गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुओं एवं शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। सनातन धर्म में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है और गुरुओं को समर्पित एक प्रसिद्ध त्यौहार है गुरु पूर्णिमा। हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध व जैन धर्म के लोग गुरु पूर्णिमा के उत्सव को हर्षोउल्लास से मनाते है। गुरु पूर्णिमा में गुरु शब्द का अर्थ शिक्षक से है।
गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों द्वारा अपने गुरु के प्रति आस्था को प्रकट किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन विधिवत रूप से गुरु पूजन किया जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं। सामान्य शब्दों में गुरु वह इंसान होता हैं जो ज्ञान की गंगा बहाता हैं और हमारे जीवन को अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाता हैं। यह पर्व समूचे भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 10, 2025 को 01:36 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 11, 2025 को 02:06 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 28, 2026 को 06:18 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 29, 2026 को 08:05 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 17, 2027 को 06:48 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 18, 2027 को 09:14 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 05, 2028 को 11:03 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 06, 2028 को 11:40 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 24, 2029 को 07:50 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 25, 2029 को 07:05 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 14, 2030 को 10:47 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 15, 2030 को 07:41 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 04, 2031 को 04:21 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 05, 2031 को 12:30 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - जुलाई 22, 2032 को 03:54 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - जुलाई 23, 2032 को 12:21 ए एम बजे
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत होने के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूजा स्थल को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करने के बाद व्यास जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
अब व्यास जी के चित्र पर ताजे फूल या माला चढ़ाएं और इसके बाद अपने गुरु के पास जाना चाहिए।
अपने गुरु को ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर फूलों की माला अर्पित करनी चाहिए।
अब वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण करने के बाद अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के दिन केवल गुरुओं का ही नहीं, बल्कि परिवार के सबसे बड़े सदस्य जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरु तुल्य ही मानना चाहिए।
गुरु के ज्ञान से ही विद्यार्थी को विद्या की प्राप्ति होती है और उसके ज्ञान से ही अज्ञान एवं अंधकार दूर होता है।
गुरु की कृपा ही शिष्य के लिए ज्ञानवर्धक और कल्याणकारी सिद्ध होती है। संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु के आशीर्वाद से ही प्राप्त होती है।
यह दिन गुरु से मंत्र प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ होता है।
इस दिन गुरुजनों की सेवा करना अत्यंत शुभ होता है।
शिष्यों द्वारा आध्यात्मिक गुरुओं और अकादमिक शिक्षकों को नमन और धन्यवाद करने के लिए गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाया जाता है। सभी गुरु अपने शिष्यों की भलाई के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देते है। हमेशा से आध्यात्मिक गुरु संसार में शिष्य और दुखी लोगों की सहायता करते आये हैं और ऐसे ही कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद है जब गुरुओं ने अपने ज्ञान से अनेक दुखी लोगों की समस्याओं का निवारण किया है।
स्वामी विवेकानंद और गुरु नानक ऐसे ही गुरु थे जिन्होंने हमेशा संसार की भलाई के लिए काम किया हैं। गुरु पूर्णिमा को भारत के अतिरिक्त भूटान और नेपाल आदि देशों में भी मनाया जाता है। हमारे देश की गुरु-शिष्य परंपरा भारत से चलकर दूसरे देशों में गई है। हमेशा से ही आध्यात्मिक गुरु प्रवास पर रहते थे और इसी प्रवास के कारण भारत की ये परम्पराएं दूसरे देशों में भी फैली।
हिंदू, बौद्ध और जैन संस्कृतियों में गुरुओं को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इन धर्मों या संस्कृतियों में अनेक शैक्षणिक और आध्यात्मिक गुरु हुए हैं जिन्हें भगवान के तुल्य माना गया है। स्वामी अभेदानंद, आदिशंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु आदि प्रसिद्ध हिन्दू गुरु थे। यह हजारों गुरुओं में से कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने आध्यात्मिक रूप से जनमानस की सेवा की, इसके विपरीत अकादमिक-आध्यात्मिक गुरु; ज्ञान और विद्या प्रदान करते है। सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए "गुरु पूर्णिमा" का त्यौहार मनाया जाता है।
महर्षि वेदव्यास और गुरु पूर्णिमा का संबंध
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण आदि साहित्यों के रचियता महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा की तिथि पर हुआ था जो ऋषि पराशर के पुत्र थे।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेदव्यास को तीनों कालों के ज्ञाता माना गया है। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया था कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि में कमी आएगी। धर्म में रुचि कम होने से मनुष्य का ईश्वर के प्रति विश्वास कम, कर्तव्य से विमुख और अल्पायु हो जाएगा। सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करने में असमर्थ होगा, इसलिए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बाँट दिया जिससे कि अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति वाले व्यक्ति भी वेदों का अध्ययन कर सकें।
व्यास जी द्वारा ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की गई। इस प्रकार वेदों का विभाजन करने के कारण ही उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना गया। उन्होंने इन चारों वेदों का ज्ञान अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को दिया।
महर्षि वेदव्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि के अनुसार चारों वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में विभाजित कर दिया। महर्षि व्यास ने ही महाभारत की रचना की थी। महर्षि व्यास जी को हमारे आदि-गुरु माना जाता हैं। गुरु पूर्णिमा के प्रसिद्ध त्यौहार को व्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं और इस दिन हमें अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Thursday, 21 November 2024 |
तिथि | कृष्ण षष्ठी |
वार | गुरुवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:11 |
सूर्यास्त | 17:25:32 |
चन्द्रोदय | 22:44:5 |
नक्षत्र | पुष्य |
नक्षत्र समाप्ति समय | 15 : 37 : 23 |
योग | शुक्ल |
योग समाप्ति समय | 12 : 1 : 12 |
करण I | वणिज |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 13:26:54 to 14:46:26 |