गोवर्धन पूजा का त्यौहार हर साल दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है जो श्रीकृष्ण एवं गिरिराज जी को समर्पित होता है। गोवर्धन को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है जो मुख्य रूप से दिवाली के अगले दिन की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण और गिरिराज महाराज गोवर्धन पर्वत के प्रति श्रद्धा एवं आस्था प्रकट करने के लिए गोवर्धन का पर्व मनाया जाता है। दीपावली के दूसरे दिन मध्य और उतर भारत में गोवर्धन पूजा करने का विधान है जिसे अन्नकूट भी कहते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गोवर्धन को पड़वा कहते हैं, साथ ही कुछ स्थानों पर इसे द्यूतक्रीड़ा दिवस भी कहा जाता हैं।
गोवर्धन का पर्व प्रकृति और मानव के सीधे संबंध को दर्शाता है और यह दिन दिवाली के उत्सव का चौथा दिवस होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा या अन्न कूट को प्रतिवर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, गोवर्धन का त्यौहार सामान्यरूप से अक्टूबर या नवंबर में आता है।
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 01 नवंबर, 2024 को शाम 06:16 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 08:21 अपराह्न 02 नवंबर, 2024 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 21 अक्टूबर 2025 को शाम 05:54 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 22 अक्टूबर 2025 को रात 08:16 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 09 नवंबर, 2026 को दोपहर 12:31 बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - 10 नवंबर 2026 को दोपहर 02:00 बजे प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 29 अक्टूबर 2027 को शाम 07:05 बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - 05:51 अपराह्न 30 अक्टूबर 2027 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 18 अक्टूबर 2028 को सुबह 08:26 बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - 19 अक्टूबर 2028 को पूर्वाह्न 05:00 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 09:53 पूर्वाह्न 06 नवंबर, 2029 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 06:07 पूर्वाह्न 07 नवंबर, 2029 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 01:46 पूर्वाह्न 27 अक्टूबर 2030 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 27 अक्टूबर 2030 को रात 10:36 बजे प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 02:38 पूर्वाह्न 15 नवंबर, 2031 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 16 नवंबर 2031 को पूर्वाह्न 12:28 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - 11:14 पूर्वाह्न 03 नवंबर, 2032 प्रतिपदा तिथि समाप्त - 04 नवंबर, 2032 को पूर्वाह्न 11:44
गोवर्धन पूजा सायंकला मुहूर्त - 03:23 अपराह्न से 05:35 अपराह्न
अवधि - 02 घंटे 12 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकला मुहूर्त - 03:29 अपराह्न से 05:44 अपराह्न
अवधि - 02 घंटे 16 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकला मुहूर्त - 03:24 अपराह्न से 05:38 अपराह्न तक
अवधि - 02 घंटे 13 मिनट
गोवर्धन पूजा सयंकला मुहूर्त - 03:31 अपराह्न से 05:48 अपराह्न
अवधि - 02 घंटे 17 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकला मुहूर्त - दोपहर 03:26 बजे से शाम 05:40 बजे तक
अवधि - 02 घंटे 14 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकला मुहूर्त - 03:19 अपराह्न से 05:28 अपराह्न तक
अवधि - 02 घंटे 09 मिनट
द्युत क्रीड़ा गुरुवार, नवंबर 4, 2032
गोवर्धन पूजा के साथ अनेक धार्मिक अनुष्ठान और परम्पराएं जुडी हुई है। इस दिन भगवान कृष्ण और गिरिराज पर्वत का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गोवर्धन पूजा को ऎसे करें :
गोवर्धन पर सर्वप्रथम प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होने के बाद शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं।
गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाने के बाद पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति बनाएं,मध्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें।
इसके बाद गोवर्धन पर्वत की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। अब पूजा के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें, साथ ही गोवर्धन पूजा के उपरांत अन्नकूट का भोग लगाएं।
इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनें और भोग को प्रसाद के रूप में वितरित करें। गोवर्धन पूजन के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं करें।
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव को करने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्यता की प्राप्ति होती है। इस पर्व से दरिद्रता का भी नाश होता है और व्यक्ति को सुखी और समृद्ध जीवन की प्राप्ति होती है। गोवर्धन के पर्व से जुड़ीं ऐसी मान्यता है अगर इस दिन कोई व्यक्ति दुखी रहता है तो वह वर्षभर दुखी ही रहेगा इसलिए हर साल गोवर्धन को बहुत ही आनंदपूर्वक मनाया जाता है। गोवर्धन पूजन से घर-परिवार में धन, संतान और गौ रस में वृद्धि होती है।
