Pradosh Vrat 2025: इस व्रत को उत्तर भारत में प्रदोष व्रत तथा दक्षिण भारत में प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। व्रत में भगवान शिव की स्तुति की जाती है। मान्यताओं कि माने तो शुक्रवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत अधिक फलदायी होता है। आगे प्रदोष व्रत क्या है, व्रत का क्या महत्व है, व्रत की पूजा विधि क्या है, जिससे साधक उचित फल पा सकें। इसके अलावा इस वर्ष किन तिथियों पर प्रदोष व्रत पड़ रहा है, इसकी जानकारी इस लेख में दी जा रही है।
मुख्य रूप से यह व्रत शिव व शक्ति को समर्पित है। यह व्रत शुक्ल व कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि पर पड़ता है। वर्ष में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। प्रत्येक वार के हिसाब से प्रदोष व्रत है। सात वारों के लिए सात व्रत हैं। प्रदोष व्रत की मान्यता और इसका फल वार के अनुसार बदल जाता है। कहा जाता है कि शनिवार का प्रदोष व्रत उस दंपत्तियों को करना चाहिए जो संतान सुख से वंचित हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को श्रद्धा भाव से करने पर वैवाहिक जोड़े को संतान रत्न की प्राप्ति होती है। बुधवार का प्रदोष व्रत समृद्ध जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। इसी प्रकार हर वार के मुताबिक व्रत का फल बदल जाता है।
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तिथि एवं दिन | प्रदोष व्रत एवं माह | (तिथि) समय | अवधि प्रारंभ तिथि एवं समाप्ति समय |
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जनवरी 11, 2025, शनिवार | शनि प्रदोष व्रत (पौष, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 42 मिनट्स | प्रारंभ: 08:21, जनवरी 11 - समाप्त: 06:33, जनवरी 12 |
जनवरी 27, 2025, सोमवार | सोम प्रदोष व्रत (माघ, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 37 मिनट्स | प्रारंभ: 20:54, जनवरी 26 - समाप्त: 20:34, जनवरी 27 |
फरवरी 9, 2025, रविवार | रवि प्रदोष व्रत (माघ, शुक्ल त्रयोदशी) | 01 घंटा 18 मिनट्स | प्रारंभ: 19:25, फरवरी 09 - समाप्त: 18:57, फरवरी 10 |
फरवरी 25, 2025, मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत (फाल्गुन, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 30 मिनट्स | प्रारंभ: 12:47, फरवरी 25 - समाप्त: 11:08, फरवरी 26 |
मार्च 11, 2025, मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत (फाल्गुन, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 25 मिनट्स | प्रारंभ: 08:13, मार्च 11 - समाप्त: 09:11, मार्च 12 |
मार्च 27, 2025, गुरुवार | गुरु प्रदोष व्रत (चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 20 मिनट्स | प्रारंभ: 01:42, मार्च 27 - समाप्त: 23:03, मार्च 27 |
अप्रैल 10, 2025, गुरुवार | गुरु प्रदोष व्रत (चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 15 मिनट्स | प्रारंभ: 22:55, अप्रैल 09 - समाप्त: 01:00, अप्रैल 11 |
अप्रैल 25, 2025, शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत (वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 10 मिनट्स | प्रारंभ: 11:44, अप्रैल 25 - समाप्त: 08:27, अप्रैल 26 |
मई 9, 2025, शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत (वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 07 मिनट्स | प्रारंभ: 14:56, मई 09 - समाप्त: 17:29, मई 10 |
मई 24, 2025, शनिवार | शनि प्रदोष व्रत (ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी) | 01 घंटा 54 मिनट्स | प्रारंभ: 19:20, मई 24 - समाप्त: 15:51, मई 25 |
जून 8, 2025, रविवार | रवि प्रदोष व्रत (ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 01 मिनट्स | प्रारंभ: 07:17, जून 08 - समाप्त: 09:35, जून 09 |
जून 23, 2025, सोमवार | सोम प्रदोष व्रत (आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 01 मिनट्स | प्रारंभ: 01:21, जून 23 - समाप्त: 22:09, जून 23 |
जुलाई 8, 2025, मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत (आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 02 मिनट्स | प्रारंभ: 23:10, जुलाई 07 - समाप्त: 00:38, जुलाई 09 |
जुलाई 22, 2025, मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत (श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 04 मिनट्स | प्रारंभ: 07:05, जुलाई 22 - समाप्त: 04:39, जुलाई 23 |
अगस्त 6, 2025, बुधवार | बुध प्रदोष व्रत (श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 08 मिनट्स | प्रारंभ: 14:08, अगस्त 06 - समाप्त: 14:27, अगस्त 07 |
अगस्त 20, 2025, बुधवार | बुध प्रदोष व्रत (भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 12 मिनट्स | प्रारंभ: 13:58, अगस्त 20 - समाप्त: 12:44, अगस्त 21 |
सितंबर 5, 2025, शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत (भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 16 मिनट्स | प्रारंभ: 19:40, सितंबर 05 - समाप्त: 18:17, सितंबर 06 |
सितंबर 19, 2025, शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत (आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 10 मिनट्स | प्रारंभ: 10:10, सितंबर 19 - समाप्त: 08:30, सितंबर 20 |
अक्टूबर 4, 2025, शनिवार | शनि प्रदोष व्रत (आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 18 मिनट्स | प्रारंभ: 22:25, अक्टूबर 03 - समाप्त: 00:37, अक्टूबर 05 |
अक्टूबर 19, 2025, रविवार | रवि प्रदोष व्रत (कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी) | 01 घंटा 59 मिनट्स | प्रारंभ: 08:45, अक्टूबर 19 - समाप्त: 07:33, अक्टूबर 20 |
