो असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है।
यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है। क्योंकि इसी दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे मारने के लिये छल का सहारा लेने वाली होलीका खुद जल बैठी। तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। कई स्थानों पर इस त्योहार को छोटी होली भी कहा जाता है। इस साल होलिका दहन 24 मार्च 2024 को किया जायेगा। आइये जानते हैं क्या है होली की पूजा विधि? कैसे बनाते हैं होली? कब करें होली का दहन?
होलिका दहन से पहले होली बनाई जाती है इसकी प्रक्रिया एक महीने पहले ही माघ पूर्णिमा के दिन शुरु हो जाती है। इस दिन गुलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है, इसे होली का डंडा गाड़ना भी कहते हैं। इसके बाद कंटीली झाड़ियां या लकड़ियां इसके इर्द गिर्द इकट्ठा की जाती हैं। घनी आबादी वाले गांवों में तो मोहल्ले के अनुसार अलग-अलग होलियां भी बनाई जाती हैं। उनमें यह भी प्रतिस्पर्धा होती है कि किसकी होली ज्यादा बड़ी होगी। हालांकि वर्तमान में इस चलन में थोड़ी कमी आयी है इसका कारण इस काम को करने वाले बच्चे, युवाओं की अन्य चीजों में बढ़ती व्यस्तताएं भी हैं।
फिर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन गांव की महिलाएं, लड़कियां होली का पूजन करती हैं। महिलाएं और लड़कियां भी सात दिन पहले से गाय के गोबर से ढाल, बिड़कले आदि बनाती हैं, गोबर से ही अन्य आकार के खिलौने भी बनाए जाते हैं फिर इनकी मालाएं बनाकर पूजा के बाद इन्हें होली में डालती हैं। इस तरह होलिका दहन के लिये तैयार होती है। होलिका दहन के दौरान जो डंडा पहले गड़ा था उसे जलती होली से बाहर निकालकर तालाब आदि में डाला जाता है इस तरह इसे प्रह्लाद का रुप मानकर उसकी रक्षा की जाती है। निकालने वाले को पुरस्कृत भी किया जाता है। लेकिन जोखिम होने से यह चलन भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो तो ताजा जल भी लिया जा सकता है, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि।
पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है।
होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं।
जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं।
इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है।
इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है।
होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है।
इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है।
पंचोपचार विधि से होली का पूजन कर जल से अर्घ्य दिया जाता है।
होलिका दहन के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, सतनाज, चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है।
सतनाज में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, चावल जौ और मसूर मिश्रित करके इसकी आहुति दी जाती है।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन (रंग वाली होली के दिन) प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से आयु की वृ्द्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
हिन्दू धर्मग्रंथों एवं रीतियों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना बताया है। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ रहा हो तो भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। धर्मसिंधु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है।
शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिये भी अनिष्टकारी होता है। विशेष परिस्थितियों में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन संभव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।
होलिका दहन से आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को नहीं किया जाता ना ही कोई धार्मिक संस्कार किया जाता है। यहां तक कि अंतिम संस्कार के लिये भी शांति पूजन करना आवश्यक होता है। 17 मार्च 2024 से होलाष्टक शुरु होगा।
होलिका दहन तिथि- 24 मार्च 2024
होलिका दहन मुहूर्त- रात्रि 11:13 (24 मार्च) से मध्य रात्रि 12:26 (25 मार्च)
अवधि- 01 घण्टा 14 मिनट्स
भद्रा पूंछ- सायं 06:33 से 07:53 तक (24 मार्च)
भद्रा मुख- सायं 07:53 से 10:06 तक (24 मार्च)
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 24 मार्च 2024 को सुबह 09:54 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 25 मार्च 2024 को दोपहर 12:29 बजे तक
होलिका दहन के दिन का पंचांग मुहूर्त
होलिका दहन के दिन का चौघड़िया मुहूर्त
रंगवाली होली- 25 मार्च 2024
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