नाग पंचमी 2024

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नाग पंचमी का पर्व नाग देवता को समर्पित होता है जो हर साल पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन नाग देव का पूजन एवं व्रत किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से सावन का महीना अत्यंत पावन होता है जो भगवान शिव को अति प्रिय है। इस माह में अनेक व्रत एवं त्यौहार होते है और इन्ही में से एक है नाग पंचमी का त्योहार। 

नाग पंचमी 2024 की तिथि एवं मुहूर्त

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क्यों करते हैं नाग पंचमी पूजा?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, नाग पंचमी का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नागों की प्रधान रूप से पूजा की जाती है। सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है जिसके अंतर्गत ऐसा माना गया है कि भू गर्भ से नाग निकल कर भू-तल पर आ जाते हैं। नाग किसी के भी अहित का कारण न बने, इसके लिए ही नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी की पूजा की जाती है।

नाग पंचमी की पूजा विधि 

  • नाग पंचमी पर प्रातः काल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होने के बाद सर्वप्रथम भगवान शिव का ध्यान करें।

  • इसके उपरांत व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए।

  • अब नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को गाय के दूध से स्नान कराएं।

  • दूध से स्नान करवाने के बाद अब जल से स्नान करवाएं।

  • स्नान करवाने के पश्चात नाग-नागिन की प्रतिमा का गंध, पुष्प, धूप और दीपक से पूजन करें।

  • इसके उपरांत नाग-नागिन की प्रतिमा को हल्दी, रोली, चावल और फूल भी अर्पित करें।

  • अब घी और चीनी मिला कच्चा दूध चढ़ाएं।

  • इसके बाद सच्चे मन से नागदेवता का ध्यान करते हुए उनकी आरती करें।

  • सबसे अंत में नाग पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें।  

नाग पंचमी का महत्व

श्रावण शुक्ल पंचमी को पूरे देश में नाग पंचमी का पर्व श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता का पूजन सुबह-सवेरे किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नागदेव है और इस दिन नागों की पूजा करने से धन, मनोवांछित फल और शक्ति की प्राप्ति होती है।

यह तिथि नागों को प्रसन्न करने के लिए श्रेष्ठ होती है। यही वजह है कि नाग पंचमी पर नागों की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण और विशेष माना गया है। इस तिथि पर नाग-नागिन के जोड़े को दूध से स्नान करवाने की परम्परा है। इस दिन पूजा करने से मनुष्य को सांपों के भय से मुक्ति तथा पुण्य की प्राप्ति होती है।

नाग पंचमी की तिथि पर मुख्य रूप से आठ नाग देवताओं की पूजा का विधान है। इन अष्टनागों के नाम है: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय। इनकी पूजा किसी भी व्यक्ति के लिए फलदायी साबित होती है। भविष्योत्तर पुराण में नाग पंचमी के संबंध में एक श्लोक लिखा है। जो नीचे दिया गया है -

वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।

ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥

एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥

पौराणिक मान्यता के अनुसार, धन की देवी मां लक्ष्मी की रक्षा नाग देवता ही करते हैं, साथ ही नाग पंचमी के दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

नाग पंचमी का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है इसलिए इन्हे पूजनीय माना गया है। नाग देवता को भगवान शिव ने अपने गले में हार के रूप में धारण किया हैं, वहीं शेषनाग रूपी शैया पर भगवान विष्णु विराजमान रहते है। सावन माह के आराध्य देव भगवान शंकर को माना गया हैं। 

ऐसी मान्यता है कि अमृत सहित नवरत्नों को प्राप्त करने के लिए जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तब संसार के कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में कार्य किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।

भोलेनाथ के गले में भी नाग देवता वासुकि लिपटें रहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नाग पंचमी के दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

नाग पंचमी से जुड़ीं मान्यताएँ

पुराणों के अनुसार,सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं: दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं जिन्हे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं। 

पुराणों के अनुसार, सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का सम्बन्ध नाग वंश से था, इसलिए उनके गर्भ से नाग उत्पन्न हुए। सभी नागों में आठ नाग को श्रेष्ठ माना गया है और इन अष्ट नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित हुई।

नाग पंचमी के दिन गुड़िया क्यों पीटा जाता है?

नाग पंचमी के अवसर पर एक अनूठी परंपरा भी है जो कई लोगों के लिए रहस्यमय और दिलचस्प है - वह है गुड़िया को पीटना।

इस परंपरा का कारण जानने के लिए हमें इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जाना होगा। नाग पंचमी पर गुड़िया पीटने की प्रथा के पीछे कई कहानियाँ और मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ कहानियाँ धार्मिक ग्रंथों में वर्णित हैं तो कुछ लोककथाओं और जनश्रुतियों में प्रचलित हैं।

 

  • लोककथाओं और पौराणिक कथाओं से प्रेरित: नाग पंचमी की परंपरा में गुड़िया पीटने का संबंध कई पौराणिक कथाओं और लोककथाओं से है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक समय में नागों और मनुष्यों के बीच संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष के दौरान नागों को शांत करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गुड़िया पीटने की प्रथा शुरू हुई।

  • सांपों से सुरक्षा की भावना: पुराने समय में लोग सांपों से बहुत डरते थे और उन्हें खतरनाक मानते थे। इसलिए, नाग पंचमी के दिन गुड़िया पीटकर सांपों की प्रतीकात्मक रूप से पिटाई की जाती थी, जिससे सांपों से बचाव और सुरक्षा की भावना जागृत होती थी।

  • फसल सुरक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में नाग पंचमी का संबंध कृषि से भी जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि गुड़िया पीटने से खेतों में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़े और सांप दूर रहते हैं, जिससे फसल सुरक्षित रहती है।

  • धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वास: नाग पंचमी पर गुड़िया पीटने की प्रथा को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में किया जाता है, जिसमें नाग देवता को खुश करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की भावना होती है।

  • संस्कृति और परंपरा का हिस्सा: हर समाज की अपनी विशिष्ट परंपराएँ और संस्कृतियाँ होती हैं। नाग पंचमी पर गुड़िया पीटने की प्रथा समय के साथ संस्कृति और परंपरा का हिस्सा बन गई है, जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं।

गुड़िया पीटने की परंपरा को समझने के लिए हमें समाज में व्याप्त सांपों के प्रति भय, सम्मान और धार्मिक आस्था को भी समझना होगा।

पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।

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प्रदोष व्रत
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अन्य त्यौहार

Delhi- Tuesday, 15 October 2024
दिनाँक Tuesday, 15 October 2024
तिथि शुक्ल द्वादशी
वार मंगलवार
पक्ष शुक्ल पक्ष
सूर्योदय 6:22:30
सूर्यास्त 17:51:40
चन्द्रोदय 16:31:51
नक्षत्र पूर्व भाद्रपद
नक्षत्र समाप्ति समय 22 : 9 : 59
योग वृद्धि
योग समाप्ति समय 14 : 14 : 17
करण I बालव
सूर्यराशि कन्या
चन्द्रराशि कुम्भ
राहुकाल 14:59:22 to 16:25:31
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