Tulsi Vivah 2025: क्या आपने कभी सोचा है कि तुलसी विवाह को इतना पवित्र और शुभ क्यों माना जाता है? हिंदू धर्म में यह दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य मिलन का प्रतीक है। इस दिन पूरे भारत में भक्त बड़ी श्रद्धा और उत्साह से तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि तुलसी विवाह का पर्व कब और कैसे मनाया जाता है? हिंदू पंचांग के अनुसार, यह शुभ पर्व हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से शुरू होकर यह उत्सव कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
क्या आप जानते हैं कि इस दिन का समय इतना खास क्यों होता है? तुलसी विवाह का दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह भगवान विष्णु के विश्राम से जागरण का प्रतीक है। यही कारण है कि अक्टूबर या नवंबर में आने वाला यह पर्व पूरे देश में अपार भक्ति के साथ मनाया जाता है।
तुलसी विवाह मुहुर्त
तुलसी विवाह मुहुर्त
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 02, 2025 को 07:31 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 03, 2025 को 05:07 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 21, 2026 को 06:31 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 22, 2026 को 04:56 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 10, 2027 को 09:11 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 11, 2027 को 10:07 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 29, 2028 को 06:20 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 30, 2028 को 08:50 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 16, 2029 को 11:28 पी एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 18, 2029 को 01:53 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 06, 2030 को 03:43 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 07, 2030 को 04:22 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 25, 2031 को 03:43 ए एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 26, 2031 को 03:20 ए एम बजे
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 13, 2032 को 08:59 पी एम बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 14, 2032 को 06:32 पी एम बजे
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:50 बजे से सुबह 05:42 बजे तक।
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:42 बजे से दोपहर 12:26 बजे तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 01:55 बजे से दोपहर 02:39 बजे तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:35 बजे से शाम 06:01 बजे तक।
अमृत काल- सुबह 09:29 बजे से सुबह 11:00 बजे तक।
त्रिपुष्कर योग- सुबह 07:31 बजे से शाम 05:03 बजे तक।
लाभ - उन्नति: सुबह 09:19 से सुबह 10:42 बजे तक।
अमृत - सर्वोत्तम: सुबह 10:42 से दोपहर 12:04 बजे तक।
शुभ - उत्तम: दोपहर 01:27 से दोपहर 02:50 बजे तक।
शुभ - उत्तम: शाम 05:35 से शाम 07:13 बजे तक।
तुलसी विवाह के लिए आप कुछ प्रमुख मंत्रों का जाप कर सकते हैं, जैसे कि तुलसी स्तुति मंत्र "नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये" या "तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।"। इसके अतिरिक्त, विवाह-विशिष्ट मंत्रों में "ॐ सृष्टिकर्ता मम विवाह कुरु कुरु स्वाहा" और "ॐ श्री तुलसी विद्महे विष्णु प्रियाय धीमहि तनो वृंदा प्रचोदयात" का भी उपयोग किया जाता है।
हिंदू धर्म में तुलसी जी को माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है। तुलसी विवाह के दिन उन्हें दुल्हन के रूप में सजाया जाता है और भगवान विष्णु (शालिग्राम जी) से उनका पवित्र विवाह संपन्न कराया जाता है। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और देवी लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि तुलसी विवाह के दिन किया गया शृंगार नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर वातावरण को पवित्र बनाता है।
तुलसी माता के शृंगार में निम्न वस्तुओं की आवश्यकता होती है —
नई चुनरी (लाल, पीली या हरी रंग की)
हल्दी, कुमकुम, और चंदन
फूल (विशेषकर गेंदा) और तुलसी पत्ते
कृत्रिम या सोने-चांदी के आभूषण
बिंदी, सिंदूर
छोटी साड़ी या कपड़ा
दीपक और अगरबत्ती
मिठाई, फल और पान
सबसे पहले तुलसी के पौधे को गंगाजल या स्वच्छ जल से स्नान कराएं।
फिर गमले या मडुआ को साफ कपड़े से पोंछकर नई चुनरी ओढ़ाएं।
तुलसी जी को हल्दी, कुमकुम और चंदन लगाएं।
फूलों की मालाओं से तुलसी माता को सजाएं।
बिंदी, चूड़ी और आभूषण पहनाकर उन्हें दुल्हन का रूप दें।
दीपक जलाकर आरती करें और भगवान शालिग्राम जी के साथ तुलसी जी का विवाह संपन्न करें।
विवाह के बाद तुलसी माता को मिठाई, फल और पान का भोग लगाएं तथा परिवार सहित आरती करें।
भगवान विष्णु और तुलसी विवाह के रीति-रिवाज सामान्य हिंदू विवाह समारोह की रीति-रिवाजों और परंपराओं के समान ही होते हैं जो मंदिर और घर दोनों जगहों पर किये जा सकते है।
