करवाचौथ व्रत का सुहागिन महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है जो विवाहित स्त्रियों का प्रमुख त्यौहार है। करवाचौथ के पर्व को पूरे देश में बेहद उत्साह एवं श्रद्धा से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म की विवाहित महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत अत्यधिक महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके अपने पति के लिए उपवास करती हैं।
हिन्दू विवाहित स्त्रियों के लिए करवा चौथ विशेष माना गया है। पंचांग के अनुसार, हर साल करवाचौथ के व्रत को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करने का विधान है। सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा जाता हैं। इस दिन निर्जला उपवास का पालन किया जाता है और चंद्र दर्शन से ही व्रत तोड़ा जाता है।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 20, 2024 को 06:46 ए एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 21, 2024 को 04:16 ए एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 09, 2025 को 10:54 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 10, 2025 को 07:38 पी एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 29, 2026 को 01:06 ए एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 29, 2026 को 10:09 पी एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 18, 2027 को 05:51 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 19, 2027 को 04:42 पी एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 07, 2028 को 03:35 ए एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 08, 2028 को 04:51 ए एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 25, 2029 को 10:34 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 27, 2029 को 12:52 ए एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 14, 2030 को 09:08 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 15, 2030 को 11:36 पी एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 02, 2031 को 02:36 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - नवम्बर 03, 2031 को 04:16 पी एम बजे चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 21, 2032 को 06:03 पी एम बजे चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 22, 2032 को 05:10 पी एम बजे
करवाचौथ पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद पूजास्थल की सफाई करें। अब सास द्वारा दी गई सरगी को ग्रहण करना चाहिए। इसके बाद भगवान की आराधना करें और व्रती निर्जला व्रत का संकल्प लें।
करवाचौथ के व्रत को सदैव सूर्यास्त होने के पश्चात संध्याकाल में चंद्र दर्शन के बाद ही तोड़ना चाहिए। व्रत के दौरान जलपान करने से बचें।
संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर समस्त देवी-देवताओं को स्थापित करें। करवाचौथ पूजन में 10 से 13 करवे (मिट्टी से बने कलश) को रखना चाहिए।
इस व्रत की पूजन सामग्री के लिए सिन्दूर, रोली,दीप, धूप, चन्दन आदि को थाली में सजाएं। इस पूजा में उपयोग किये जाने वाले दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी भरे, जिससे वह काफ़ी देर तक जलता रहे।
करवाचौथ पूजा को चंद्रोदय से लगभग एक घंटे पहले शुरू करना चाहिए। अगर परिवार की सभी स्त्रियाँ एकसाथ पूजा करती हैं, तो ये श्रेष्ठ होगा। करवाचौथ पूजन के दौरान करवा चौथ व्रत की कथा अवश्य करनी चाहिए।
करवाचौथ व्रत के दौरान चंद्र देव के दर्शन छलनी द्वारा करने चाहिए। दर्शन करने के बाद चंद्र देव को अर्घ्य देते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए।
इस दिन चन्द्रमा दर्शन के बाद बहू को एक थाली में सजाकर मिठाई, फल, मेवे, रूपये, वस्त्र आदि अपनी सास को देकर उनके पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।
करवा चौथ तिथि का अपना एक विशिष्ट महत्व है और इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही धार्मिक अनुष्ठानों का आरम्भ हो जाता है जो संध्याकाल तक निरंतर चलते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक कठोर व्रत रखकर अपने पति के जीवन की लम्बी आयु और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। भारत में मुख्यत: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान आदि राज्यों में करवाचौथ व्रत की रौनक देखने को मिलती है।
करवा चौथ के पावन अवसर पर कुँवारी कन्याओं द्वारा सुयोग्य एवं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखा जाता हैं। करवा चौथ के त्यौहार को विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, लेकिन सभी स्थान पर इसका महत्व तथा परम्पराएं एक समान हैं।
धार्मिक दृष्टि से भी करवा चौथ का अत्यंत महत्व है। करवा चौथ व्रत को संकष्ठी चतुर्थी भी कहा जाता है जो भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती हैं। इस दिन विवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए भगवान शंकर का पूजन करती हैं, साथ ही विघ्नहर्ता गणेश सहित शिव परिवार की उपासना भी की जाती है तथा चन्द्रमा के दर्शन करने के उपरांत व्रत को तोड़ा जाता है। चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को जल चढ़ाया जाता है। करवचौथ के व्रत को समस्त व्रतों में से कठिन माना जाता है जिसमे सूर्योदय से जल की एक बूँद या भोजन के एक ग्रास का भी सेवन करना निषेध होता हैं।
करवा चौथ व्रत कर्क चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मिट्टी के जिस पात्र से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है उसे करवा अथवा कर्क कहा जाता है। चंद्रमा को जल चढ़ाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को अर्घ कहते है। करवा चौथ पूजन में कर्क का अत्यंत महत्व है जिसका दान किसी योग्य स्त्री या ब्राहमण को किया जाता है।
करवा चौथ के दिन संपन्न की जाने वाली एक प्रमुख परंपरा हैं सरगी जो इस व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस व्रत का आरम्भ सरगी से ही होता है। यह एक प्रकार का विशेष भोजन होता है जिसका सेवन सूर्योदय से पहले किया जाता है। इस भोजन में मुख्य रूप से सेवैयाँ होती है जिसे सास द्वारा अपनी बहू के लिए विशेष रूप से बनाया जाता है। भारतीय परम्पराओं के अनुसार, सुहागिन महिलाएं करवा चौथ के दिन हाथों पर मेहँदी लगाती हैं जिसे शुभ माना जाता हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति को समर्पित होती हैं।
यदि किसी कारणवश करवाचौथ पर चाँद के दर्शन न हो सकें या चंद्रमाँ दर्शन न दें तो इन उपायों को अपनाकर आप करवाचौथ का व्रत खोल सकते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ पर चंद्रोदय के समय व्रत का पारण किया जा सकता है।
घर-परिवार के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद अपना व्रत तोड़ें।
चांद के दर्शन नहीं होने पर थाली में चावल लेकर उसे चांद का आकार देकर अर्घ्य दे सकते हैं।
पति के हाथों से जल ग्रहण करके करवाचौथ का व्रत तोड़े और अगले करवा चौथ पर चंद्र दर्शन करने का संकल्प लें।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Wednesday, 09 October 2024 |
तिथि | शुक्ल षष्ठी |
वार | बुधवार |
पक्ष | शुक्ल पक्ष |
सूर्योदय | 6:19:0 |
सूर्यास्त | 17:58:6 |
चन्द्रोदय | 12:11:12 |
नक्षत्र | मूल |
नक्षत्र समाप्ति समय | 29 : 15 : 32 |
योग | शोभन |
योग समाप्ति समय | 29 : 53 : 47 |
करण I | तैतिल |
सूर्यराशि | कन्या |
चन्द्रराशि | धनु |
राहुकाल | 12:08:33 to 13:35:57 |