तुलसी विवाह 2024

bell iconShare

हिन्दू धर्म के सर्वाधिक शुभ दिनों में से एक तुलसी विवाह को माना जाता है जो भगवान विष्णु और माँ तुलसी को समर्पित होता है। तुलसी विवाह के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की शालिग्राम के रूप में और तुलसी के पौधे की शादी की जाती है। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन पूरे भारत में धूमधाम और अत्यंत उत्साह से किया जाता है। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार, तुलसी विवाह को हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर किया जाता है। तुलसी विवाह का पर्व ग्यारहवें चंद्र दिवस अर्थात प्रबोधिनी एकादशी से आरम्भ होता है और पूर्णिमा की रात्रि या कार्तिक पूर्णिमा तक निरंतर चलता है। भारत के कई भागों में तुलसी विवाह का पर्व ग्यारहवें या बारहवें चंद्र दिवस पर मनाया जाता है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व सामान्यरूप से अक्टूबर या नवंबर महीने में आता है। इस दिन भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालीग्राम तथा देवी तुलसी का विवाह सम्पन्न करने का विधान है। 

तुलसी विवाह 2024 तिथि एवं मुहूर्त 

bell icon तुलसी विवाह मुहुर्तbell icon
bell icon तुलसी विवाह मुहुर्तbell icon

तुलसी विवाह से जुड़ें रीति-रिवाज एवं परम्पराएं

भगवान विष्णु और तुलसी विवाह के रीति-रिवाज सामान्य हिंदू विवाह समारोह की रीति-रिवाजों और परंपराओं के समान ही होते हैं जो मंदिर और घर दोनों जगहों पर किये जा सकते है। 

  • तुलसी विवाह के दिन उपवास रखा जाता है जिसे संध्याकाल में विवाह समारोह के आरम्भ होने के पश्चात ही तोड़ा जाता है। 

  • हिंदू विवाह की भांति ही फूलों और रंगोली से एक सुंदर ‘मंडप’ का निर्माण किया जाता है। 

  • अब तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराने के बाद उन्हें फूलों या मालाओं से सजाया जाता है। 

  • तुलसी विवाह के दौरान, तुलसी का दुल्हन की तरह उज्ज्वल लाल साड़ी, गहने और बिंदी से शृंगार किया जाता है।

  • भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) को पारंपरिक धोती से सजाया जाता है। 

  • इसके बाद जोड़ी को विवाह समारोह के लिए धागे से बांधा जाता है।

  • इस विवाह समारोह को पुजारी और सभी आयु की महिलाओं द्वारा भी सम्पन्न किया जा सकता है। 

  • तुलसी विवाह समारोह का अंत समस्त भक्तों द्वारा नवविवाहित युगल पर चावल और सिंदूर की वर्षा के साथ हो जाता है। 

  • इस विवाह समारोह के बाद, सभी भक्तों को ‘प्रसाद’ या ‘भोग’ वितरित किया जाता है।

तुलसी और शालिग्राम की विवाह कथा 

धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जालंधर नामक राक्षस हुआ करता था जिसने चारों तरफ उत्पात मचाया हुआ था। जालंधर बेहद ही वीर और पराक्रमी था और उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। अपनी पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही जालंधर इतना वीर बन पाया था। ऐसे में उसके आंतक और अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर श्रीहरि विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला किया। 

इसके पश्चात विष्णु जी ने जालंधर का रूप धारण करके छल से वृंदा को स्पर्श किया। राक्षस जालंधर पराक्रम से युद्ध कर रहा था, लेकिन वृंदा का सतीत्व भंग होते ही वह युद्ध में मारा गया। वृंदा का सतीत्व भंग होते ही उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा। यह देखकर वृंदा क्रोधित हो उठी। उसने यह सोचा कि अगर मेरे पति यहाँ हैं तो आखिर मुझे स्पर्श किसने किया? उस समय वृंदा ने अपने सामने भगवान विष्णु को खड़े पाया, उस समय गुस्से में वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि,  ‘जिस प्रकार तुमने मुझे छल से मेरे पति का वियोग दिया है उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी भी का भी छल पूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लेना होगा।’ 

इतना कहने के बाद वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। ऐसा कहा जाता है कि वृंदा के श्राप से ही भगवान श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता माता का वियोग सहना पड़ा था। जहां पर वृंदा सती हुई थी वहां पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

तुलसी विवाह का महत्व 

तुलसी विवाह का दिन सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है और भारत में यह तिथि हिंदू शादियों के मौसम की शुरुआत के रूप में चिन्हित है। इस दिन को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और इसी दिन तुलसी विवाह करने का भी प्रावधान है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इन चार महीनों अर्थात चार्तुमास में किसी भी प्रकार का शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह से ही शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन तुलसी विवाह को आयोजित करना अत्यंत शुभ एवं मंगलदायक सिद्ध होता है।

ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य अपने घर में तुलसी विवाह एवं पूजा का आयोजन करता है, उसके घर-परिवार से बड़े से बड़े क्लेश तथा विपत्तियां दूर हो जाती हैं, साथ ही घर से दुखों का अंत और धन-संपत्ति में वृद्धि होने लगती है। अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके घर में नकारात्मक शक्तियों का वास है तो आपको निश्चित रूप से अपने घर में तुलसी विवाह का आयोजन करना चाहिए। तुलसी विवाह के दिन यज्ञ और सत्यनारायण की कथा सम्पन्न करने से भी विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।  

तुलसी विवाह का पर्व श्रीहरि विष्णु से तुलसी के पौधे के विवाह का स्मरण कराता है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार भी कहा गया है। यह उत्सव प्रबोधिनी एकादशी तथा कार्तिक पूर्णिमा के बीच मनाया जाता है। तुलसी विवाह का उपवास और पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा सुखी वैवाहिक जीवन और उनके पति एवं बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, इसी प्रकार कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। 

पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।

bell icon
bell icon
bell icon
कालभैरव जयन्ती
कालभैरव जयन्ती
22 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:अष्टमी
उत्पन्ना एकादशी
उत्पन्ना एकादशी
26 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:एकादशी
प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत
28 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:त्रयोदशी
मासिक शिवरात्रि
मासिक शिवरात्रि
29 नवम्बर 2024
Paksha:कृष्ण
Tithi:चतुर्दशी
चोपड़ा पूजा
चोपड़ा पूजा
01 नवम्बर 2024
Paksha:शुक्ल
Tithi:प्रथमा
केदार गौरी व्रत
केदार गौरी व्रत
01 नवम्बर 2024
Paksha:शुक्ल
Tithi:प्रथमा

अन्य त्यौहार

Delhi- Thursday, 21 November 2024
दिनाँक Thursday, 21 November 2024
तिथि कृष्ण षष्ठी
वार गुरुवार
पक्ष कृष्ण पक्ष
सूर्योदय 6:49:11
सूर्यास्त 17:25:32
चन्द्रोदय 22:44:5
नक्षत्र पुष्य
नक्षत्र समाप्ति समय 15 : 37 : 29
योग शुक्ल
योग समाप्ति समय 12 : 1 : 21
करण I वणिज
सूर्यराशि वृश्चिक
चन्द्रराशि कर्क
राहुकाल 13:26:54 to 14:46:26
आगे देखें

एस्ट्रो लेख और देखें
और देखें