दुर्गा पूजा 2024

bell iconShare

दुर्गा पूजा हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण त्यौहार है जो शक्ति की आराधना का पर्व है। यह पर्व दुनियाभर में दुर्गा उत्सव के नाम से विख्यात है। दुर्गा पूजा का उत्सव निरंतर 10 दिनों तक चलता है। इस त्यौहार को देवी दुर्गा के भक्तों द्वारा बहुत ही उत्साह एवं जोश के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा की वास्तविक शुरुआत षष्ठी तिथि से होती है। इस पर्व को पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर, बिहार और झारखंड में बड़े ही हर्षोल्लास एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दुर्गा पूजा को प्रतिवर्ष अश्विन के महीने में मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, दुर्गा उत्सव सितम्बर या अक्टूबर के महीने में आता है। दुर्गा पूजा में षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयादशमी तिथि का विशेष महत्व है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। 

दुर्गा पूजा 2024 की तिथि एवं मुहूर्त

bell icon दुर्गा पूजा मुहुर्तbell icon
bell icon दुर्गा पूजा मुहुर्तbell icon

दुर्गा पूजा के प्रत्येक दिन का महत्व

दुर्गा पूजा में षष्ठी तिथि का महत्व: 

दुर्गा पूजा की विधिपूर्वक शुरुआत का आरम्भ षष्ठी तिथि से होता है और इस दिन को महालय कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि महालय के दिन देवों और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ था जिसमे अनेक देवताओं और ऋषियों की मृत्यु हुई थी। इस युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हुए सभी देवताओं और ऋषियों को महालय पर तर्पण दिया जाता है। षष्ठी तिथि पर बिल्व निमंत्रण पूजा, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास का विधान है।

दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का महत्व 

दुर्गा पूजा का प्रथम दिन होता है महासप्तमी और इस दिन नवपत्रिका पूजा को विधि-विधान से करने की परम्परा रही है। नवपत्रिका को कलाबाऊ पूजा के नाम से भी जाना जाता हैं। बंगाल, असम और ओडिशा आदि राज्यों में नौ तरह की पत्तियों से दुर्गा पूजा को सम्पन्न करने का विधान है। इस पूजा के अंतर्गत जिन नौ पत्ते का प्रयोग किया जाता हैं। उनमें हर एक पेड़ का पत्ता देवी के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करता हैं। नवपत्रिका के नौ पत्ते इस प्रकार हैं, केला, कच्वी, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिल्वा और जौ आदि।

दुर्गा पूजा में अष्टमी तिथि का महत्व 

दुर्गा पूजा का द्वितीय दिन महाष्टमी के रूप में मनाया जाता है जिसे महा दुर्गाष्टमी भी कहा जाता हैं। महाष्टमी पर देवी दुर्गा की पूजा का विधान  महासप्तमी के समान ही होता है, लेकिन इस दिन प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। महाष्टमी तिथि पर महास्नान करने के बाद देवी दुर्गा की षोडशोपचार पूजा की जाती है। महाष्टमी के दिन मिट्टी से बने नौ कलश स्थापित किये जाते हैं, साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है। महाष्टमी पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन होता है।

दुर्गा पूजा में नवमी तिथि का महत्व

महानवमी तिथि दुर्गा पूजा उत्सव का तीसरा एवं अंतिम दिन होता है और इस दिन का आरम्भ भी महास्नान तथा षोडशोपचार पूजन के साथ होता है। महानवमी के दिन देवी दुर्गा की उपासना महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है जिसका अर्थ होता है दुष्ट असुर महिषासुर का नाश करने वाली। पौराणिक मान्यता है कि नवमी तिथि पर देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। इस दिन महानवमी पूजा, नवमी हवन और दुर्गा बलिदान जैसी परंपराओं को निभाया जाता है।

दुर्गा पूजा में दशमी तिथि का महत्व 

दशमी तिथि को विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भक्तों द्वारा माता दुर्गा की प्रतिमाओं की ढोल-नगाड़ों के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। देवी दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जित करने के लिए निकट के जलाशयों या नदी पर ले जाया जाता है। इसके बाद भक्तगण देवी दुर्गा को आस्था एवं भक्तिभाव से विदा करते है।

दुर्गा पूजा का महत्व 

सनातन धर्म में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर दशमी तिथि तक मनाये जाने वाले शारदीय नवरात्रि की विशेष महत्ता है और इन्ही शारदीय नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा का उत्सव भी मनाने का विधान है।  दुर्गापूजा, नवदुर्गा और नवरात्रि चाहे इस पर्व को किसी भी नाम से पुकारा जाए, लेकिन इन 9 दिनों की धूम और रौनक देश भर में दिखाई देती है जो वातावरण और मन दोनों को भक्तिमय बना देती है। इसी प्रकार दुर्गा पूजा के अंतिम दिन विजयदशमी को भी बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाने का प्रचलन है।    

