पितृ पक्ष या श्राद्ध को सनातन धर्म में महत्वपूर्ण माना गया है जो सोलह दिनों की अवधि होती है। पितृ पक्ष निरंतर 16 दिनों तक चलते है और यह एक ऐसी अवधि होती है जब हिंदू समुदाय के लोग अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनसे प्रार्थनाऐं करते हैं। साधारण शब्दों में पितृ अर्थात हमारे पूर्वज, जो अब हमारे साथ, हमारे बीच में नहीं हैं, उनका तर्पण एवं श्राद्ध करने का समय। इस माध्यम से अपने पूर्वजों को याद करना और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष का आरम्भ प्रति वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में होता है और इसका अंत आश्विन अमावस्या पर होता है। श्राद्ध कर्म की पूरी अवधि पूर्वजों को समर्पित होती है। श्राद्ध पक्ष की शुरुआत गणेश चतुर्थी के अगले दिन पहली पूर्णिमा से होती है और पेद्दला अमावस्या पर समाप्ति होती है।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 07, 2025 को 01:41 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 07, 2025 को 11:38 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 25, 2026 को 11:06 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 26, 2026 को 10:18 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 15, 2027 को 02:48 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 16, 2027 को 04:32 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 03, 2028 को 02:51 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 04, 2028 को 05:16 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 21, 2029 को 08:17 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 22, 2029 को 09:58 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 11, 2030 को 03:39 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 12, 2030 को 02:47 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 30, 2031 को 02:32 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - अक्टूबर 01, 2031 को 12:27 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 18, 2032 को 06:42 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - सितम्बर 19, 2032 को 02:59 पी एम बजे
पितृ पक्ष 2025: यह महत्वपूर्ण समय 7 सितम्बर, रविवार से लेकर 21 सितम्बर, रविवार तक रहेगा, जब हम अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करेंगे।
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श्राद्ध पक्ष |
तारीख |
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1 | पूर्णिमा श्राद्ध | 07 सितम्बर 2025, रविवार |
2 | प्रतिपदा श्राद्ध | 08 सितम्बर 2025, सोमवार |
3 | द्वितीया श्राद्ध | 09 सितम्बर 2025, मंगलवार |
4 | तृतीया श्राद्ध | 10 सितम्बर 2025, बुधवार |
5 | चतुर्थी श्राद्ध | 10 सितम्बर 2025, बुधवार |
6 | पञ्चमी श्राद्ध | 11 सितम्बर 2025, बृहस्पतिवार |
7 | महा भरणी | 11 सितम्बर 2025, बृहस्पतिवार |
8 | षष्ठी श्राद्ध | 12 सितम्बर 2025, शुक्रवार |
9 | सप्तमी श्राद्ध | 13 सितम्बर 2025, शनिवार |
10 | अष्टमी श्राद्ध | 14 सितम्बर 2025, रविवार |
11 | नवमी श्राद्ध | 15 सितम्बर 2025, सोमवार |
12 | दशमी श्राद्ध | 16 सितम्बर 2025, मंगलवार |
13 | एकादशी श्राद्ध | 17 सितम्बर 2025, बुधवार |
14 | द्वादशी श्राद्ध | 18 सितम्बर 2025, बृहस्पतिवार |
15 | त्रयोदशी श्राद्ध | 19 सितम्बर 2025, शुक्रवार |
16 | मघा श्राद्ध | 19 सितम्बर 2025, शुक्रवार |
17 | चतुर्दशी श्राद्ध | 20 सितम्बर 2025, शनिवार |
18 | सर्वपित्रू अमावस्या | 21 सितम्बर 2025, रविवार |
पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज़ों का श्राद्ध किस तिथि पर किया जाए, इस प्रश्न का मान्यताओं अनुसार सही जवाब है कि अगर आपको पितर, पूर्वज़ या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृ पक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए। यदि देह त्यागने की तिथि के बारे में पता नहीं हो, तो इस स्थिति में आश्विन अमावस्या को श्राद्ध कर सकते है इसलिए ही इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। यदि किसी परिजन की असमय मृत्यु अर्थात किसी दुर्घटना, आत्महत्या आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करना उपयुक्त माना गया है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जब कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, उसी समय पितृ पक्ष पड़ता है। कुंडली में पंचम भाव मनुष्य के पूर्वजन्म के कर्मों को भाव माना गया है। काल पुरुष में कुंडली के पंचम भाव का स्वामी सूर्य को माना गया है। यही कारण है कि हमारे कुल का द्योतक भी सूर्य है।