नवंबर 3, 2025, सोमवार | सोम प्रदोष व्रत (कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 12 मिनट्स | प्रारंभ: 21:15, नवंबर 02 - समाप्त: 19:39, नवंबर 03 |
नवंबर 17, 2025, सोमवार | सोम प्रदोष व्रत (मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 06 मिनट्स | प्रारंभ: 11:22, नवंबर 17 - समाप्त: 10:02, नवंबर 18 |
दिसंबर 1, 2025, मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत (मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी) | 02 घंटे 04 मिनट्स | प्रारंभ: 19:55, नवंबर 30 - समाप्त: 20:14, दिसंबर 01 |
दिसंबर 16, 2025, बुधवार | बुध प्रदोष व्रत (पौष, कृष्ण त्रयोदशी) | 02 घंटे 08 मिनट्स | प्रारंभ: 13:18, दिसंबर 16 - समाप्त: 11:39, दिसंबर 17 |
प्रदोष व्रत मुख्य रूप से वार (दिन) और तिथियों के अनुसार विभिन्न प्रकारों में विभाजित है। हर प्रकार का व्रत विशेष फलदायी होता है। आइए, इन प्रकारों को विस्तार से समझते हैं।
1. सोम प्रदोष व्रत (सोमवार)
सोमवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को 'सोम प्रदोष' कहा जाता है।
महत्त्व:
कहानी: सोम प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार, चंद्र देव ने इस व्रत का पालन कर अपने दोषों से मुक्ति पाई थी।
2. भौम प्रदोष व्रत (मंगलवार को)
मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
3. बुध प्रदोष व्रत (बुधवार को)
जब प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ता है, तो इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं।
4. गुरु प्रदोष व्रत (गुरुवार को)
गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है।
5. शुक्र प्रदोष व्रत (शुक्रवार को)
शुक्रवार के दिन होने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं।
6. शनि प्रदोष व्रत (शनिवार को)
शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है।
7. रवि प्रदोष व्रत (रविवार को)
रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहते हैं।
व्रत रखने वाले को सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
दिनभर उपवास रखें और केवल संध्या के समय पूजा करें।
संध्या समय प्रदोष काल में दीपक जलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
पूजा में बेलपत्र, दूध, दही, शहद, गंगाजल, और धूप-दीप का उपयोग करें।
शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें और प्रसाद बांटें।
शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति।
आर्थिक स्थिति में सुधार।
वैवाहिक जीवन में सुख-शांति।
आध्यात्मिक उन्नति।
ग्रह दोष और शनि दोष से मुक्ति।
प्रदोष व्रत में महादेव व माता पार्वती की उपासना की जाती है। व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से स्कंद पुराण में वर्णन किया गया है। साधक प्रदोष व्रत का पालन अपने जीवन में हर तरह के सुख की प्राप्ति के लिए करता है। इस व्रत को स्त्री तथा पुरूष दोनों कर सकते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक पर भगवान शिव की कृपा दृष्टि बनती है। साधक अपने पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है।
वैसे तो हर वार के अनुसार प्रदोष व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। परंतु एक बहुत ही प्रचलित कथा है जिसे हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। एक गांव में एक निर्धन विधवा ब्राह्मणी रहती थी और ब्राह्मणी का एक पुत्र भी था। भरण पोषण के लिए दोनों प्रति दिन भिक्षा मांगते और जो मिलता उसी से अपनी क्षुधा शांत करते। ब्राह्मणी कई वर्षों से प्रदोष व्रत का पालन कर आ रही थी। एक बार ब्राह्मणी का पुत्र त्रयोदशी तिथि पर गंगा स्नान करने के लिए निकला। स्नान कर जब वह घर की ओर लौट रहा था तो रास्ते में उसका सामना लुटेरों के एक दल से हुआ। लुटेरों ने उससे उसका सारा सामान छीन कर आगे बढ़ गए। कुछ समय बाद वहां पर राज्य के कुछ सैनिक पहुंचे। उन्होंने ब्राह्मणी पुत्र को लुटेरों में से एक समझकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। जहां राजा ने बिना ब्राह्मण युवक की दलील सुने उसे कारागार में डालवा दिया। रात्रि में राजा के स्वप्न में भगवान शिव आए और ब्राह्मण युवक को मुक्त करने का आदेश देकर अंतर्ध्यान हो गए।
राजा नींद से उठकर सीधे कारागार पहुंचे और युवक को मुक्त करने का आदेश दिया। राजा युवक को साथ लेकर महल लौटे जहां उन्होंने युवक का सम्मान किया और उसे दान मांगने के लिए कहां युवक ने राजा से दान स्वरूप सिर्फ एक मुठ्ठी धान मांगा। राजा उसकी मांग को सुनकर अचरज में पड़ गए। राजा ने युवक से प्रश्न किया कि सिर्फ एक मुठ्ठी धान से क्या होगा और भी कुछ मांग लो, ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। युवक ने बड़ी ही विनम्रतापूर्वक राजा से कहा कि हे राजन इस समय यह धान मेरे लिए संसार का सबसे अनमोल धन है। इसे मैं अपनी माता को दूंगा जिससे वे खीर बना कर भगवान शिव को भोग लगाएंगी। फिर हम इसे ग्रहण कर अपनी क्षुधा को शांत करेंगे। राजा युवक की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि ब्राह्मणी को सह सम्मान दरबार में लाया जाए। मंत्री ब्राह्मणी को लेकर दरबार पहुंचे। राजा ने सारा प्रसंग ब्राह्मणी को सुनाया और उनके पुत्र की प्रशंसा करते हुए ब्राह्मणी पुत्र को अपना सलाहकार नियुक्त किया और इस प्रकार निर्धन ब्राह्मणी और उसके पुत्र का जीवन बदल गया।
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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी