होली के पर्व का जिक्र आते ही मन रंगों से खेलने लगता है और प्रेम के इस पर्व में हर कोई राधा व कृष्ण हो जाना चाहता है। आप सोच रहे होगे कि राधा व कृष्ण का होली से क्या नाता है तो आइये जानते हैं। होली और राधा-कृष्ण का क्या संबंध है।
भगवान विष्णु ने जितने भी अवतार धारण किये हैं चित्रों के माध्यम से उन्हें सांवले रंग का दिखाया जाता है और भगवान श्री कृष्ण का तो नाम ही श्याम लिया जाता है। लेकिन उनका यह श्याम रंग बनने की कहानी है। दरअसल जब श्री कृष्ण के मामा कंस ने राक्षसी पुतना को जन्माष्टमी के दिन जन्मे शीशुओं को स्तन से विषपान करवाकर मरवाने के लिये भेजा तो श्री कृष्ण ने विषपान तो किया लेकिन भगवन का क्या बिगड़ना था, पुतना तो मारी गई लेकिन बाल गोपाल विषपान करने से श्याम वर्ण के हो गये। अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि इस श्याम रंग के साथ प्रिय सखी राधा सहित अन्य गोपियां उन्हें भाव नहीं देंगी। गौर वर्णीय राधा को जब भी वे देखते उन्हें स्वयं का श्याम वर्ण होना अखरने लगता। वे इसकी शिकायत अपनी मैया यशोदा से करते हैं वो गीत तो आपने भी सुना होगा यशोमति मैया से बोले नंदलाला, राधा क्यों गौरी मैं क्यूं काला। तो माता उन्हें प्रसन्न करने के लिये सुझाव देती हैं वह भी राधा के मुख पर वैसा ही रंग लगा दे जैसा वे चाहते हैं। बस माता की शय मिलने की देर थी, नटखट श्याम राधा सहित सभी गोपियों को रंगने लग जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी यह शरारत फैलने लगती है और ऋतुराज वसंत के इस प्यार भरे मौसम में एक दूसरे पर रंग डालने की यह लीला एक प्रेममयी परंपरा के रूप में हर साल फाल्गुन के महीने में निभायी जाने लगती है। होली के दिनों में मथुरा वृंदावन का नजारा तो आज भी देखते ही बनता है।
वैसे यह श्री राधा व भगवान श्री कृष्ण की होली पर खेली गई यह प्रेम लीला एक प्रतीक भर है कि यह रंग कोई भौतिक रंग नहीं है बल्कि भक्ति का रंग है। भगवान का रंग है, सद्भावना का रंग है, विश्वास का रंग है जिनसे होली खेली जाती है। और जो होली जलाई जाती है वह संदेह की, अंहकार की, वैरभाव की, ईर्ष्या की होली जलाई जाती है जिसके उपरांत ही निष्काम प्रेम की कामना पूर्ण होती है और अपने आराध्य श्री कृष्ण की अपने ठाकुर जी की कृपा प्राप्त होती है।