सामान्य अर्थो में जब सूर्य कन्या राशि में आता है तो सभी पितृ अपने पुत्र-पौत्रों और अपने वंशजों के घर धरती पर आते हैं। इस सोलह दिनों की अवधि के दौरान पितृपक्ष की आश्विन अमावस्या को पूर्वजों का श्राद्ध नहीं किया जाए तो पूर्वज कुपित होकर अपने वंशजों को श्राप देकर वापस चले जाते है।
पितृ पक्ष की 16 दिन की अवधि के दौरान जातको को कुछ कार्यों को करने से बचना चाहिए।
पितृ पक्ष के दौरान गैर-शाकाहारी भोजन का सेवन करने से बचना चाहिए।
बालों को नहीं काटना चाहिए।
इस दौरान लहसुन, प्याज आदि तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
कोई भी नया प्रोजेक्ट, नया घर या नई गाड़ी खरीदने जैसे मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
हिन्दू धर्म में किसी मनुष्य की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध कर्म करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति के द्वारा उसके पूर्वजों का विधिपूर्वक श्राद्ध या तर्पण नहीं किया जाए तो उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए वंशजों द्वारा श्राद्ध कर्म सम्पन्न किया जाता है।
पितृ पक्ष जातकों के लिए एक ऐसा अवसर होता है जब वे अपने पुरखों का सम्मान करें और उन्हें भोजन और जल अर्पित करें। श्राद्ध की प्रारंभिक तिथि उत्तर भारतीय या दक्षिण भारतीय कैलेंडर पर निर्भर होती है जिसका लोगों द्वारा अनुसरण किया जाता हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों में पितृ पक्ष से जुड़ीं एक कथा का वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है, द्वापर युग में जब महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची, तो उन्हें वहां नियमित रूप से भोजन नहीं मिल रहा था। इसके बदले में कर्ण को खाने के लिए सोना और आभूषण दिए गए। इस बात से उनकी आत्मा निराश हो गई और कर्ण ने इस बारे में इंद्र देव से सवाल किया कि उनको वास्तविक भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा है? तब इंद्र देव ने इसके कारण का खुलासा किया और कहा कि, आपने अपने पूरे जीवन में इन सभी चीजों का दान दूसरों को किया है लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों और पुरखों के लिए कुछ नहीं किया। इसके जवाब में कर्ण ने कहा कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानते थे और यह सुनने के बाद, कर्ण को भगवान इंद्र ने 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी जिससे वह अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म कर सके। वर्तमान युग में इन्ही 15 दिनों की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान, श्राद्ध कर्म को सम्पन्न किया जाता है। श्राद्ध कर्म को करने की प्रक्रिया सबकी अलग-अलग हो सकती है लेकिन इनके मुख्य रूप से तीन भाग होते हैंः-
प्रथम भाग को पिंड दान के रूप में जाना जाता है जहाँ पितृों को पिंड अर्पित किया जाता है। पिंड चावल, शहद, बकरी के दूध, चीनी और जौ से बनाए जाने वाले चावल के गोले होते है।
तर्पण को दूसरे भाग के रूप में जाना जाता है और इस के अंतर्गत आटा, जौ, कुशा घास और काले तिल के साथ मिश्रित जल को पितरों को अर्पित किया जाता है।
पितृ पक्ष का तीसरा और अंतिम चरण ब्राह्मण एवं पुजारियों को भोजन कराना होता है। जातकों को धार्मिक ग्रंथों से कथा पढ़नी या सुननी चाहिए।
पितृ दोष निवारण पूजा - किसी भी जातक की कुंडली में पितृ दोष होने के कारण नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ता है। इस दोष को पितृ पक्ष में पितृ दोष निवारण पूजा द्वारा दूर किया जा सकता है।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Saturday, 18 January 2025 |
तिथि | कृष्ण पंचमी |
वार | शनिवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 7:15:2 |
सूर्यास्त | 17:49:9 |
चन्द्रोदय | 22:3:28 |
नक्षत्र | पूर्व फाल्गुनी |
नक्षत्र समाप्ति समय | 14 : 53 : 18 |
योग | शोभन |
योग समाप्ति समय | 25 : 16 : 55 |
करण I | कौलव |
सूर्यराशि | मकर |
चन्द्रराशि | सिंह |
राहुकाल | 09:53:33 to 11:12:49 |