भूमि पूजन

भूमि पूजन

भूमि को समस्त जगत की जननी, जगत की पालक माना जाता है इसलिये इसलिये हिंदू धर्मग्रंथों में धरती को मां का दर्जा भी दिया गया है। भूमि यानि धरती से हमें क्या मिलता है यह सभी जानते हैं रहने को घर, खाने को अन्न, नदियां, झरने, गलियां, सड़कें सब धरती के सीने से तो गुजरते हैं। इसलिये तो शास्त्रों में भूमि पर किसी भी कार्य को चाहे वह घर बनाने का हो या फिर सार्वजनिक इमारतों या मार्गों का, निर्माण से पहले भूमि पूजन का विधान है। माना जाता है कि भूमि पूजन न करने से निर्माण कार्य में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं। आइये आपको बताते हैं कि कैसे करते हैं भूमि का पूजन, क्या है भूमि पूजन की विधि।

क्यों करते हैं भूमि पूजन

जब भी किसी नई भूमि पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरु किया जाता है तो उससे पहले भूमि की पूजा की जाती है, मान्यता है कि यदि भूमि पर किसी भी प्रकार का कोई दोष है, या उस भूमि के मालिक से जाने-अनजाने कोई गलती हुई है तो भूमि पूजन से धरती मां हर प्रकार के दोष पर गलतियों को माफ कर अपनी कृपा बरसाती हैं। कई बार जब कोई व्यक्ति भूमि खरीदता है तो हो सकता है उक्त जमीन के पूर्व मालिक के गलत कृत्यों से भूमि अपवित्र हुई हो इसलिये भूमि पूजन द्वारा इसे फिर से पवित्र किया जाता है। मान्यता है कि भूमि पूजन करवाने से निर्माण कार्य सुचारु ढंग से पूरा होता है। निर्माण के दौरान या पश्चात जीव की हानि नहीं होती व साथ ही अन्य परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।

भूमि पूजन की विधि

सबसे पहले पूजन के दिन प्रात:काल उठकर जिस भूमि का पूजन किया जाना है वहां सफाई कर उसे शुद्ध कर लेना चाहिये। पूजा के लिये किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की सहायता लेनी चाहिये। पूजा के समय ब्राह्मण को उत्तर मुखी होकर पालथी मारकर बैठना चाहिये। जातक को पूर्व की ओर मुख कर बैठना चाहिये। यदि जातक विवाहित है तो अपने बांयी तरफ अपनी अर्धांगनी को बैठायें। मंत्रोच्चारण से शरीर, स्थान एवं आसन की शुद्धि की जाती है। तत्पश्चात भगवान श्री गणेश जी की आराधना करनी चाहिये। भूमि पूजन में चांदी के नाग व कलश की पूजा की जाती है। वास्तु विज्ञान और शास्त्रों के अनुसार भूमि के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान हैं। मान्यता है कि शेषनाग ने अपने फन पर पृथ्वी को उठा रखा है। चांदी के सांप की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना है। माना जाता है कि जिस तरह भगवान शेषनाग पृथ्वी को संभाले हुए हैं वैसे ही यह बनने वाले भवन की देखभाल भी करेंगें। कलश रखने के पिछे भी यही मान्यता है कि शेषनाग चूंकि क्षीर सागर में रहते हैं इसलिये कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों द्वारा शेषनाग का आह्वान किया जाता है ताकि शेषनाग भगवान का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिले। कलश में सिक्का और सुपारी डालकर यह माना जाता है कि लक्ष्मी और गणेश की कृपा प्राप्त होगी। कलश को ब्रह्मांड का प्रतीक और भगवान विष्णु का स्वरुप मानकर उनसे प्रार्थना की जाती है कि देवी लक्ष्मी सहित वे इस भूमि में विराजमान रहें और शेषनाग भूमि पर बने भवन को हमेशा सहारा देते रहें।

भूमि पूजन विधि पूर्वक करवाया जाना बहुत जरुरी है अन्यथा निर्माण में विलंब, राजनीतिक, सामाजिक एवं दैविय बाधाएं उत्पन्न होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

भूमि पूजन के लिये पूजा सामग्री

भूमि पूजन के लिये गंगाजल, आम तथा पान वृक्ष के पत्ते, फूल, रोली एवं चावल, कलावा, लाल सूती कपड़ा, कपूर, देशी घी, कलश, कई तरह के फल, दुर्बा घास, नाग-नागिन जौड़ा, लौंग-इलायची, सुपारी, धूप-अगरबत्ती, सिक्के, हल्दी पाउडर आदि सामग्री की आवश्यकता होती है।

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