शारदीय नवरात्रि में विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाज़ एवं धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न किया जाता हैं, जो हृदय को आस्था, प्रेम एवं अध्यात्म से भर देता है। शरद नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा दोनों ही आदिशक्ति माता दुर्गा को समर्पित होते है। माँ दुर्गा की उपासना के पर्व की रौनक देशभर में देखने को मिलती है। 

दुर्गा पूजा का धार्मिक महत्व 

दुर्गा पूजा में देवी दुर्गा की उपासना एवं आराधना की जाती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि देवी दुर्गा द्वारा बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के रूप में दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा के उत्सव को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। दुर्गा पूजा से जुड़ीं एक अन्य मान्यता ये भी है कि दुर्गा पूजा के दौरान स्वयं माता दुर्गा कैलाश पर्वत को छोड़कर धरती पर अपने भक्तों के बीच निवास के लिए आती हैं। अपने भक्तों पर कृपा बरसाने के लिए देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ माता दुर्गा धरती पर प्रकट होती हैं। 

दुर्गा पूजा से जुड़ी मान्यताएं

दुर्गा पूजा के दौरान उत्तर भारत में नवरात्र के साथ ही दशमी के दिन रावण पर भगवान श्री राम की विजय का उत्सव विजयदशमी मनाया जाता है|  उत्तर भारत में इन दिनों में रामलीला के मंचन किये जाते हैं| तो वहीं पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का दृश्य अलग होता है|  दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में ही मनाया जाता है| मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है| जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जो कुछ इस प्रकार है-

हिन्दू पुराणों के अनुसार - एक समय में राक्षस राज महिषासुर हुआ करता था, जो बहुत ही शक्तिशाली था| स्वर्ग पर आधिपत्य ज़माने के लिए उसने ब्रह्म देव की घोर तपस्या की|  जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और महिषासुर से वर मांगने को कहा| राक्षस राज ने अमरता का वर माँगा परंतु ब्रह्मा ने इसे देने से इंकार कर इसके बदले महिषासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु प्राप्ति का वरदान दिया| महिषासुर प्रसन्न होकर सोचा मुझ जैसे बलशाली को भला कोई साधारण स्त्री कैसे मार पायेगी?, अब मैं अमर हो गया हूँ| कुछ समय बाद वह स्वर्ग पर आक्रमण कर देता है| देवलोक में हाहाकार मच उठता है|सभी देव त्रिदेव के पास पहुंचते हैं और इस विपत्ति से बाहर निकालने का आग्रह करते हैं| तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया| यह शक्ति एक स्त्री रूप में प्रकट हुई| जिन्हें दुर्गा कहा गया| महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया| तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है|

इस पर्व से जुड़ी एक और मान्यता है कि, भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा की आराधना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था| श्री राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण का संहार किया, तब से उस दिन को विजयादशमी कहा जाने लगा|

पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।

bell icon
bell icon
bell icon
कालभैरव जयन्ती
कालभैरव जयन्ती
22 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:अष्टमी
उत्पन्ना एकादशी
उत्पन्ना एकादशी
26 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:एकादशी
प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत
28 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:त्रयोदशी
मासिक शिवरात्रि
मासिक शिवरात्रि
29 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:चतुर्दशी
चोपड़ा पूजा
चोपड़ा पूजा
01 नवम्बर 2024
Paksha:शुक्ल
Tithi:प्रथमा
केदार गौरी व्रत
केदार गौरी व्रत
01 नवम्बर 2024
Paksha:शुक्ल
Tithi:प्रथमा

अन्य त्यौहार

Delhi- Thursday, 21 November 2024
दिनाँक Thursday, 21 November 2024
तिथि कृष्ण षष्ठी
वार गुरुवार
पक्ष कृष्ण पक्ष
सूर्योदय 6:49:11
सूर्यास्त 17:25:32
चन्द्रोदय 22:44:5
नक्षत्र पुष्य
नक्षत्र समाप्ति समय 15 : 37 : 23
योग शुक्ल
योग समाप्ति समय 12 : 1 : 12
करण I वणिज
सूर्यराशि वृश्चिक
चन्द्रराशि कर्क
राहुकाल 13:26:54 to 14:46:26
आगे देखें

एस्ट्रो लेख और देखें
और देखें