बसंत पंचमी हिन्दुओं का प्रसिद्ध पर्व है जो माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में कब है बसंत पंचमी का पर्व? कब और कैसे करें सरस्वती पूजा? जानें
बसंत पंचमी का त्यौहार हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो वसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को प्रतिवर्ष अत्यंत धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। बसंत पंचमी में बसंत’ शब्द का अर्थ है वसंत और ‘पंचमी’ का अर्थ पांचवें दिन से है। इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती की आराधना करने की परंपरा है। बसंत पंचमी से ही भारत में वसंत ऋतु की शुरुआत होती है और इस दिन महिलाएं पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 02, 2025 को 09:14 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - फरवरी 03, 2025 को 06:52 ए एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 23, 2026 को 02:28 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - जनवरी 24, 2026 को 01:46 ए एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 11, 2027 को 03:04 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - फरवरी 12, 2027 को 03:18 ए एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 31, 2028 को 07:14 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - फरवरी 01, 2028 को 09:27 ए एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 19, 2029 को 04:16 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - जनवरी 20, 2029 को 06:39 ए एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 06, 2030 को 09:40 पी एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - फरवरी 07, 2030 को 11:17 पी एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 27, 2031 को 12:02 ए एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - जनवरी 27, 2031 को 11:16 पी एम बजे पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 14, 2032 को 11:04 पी एम बजे पञ्चमी तिथि समाप्त - फरवरी 15, 2032 को 09:24 पी एम बजे
हिंदू पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी को माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है, जो प्रत्येक वर्ष जनवरी के अंत या फरवरी महीने के आरंभ में आती है। इसके अतिरिक्त वसंत पंचमी के दिन का निर्धारण पूर्वाहन काल के प्रचलन के आधार पर किया जाता है,सामान्य शब्दों में सूर्योदय और मध्य दिन के बीच की अवधि। अगर पूर्वाहन काल के दौरान पंचमी तिथि प्रबल होती है, तब वसंत पंचमी के उत्सव का आरंभ होता है।
बसंत पंचमी को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं, तब समस्त देवी-देवताओं ने माँ सरस्वती की स्तुति की थी। इस स्तुति से ही वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग का निर्माण हुआ। यही कारण है कि इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
बसंत ऋतु छः ऋतुओं में सर्वाधिक लोकप्रिय है और इस ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य मन को मोहित करता है। इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि पति-पत्नी द्वारा बसन्त पंचमी के दिन भगवान कामदेव और देवी रति की षोडशोपचार पूजा करने से सुखी-वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में बसंत पंचमी का वर्णन ऋषि पंचमी के नाम से मिलता है। इसके अतिरिक्त बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी का सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है और इस दिन पीले रंग के उपयोग को शुभ माना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती सहित भगवान विष्णु, कामदेव एवं श्रीपंचमी का पूजन किया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करना विशेष रूप से फलदायी होता है, वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा इस प्रकार करें:
पूजा स्थान की साफ़-सफाई करने के बाद गंगा जल ऋषि पंचमी का छिड़काव करें।
इसके पश्चात देवी सरस्वती की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें।
अब सर्वप्रथम विघ्नहर्ता गणेश का ध्यान करें और उसके पश्चात कलश की स्थापना करें।
मां सरस्वती को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद देवी को रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प और अक्षत अर्पित करें।
देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
अब दोनों हाथ जोड़कर माता सरस्वती का ध्यान एवं उनसे प्रार्थना करें।
अंत में देवी सरस्वती की आरती करें और उन्हें प्रसाद रूप में पीली मिठाई का भोग लगाएं।
बसंत पंचमी के दिन धन-संपदा की देवी लक्ष्मी और जगत पालनहार श्रीविष्णु की पूजा का भी विधान है। इन दिन कई लोग माता लक्ष्मी और माता सरस्वती की पूजा एक साथ करते हैं। सामान्य रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा व्यापारी वर्ग के लोग करते हैं, साथ ही इस दिन माँ लक्ष्मी के पूजन के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना फलदायी सिद्ध होता है।
महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में नवविवाहित जोड़ों के लिए अपनी पहली बसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहनकर पूजा करने के लिए मंदिर जाना अनिवार्य होता है।
राजस्थान में एक प्रचलित प्रथा के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन भक्त चमेली की माला पहनते है।
इस त्यौहार को पंजाब में वसंत के मौसम के आरम्भ के रूप में मनाया जाता है। वहां सभी लोग वसंत पंचमी को पीली पगड़ी और पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन पंजाब में कई जगह पतंगबाजी भी की जाती है।
बसंत पंचमी को बसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक माना गया है जो ज्ञान एवं शिक्षा की देवी सरस्वती को समर्पित है। इस त्यौहार को देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य हिस्सों में धूमधाम एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। इस हिन्दू त्यौहार को नेपाल में भी अत्यधिक जोश के साथ मनाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार,ब्रह्मा जी पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे और उन्हें अपने संसार में किसी कमी का आभास हुआ। इसके पश्चात उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर धरती पर छिड़का, तभी वहां श्वेत वर्ण वाली, हाथों में पुस्तक, माला और वीणा हाथ में लिए हुए देवी प्रकट हुईं। ब्रह्मा जी ने उन्हें सर्वप्रथम वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा और समस्त जीवों को वाणी प्रदान करने के लिए कहा। उस दिन से ही माता सरस्वती ने अपनी वीणा के मधुर नाद से समस्त प्राणियों को वाणी प्रदान की।
दिनाँक | Thursday, 21 November 2024 |
तिथि | कृष्ण षष्ठी |
वार | गुरुवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:11 |
सूर्यास्त | 17:25:32 |
चन्द्रोदय | 22:44:5 |
नक्षत्र | पुष्य |
नक्षत्र समाप्ति समय | 15 : 37 : 29 |
योग | शुक्ल |
योग समाप्ति समय | 12 : 1 : 21 |
करण I | वणिज |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 13:26:54 to 14:46:26 |