तुलसी विवाह के दिन उपवास रखा जाता है जिसे संध्याकाल में विवाह समारोह के आरम्भ होने के पश्चात ही तोड़ा जाता है।
हिंदू विवाह की भांति ही फूलों और रंगोली से एक सुंदर ‘मंडप’ का निर्माण किया जाता है।
अब तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराने के बाद उन्हें फूलों या मालाओं से सजाया जाता है।
तुलसी विवाह के दौरान, तुलसी का दुल्हन की तरह उज्ज्वल लाल साड़ी, गहने और बिंदी से शृंगार किया जाता है।
भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) को पारंपरिक धोती से सजाया जाता है।
इसके बाद जोड़ी को विवाह समारोह के लिए धागे से बांधा जाता है।
इस विवाह समारोह को पुजारी और सभी आयु की महिलाओं द्वारा भी सम्पन्न किया जा सकता है।
तुलसी विवाह समारोह का अंत समस्त भक्तों द्वारा नवविवाहित युगल पर चावल और सिंदूर की वर्षा के साथ हो जाता है।
इस विवाह समारोह के बाद, सभी भक्तों को ‘प्रसाद’ या ‘भोग’ वितरित किया जाता है।
धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जालंधर नामक राक्षस हुआ करता था जिसने चारों तरफ उत्पात मचाया हुआ था। जालंधर बेहद ही वीर और पराक्रमी था और उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। अपनी पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही जालंधर इतना वीर बन पाया था। ऐसे में उसके आंतक और अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर श्रीहरि विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला किया।
इसके पश्चात विष्णु जी ने जालंधर का रूप धारण करके छल से वृंदा को स्पर्श किया। राक्षस जालंधर पराक्रम से युद्ध कर रहा था, लेकिन वृंदा का सतीत्व भंग होते ही वह युद्ध में मारा गया। वृंदा का सतीत्व भंग होते ही उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा। यह देखकर वृंदा क्रोधित हो उठी। उसने यह सोचा कि अगर मेरे पति यहाँ हैं तो आखिर मुझे स्पर्श किसने किया? उस समय वृंदा ने अपने सामने भगवान विष्णु को खड़े पाया, उस समय गुस्से में वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि, ‘जिस प्रकार तुमने मुझे छल से मेरे पति का वियोग दिया है उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी भी का भी छल पूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लेना होगा।’
इतना कहने के बाद वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। ऐसा कहा जाता है कि वृंदा के श्राप से ही भगवान श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता माता का वियोग सहना पड़ा था। जहां पर वृंदा सती हुई थी वहां पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
तुलसी विवाह का दिन सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है और भारत में यह तिथि हिंदू शादियों के मौसम की शुरुआत के रूप में चिन्हित है। इस दिन को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा के बाद जागते हैं और इसी दिन तुलसी विवाह करने का भी प्रावधान है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इन चार महीनों अर्थात चार्तुमास में किसी भी प्रकार का शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह से ही शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन तुलसी विवाह को आयोजित करना अत्यंत शुभ एवं मंगलदायक सिद्ध होता है।
ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य अपने घर में तुलसी विवाह एवं पूजा का आयोजन करता है, उसके घर-परिवार से बड़े से बड़े क्लेश तथा विपत्तियां दूर हो जाती हैं, साथ ही घर से दुखों का अंत और धन-संपत्ति में वृद्धि होने लगती है। अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके घर में नकारात्मक शक्तियों का वास है तो आपको निश्चित रूप से अपने घर में तुलसी विवाह का आयोजन करना चाहिए। तुलसी विवाह के दिन यज्ञ और सत्यनारायण की कथा सम्पन्न करने से भी विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह का पर्व श्रीहरि विष्णु से तुलसी के पौधे के विवाह का स्मरण कराता है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार भी कहा गया है। यह उत्सव प्रबोधिनी एकादशी तथा कार्तिक पूर्णिमा के बीच मनाया जाता है। तुलसी विवाह का उपवास और पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा सुखी वैवाहिक जीवन और उनके पति एवं बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, इसी प्रकार कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए करती हैं।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।






| दिनाँक | Friday, 07 November 2025 |
| तिथि | कृष्ण तृतीया |
| वार | शुक्रवार |
| पक्ष | कृष्ण पक्ष |
| सूर्योदय | 6:38:2 |
| सूर्यास्त | 17:32:9 |
| चन्द्रोदय | 18:56:6 |
| नक्षत्र | रोहिणी |
| नक्षत्र समाप्ति समय | 24 : 35 : 9 |
| योग | परिघ |
| योग समाप्ति समय | 22 : 28 : 43 |
| करण I | विष्टि |
| सूर्यराशि | तुला |
| चन्द्रराशि | वृष |
| राहुकाल | 10:43:20 to 12:05:06 |