भाई दूज या भैया दूज (bhaiya dooj) बहनों का अपने भाई के प्रति विश्वास एवं प्रेम का पर्व है जो भैया दूज, यम द्वितीया एवं भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से जाना जाता है। इस त्यौहार को मुख्य रूप से दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। राखी के बाद भाई दूज (bhai dooj) ही साल का एक ऐसा त्यौहार है जिसमें बहनों और भाइयों के स्नेह और पवित्रता को चिन्हित करता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, भैया दूज को हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस त्यौहार को अत्यंत उत्साह एवं प्रेम से भाई ओर बहनों द्वारा मनाया जाता है। भाई दूज की रौनक पूरे देश में अलग ही देखने को मिलती है। महाराष्ट्र में भाई दूज को भाऊ-बीज और पश्चिम बंगाल में भाई फोंटा कहा जाता है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्तें को मजबूत करता है।
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 22, 2025 को 08:16 पी एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 23, 2025 को 10:46 पी एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 10, 2026 को 02:00 पी एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - नवम्बर 11, 2026 को 03:53 पी एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 30, 2027 को 05:51 पी एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 31, 2027 को 05:12 पी एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 19, 2028 को 05:00 ए एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 20, 2028 को 01:58 ए एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 07, 2029 को 06:07 ए एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - नवम्बर 08, 2029 को 02:37 ए एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 27, 2030 को 10:36 पी एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 28, 2030 को 07:21 पी एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 16, 2031 को 12:28 ए एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - नवम्बर 16, 2031 को 09:59 पी एम बजे
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 04, 2032 को 11:44 ए एम बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - नवम्बर 05, 2032 को 11:46 ए एम बजे
भाई दूज हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसमें भाई-बहन के रिश्ते की मिठास और सुरक्षा का वादा शामिल होता है। इस त्योहार पर पूजा विधि को सही तरीके से करना शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं भाई दूज पर पूजा की सही विधि:
पूजा की थाली में निम्न सामग्री रखें:
कुमकुम, चंदन, सिंदूर
चावल (अक्षत )
फल और फूल
मिठाई
पान, सुपारी
काले चने और बताशे
चौक बनाना: शुभ मुहूर्त में सबसे पहले चावल के घोल या मिश्रण से भूमि पर एक चौक (आकृति) बनाएं।
भाई को बैठाएं: इस चौक पर अपने भाई को पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठाएं।
तिलक करें: बहनें पूजा की थाली से कुमकुम, चंदन और चावल से भाई का तिलक करें।
भोग चढ़ाएं: भाई को मिठाई, फूल, पान, सुपारी, और काले चने दें।
आरती करें:
तिलक के बाद दीये से भाई की आरती उतारें और उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करें।
उपहार और आशीर्वाद
तिलक और आरती के बाद भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं।
उपहार के साथ, भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन भी देते हैं।
भाई दूज पर इस विधिपूर्वक पूजा करने से भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम और विश्वास और अधिक गहरा होता है।
भाई दूज हिन्दुओं का एक प्रमुख तथा प्रसिद्ध त्यौहार है जो अधिकतर हिन्दुओं द्वारा देश भर में प्रमुखता से मनाया जाता है। भाई दूज का पर्व पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का अंतिम दिन होता है। भाई दूज एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के बीच के पवित्र बंधन के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। यह भाई-बहन को एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं प्रेम प्रकट करने का शानदार अवसर है। इस तिथि पर सभी बहनें अपने भाइयों के लिए एक सुखी, स्वस्थ और समृद्धि जीवन की कामना करती हैं। वहीँ भाई अपनी बहनों के प्रति अपना स्नेह जताने के लिए कोई उपहार भेंट करते हैं। भाई-बहन के इस पवित्र पर्व पर पूरा परिवार एक साथ एकत्रित होता है, मिठाई और अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते है।
भाई दूज का अपना विशिष्ट धार्मिक महत्व है जो धर्म ग्रंथों में वर्णित है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल की द्वितीया तिथि पर मृत्यु के देवता यम ने अपनी बहन द्वारा किये गए आदर-सत्कार से प्रसन्न होकर वरदान प्राप्त किया था। इस वजह से ही भाईदूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। यम देव द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार जो भाई-बहन इस दिन यमुना में स्नान करके यम पूजा करेगा, उसे मृत्यु के बाद यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा।
सूर्य पुत्री यमुना को समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी माना गया हैं। यही वजह है कि यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और यमुना देवी व यमदेव की पूजा करने का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार, भाई दूज तिथि पर पूजा करने से यमराज प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
हिंदू धर्मग्रंथों में भाई दूज से जुड़ीं अनेक कथाओं का वर्णन मिलता हैं। यहाँ हम आपको शास्त्रों में बताई गई कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो इस प्रकार है:
प्राचीनकाल में भाई दूज की तिथि पर यमराज अपनी बहन यमुना के निमंत्रण पर उनके घर गए थे, तब से ही भाई दूज या यम द्वितीया की परंपरा का आरंभ हुआ। सूर्य देव के पुत्र यमराज और देवी यमी भाई-बहन थे। यमुना देवी के कई बार निमंत्रण देने पर एक दिन यमराज यमुना के घर पहुंचे। इस अवसर पर यमुना ने यमराज को भोजन कराया और माथे पर तिलक करने के बाद उनके खुशहाल जीवन की कामना की। इसके पश्चात जब यमराज ने अपनी बहन यमुना से वरदान के लिए कहा, तब यमुना जी ने कहा कि, हर साल आप इस दिन पर मेरे घर आया करो और जो बहन इस दिन अपने भाई का तिलक करेगी उसे मृत्यु भय नहीं होगा। अपनी बहन यमुना की बात सुनकर यमराज को प्रसन्नता हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया। उस दिन से ही भाई दूज के त्यौहार को आज तक निरंतर मनाया जा रहा है। इस दिन यमुना नदी में स्नान करने से भाई-बहन को पुण्य की प्राप्ति होती है।
धर्मशास्त्रों में एक अन्य पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार, भाई दूज तिथि पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध करने के बाद द्वारिका नगरी लौटे थे। इस अवसर पर भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फूल, फूल, मिठाई और अनेकों दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। देवी सुभद्रा ने भगवान श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक करके उनकी दीर्घायु की कामना की थी। इस दिन से ही भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Saturday, 18 January 2025 |
तिथि | कृष्ण पंचमी |
वार | शनिवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 7:15:2 |
सूर्यास्त | 17:49:9 |
चन्द्रोदय | 22:3:28 |
नक्षत्र | पूर्व फाल्गुनी |
नक्षत्र समाप्ति समय | 14 : 53 : 18 |
योग | शोभन |
योग समाप्ति समय | 25 : 16 : 55 |
करण I | कौलव |
सूर्यराशि | मकर |
चन्द्रराशि | सिंह |
राहुकाल | 09:53:33 to 11:12:49 |