चौघड़िया वैदिक पंचांग का एक रूप है। यदि कभी किसी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त नहीं निकल पा रहा हो या कार्य को शीघ्रता से आरंभ करना हो तथा किसी यात्रा पर आवश्यक रूप से जाना हो तो उसके लिए चौघड़िया मुहूर्त देखने का विधान है। ज्योतिष के अनुसार चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा आरंभ करना उत्तम है। ज्योतिष में चौघड़िया को विशेष स्थान प्राप्त है। आगे हम चौघड़िया क्या है, चौघड़िया की गणना कैसे की जाती है, चौघड़िया का क्या महत्व है और चौघड़िया की उपयोगिता क्या है, इसके बारे में जानेंगे।
मुहूर्त | समय |
---|---|
काल | 18:20:15 - 16:33:13 |
शुभ | 16:33:13 - 14:46:11 |
रोग | 14:46:11 - 12:59:09 |
उद्वेग | 12:59:09 - 11:12:07 |
चर | 11:12:07 - 09:25:05 |
लाभ | 09:25:05 - 07:38:03 |
अमृत | 07:38:03 - 05:51:01 |
काल | 05:51:01 - 04:03:59 |
मुहूर्त | समय |
---|---|
लाभ | 04:03:59 - 05:51:01 |
उद्वेग | 05:51:01 - 07:38:03 |
शुभ | 07:38:03 - 09:25:05 |
अमृत | 09:25:05 - 11:12:07 |
चर | 11:12:07 - 12:59:09 |
रोग | 12:59:09 - 14:46:11 |
काल | 14:46:11 - 16:33:13 |
लाभ | 16:33:13 - 18:20:15 |
चौघड़िया ज्योतिष की एक ऐसी तालिका है जो खगोलिय स्थिति के आधार पर दिन के 24 घंटों की दशा बताती है। इसमें प्रतिदिन के लिये दिन, नक्षत्र, तिथि, योग एवं करण दिये होते हैं। ग्रहों की स्थिति पर आधारित ऐसी दशाओं में से दिन और रात्रि में पूजा, विवाह समारोह, त्योहारों आदि के हेतु शुभ एवं अशुभ समयों को इस सारिणी के विभिन्न तालिकाओं में वर्गीकृत किया जाता है।
चौघड़िया की गणना के लिए, प्रत्येक दिन को दो समय अवधि में विभाजित किया जाता है। दिनमान जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक की अवधि है रात्रि-समय जो सूर्यास्त से सूर्योदय तक की अवधि है। इन दो भागों को फिर आठ बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। इन आठ विभाजनों में से प्रत्येक चार एक घड़ी के बराबर है और समय के इस विभाजन को चौघड़िया कहा जाता है।
चौघड़िया मुहूर्त वैदिक हिंदू कैलेंडर, पंचांग का एक अभिन्न हिस्सा है। चौघड़िया का प्रत्येक भाग दिन की तारीख और समय के आधार पर समान रूप से लाभप्रद या नुकसानदेह हो सकता है। चौघड़िया विभिन्न पहलुओं पर तय किया जाता है। दिन के पहले चौघड़िया की गणना दिन के स्वामी ग्रह के आधार पर की जाती है।
चौघड़िया भारत में समय की गणना के लिए एक प्राचीन उपाय है जो प्रत्येक खंड में लगभग 24 मिनट के बराबर है। चौघड़िया उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में एक ज्योतिषी से परामर्श के बिना एक अच्छा मुहूर्त खोजने के लिए उपयोग किया जाता है। दक्षिण में चौघड़िया को गोवरी पंचांग कहा जाता है। चौघड़िया का अधिक उपयोग भारत के पश्चिमी क्षेत्रों में किया जाता है। चौघड़िया मुहूर्त का प्रयोग किसी नए कार्य को करने, यात्रा करने, व्यापार शुरु करने के लिए किया जाता रहा है। घड़ीं का अर्थ समय के कुछ भाग से होता है। प्राचीन भारत में दिन और रात्रि को आज के घंटे एवं मिनटों के स्थान पर विभिन्न घड़ियों में बांटा गया था।
उदवेग
चौघड़िया में उदवेग प्रथम मुहूर्त है, जिसका स्वामी ग्रह सूर्य है। इस घड़ी में प्रशासनिक कार्य करने पर उचित परिणाम मिलने के कम आसार होते हैं।
लाभ
इस मुहूर्त का स्थान चौघड़िया में द्वितीय है। बुध ग्रह इसका स्वामी ग्रह है। इस समय पर व्यावसायिक और शिक्षा से जुड़े कार्य करने पर उचित परिणाम मिलते हैं।
चर
इस मुहूर्त का स्वामी ग्रह शुक्र है। इसका स्थान चौघड़िया में तृतीय है। इस मुहूर्त में यात्रा और पर्यटन करना उत्तम माना जाता है।
रोग
इस मुहूर्त का चौघड़िया में चौथा स्थान है। इसका स्वामी ग्रह मंगल है। इस घड़ी में चिकित्सीय सलाह लेने से बचना चाहिए।
शुभ
इस मुहूर्त का स्वामी ग्रह बृहस्पति ग्रह है। यह समय शुभ कार्यों को करने के लिए उत्तम है। इस घड़ी में विवाह, पूजा, यज्ञ करवाने पर शुभफल प्राप्त होता है।
काल
काल मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ज्योतिष भी इस मुहूर्त में किसी भी तहर का कार्य करने से मना करते हैं। इस घड़ी पर शनि का स्वामित्व है और काल का सीधा संबंध अंत से हैं।
अमृत
यह चौघड़िया का अंतिम मुहूर्त है। इस पर चंद्रमा का स्वामित्व है। अमृत मुहूर्त में कोई भी कार्य करने पर अच्छा परिणाम मिलता है।
ध्यान दे - वार वेला, काल वेला और कालरात्रि का समय भारतीय ज्योतिष में शुभ नहीं माना जाता है और भविष्यवाणियां करते समय इनसे बचना चाहिए।
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