गोवर्धन के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। इस अवसर पर सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों की पूजा की जाती है। इस त्यौहार पर विशेष रूप से गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान करवाकर धूप-चंदन एवं पुष्प माला पहनाकर उनका पूजन करने का रिवाज है और गौमाता को मिठाई खिलाकर उनकी आरती की जाती हैं।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा हिन्दू संप्रदाय का लोकप्रिय एवं प्रमुख त्यौहार है। गोवर्धन का शाब्दिक रूप से तात्पर्य है, ’गो’ का अर्थ है गाय और ’वर्धन’ का अर्थ है पोषण। गोवर्धन पूजा के दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग तैयार करके भगवान श्रीकृष्ण को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। घरों के आँगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और गाय, बछड़ो आदि की आकृति बनाकर पूजा की जाती है।
धार्मिक दृष्टि से गोवर्धन का त्यौहार अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है ओर इस पर्व को देशभर में लोग अनेक मान्यताओं एवं परम्पराओं के साथ मनाते है। गुजरात में गोवर्धन नए साल के आरम्भ के रूप में चिन्हित है, वहीँ इस दिन को महाराष्ट्र में 'बाली पड़वा' या 'बाली प्रतिपदा' के रूप में मनाया जाता है।
इसी प्रकार उत्तर भारत में विशेषतः मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना आदि स्थानों पर गोवर्धन की भव्यता और अलग ही रौनक देखने को मिलती है। यह वही स्थान है जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त गोकुलवासियों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था तथा देवराज इंद्र के अहंकार का नाश किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार,भगवान कृष्ण ने ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा का आरंभ किया था। इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज के समस्त नर-नारियों और पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। यही वजह है कि गोवर्धन पूजा में भगवान गिरिराज के साथ श्रीकृष्ण के पूजन का भी विधान है। गोवर्धन पर्वत की पूजा द्वारा मानव प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
विष्णु पुराण में गोवर्धन से सम्बंधित एक कथा का वर्णन मिलता है। स्वर्ग के राजा इंद्र को अपनी शक्तियों पर अहंकार हो गया था और इसी अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा एक लीला रचाई गई थी। शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा इस प्रकार है:
एक बार सभी गोकुलवासी तरह-तरह के व्यंजन बना रहे थे, साथ ही ख़ुशी से गीत गा रहे थे। यह सब दृश्य देखकर भगवान कृष्ण ने मैया यशोदा से पूछा कि, आप सभी किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? श्रीकृष्ण के सवाल पर मैया यशोदा ने कहा कि, हम देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। इस जवाब पर श्रीकृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र देव की पूजा क्यों करते हैं। इस पर मैया यशोदा ने उत्तर दिया, इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है जिससे अन्न की पैदावार भी अच्छी होती है, हमारी गायों को चारा मिलता है।
मैया यशोदा की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, यदि ऐसा ही है तो हमें गोवर्धन पर्वत का पूजन करना चाहिए, क्योंकि हमारी गाय वहीं चरती है, वहां स्थित पेड़-पौधों की वजह से बारिश होती है। श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना आरम्भ कर दिया।
यह दृश्य देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और इस अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। भयंकर तूफान और प्रलयकारी वर्षा देखकर सभी गोकुलवासी भयभीत हो गए। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर उठा लिया और समस्त गोकुलवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। यह देखकर देव इंद्र ने बारिश को ओर तेज कर दिया लेकिन निरंतर 7 दिन की मूसलाधार बारिश के बावजूद भी गोकुलवासियों को कोई क्षति नहीं पहुंची।
इसके बाद देव इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता है। देवराज इंद्र को जब इस बात का ज्ञान हुआ कि वह साक्षात भगवान श्रीकृष्ण से मुकाबला कर रहे थे, इसके पश्चात इंद्र देव ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की और स्वयं श्री कृष्ण का पूजन कर उन्हें भोग लगाया। द्वापर युग में घटित हुई इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा को करने की शुरुआत हुई।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Thursday, 21 November 2024 |
तिथि | कृष्ण षष्ठी |
वार | गुरुवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:11 |
सूर्यास्त | 17:25:32 |
चन्द्रोदय | 22:44:5 |
नक्षत्र | पुष्य |
नक्षत्र समाप्ति समय | 15 : 37 : 29 |
योग | शुक्ल |
योग समाप्ति समय | 12 : 1 : 21 |
करण I | वणिज |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 13:26:54 to 14:46:26 |