रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम एवं बंधन को दर्शाता है। रक्षाबंधन या राखी का त्यौहार सदियों से मनाया जा रहा है जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना गया है। इस त्यौहार का मुख्य संदेश भाई और बहन के पवित्र बंधन को सम्मान देना होता है। ‘रक्षाबंधन’(Raksha Bandhan) का वास्तविक अर्थ होता है ‘रक्षा का बंधन’।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 08, 2025 को 02:12 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 09, 2025 को 01:24 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 27, 2026 को 09:08 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 28, 2026 को 09:48 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 16, 2027 को 10:28 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 17, 2027 को 12:58 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 04, 2028 को 11:51 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 05, 2028 को 01:39 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 23, 2029 को 06:47 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 24, 2029 को 07:20 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 12, 2030 को 06:23 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 13, 2030 को 04:13 पी एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 02, 2031 को 11:03 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 03, 2031 को 07:14 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 20, 2032 को 11:12 ए एम बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 21, 2032 को 07:16 ए एम बजे
हिन्दू पंचांग के अनुसार,रक्षाबंधन को प्रतिवर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता हैं; इसलिए इस राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह बहनों और भाइयों के प्रेम का पर्व है। देश के कुछ हिस्सों में रक्षाबंधन को राखरी के नाम से भी पुकारा जाता है।
इस वर्ष सावन की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त को सुबह 3:04 से प्रारम्भ हो जाएगी तथा पूरे दिन रहेगी, इसलिए रक्षाबंधन का पावन पर्व 19 अगस्त सोमवार के दिन मनाया जाएगा, इस बार सुबह से भद्रा भी लग जाएगी और दोपहर 1:29 तक रहेगी इसलिए राखी बांधने का शुभ समय दोपहर 1:30 के बाद ही होगा।
रक्षाबंधन पर सर्वप्रथम प्रातःकाल भाई-बहन स्नान करने के पश्चात ईश्वर की उपासना करते हैं।
इसके उपरांत बहनों द्वारा रोली, अक्षत, कुमकुम और दीपक जलाकर पूजा की थाली सजायी जाती हैं।
इस थाली में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर पूजा करते हैं।
अब बहनें भाइयों के माथे पर कुमकुम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके पश्चात बहने अपने भाई के दाएं हाथ की कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और भाई को मिठाई खिलाती हैं।
भाई राखी बंधवाने के बाद अपनी बहन को रक्षा का वचन और भेंट देते है।
इसके विपरीत, बहनें राखी बांधते समय अपने भाई की लम्बी आयु एवं सुख-शांति से पूर्ण जीवन की कामना करती है।
राखी या रक्षाबंधन हिन्दुओं का सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध पर्व है जिसका इंतजार सभी बहनों और भाइयों द्वारा वर्षभर उत्सुकता से किया जाता है। रक्षाबंधन के दिन सभी बहनें अपने भाई की सुख-समृद्धि एवं लंबी आयु के लिए कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांधती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन देते है।
यह एक ऐसा लोकप्रिय त्यौहार है जिसका इंतजार बहनें बहुत ही बेसब्री से करती है क्योंकि रक्षाबंधन भाई और बहन के प्रेम को गहरा करता है। रक्षाबंधन भारतीय परम्पराओं का एक ऎसा पर्व है, जो भाई-बहन के स्नेह के साथ-साथ प्रत्येक सामाजिक संबंधों को मजबूती प्रदान करता है। इसी वजह से इस त्यौहार का भाई-बहन को आपस में जोडने के साथ साथ अपना विशेष सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व भी है।
रक्षाबंधन पर किये जाने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठानों को सदैव तिथि पर शुभ मुहूर्त के दौरान करना चाहिए। इस पर्व से संबंधित रीति-रिवाजों को सम्पन्न करने के लिए अपरान्ह काल को सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है। इस दिन भद्राकाल से सख्ती से बचा जाना चाहिए क्योंकि यह अशुभ समय होता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करना उचित नहीं माना जाता है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान एवं नए कार्य को करने से पूर्व शुभ मुहूर्त और चोगडिया मुहूर्त को देख लेना चाहिए।
पूर्णिमा तिथि के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा लग गई है तो रक्षाबंधन मनाने की मनाही होती है। इसी प्रकार, यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो इस पर्व को विधिपूर्वक अगले दिन के अपराह्ण काल में मनाना चाहिए।
पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में नहीं हो, तो रक्षाबंधन को पहले दिन भद्रा लगने के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मनाया जा सकता हैं।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में रक्षाबंधन से जुड़ीं अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है जो इसी प्रकार है:
महाभारत के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लग गई थी, तब द्रौपदी ने अपना पल्ला फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बांधा था। उसी वक़्त भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को जीवनभर रक्षा करने का वचन दिया था, उसी समय से ही पवित्र बंधन के रूप में राखी का पर्व मनाया जाने लगा।
भगवान विष्णु के परम भक्त थे राजा बाली जिन्होंने एक दिन विष्णु जी से सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए भगवान विष्णु ने चौकीदार के रूप में छिपकर उनकी प्रार्थना पूरी की। देवी लक्ष्मी को बैकुंठ में भगवान विष्णु नहीं मिल रहे थे इसलिए, उन्होंने स्वयं को एक बेघर महिला के रूप में प्रस्तुत किया और बाली के राज्य में आश्रय मांगा। भगवान बाली को दयालु राजाओं में से एक माना जाता था तो, उन्होंने उनका स्वागत किया और उन्हें अपने राज्य में आश्रय दिया और बदले में, उनके राज्य ने अपार सफलता प्राप्त की।
श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने राजा बाली की सुरक्षा हेतु उनकी कलाई पर एक पवित्र धागा बांध दिया। उसके पश्चात भगवान बाली ने उनसे पूछा कि वह उपहार में क्या चाहती है, जिस पर देवी लक्ष्मी ने चौकीदार की तरफ इशारा किया। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी वास्तविक पहचान प्रकट की। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी से बाली ने अपने बैकुंठ धाम पर वापस जाने का अनुरोध किया। लेकिन, बाली की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने बाली के राज्य में 4 महीने बिताने का वादा किया।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Tuesday, 15 October 2024 |
तिथि | शुक्ल त्रयोदशी |
वार | मंगलवार |
पक्ष | शुक्ल पक्ष |
सूर्योदय | 6:22:30 |
सूर्यास्त | 17:51:40 |
चन्द्रोदय | 16:31:51 |
नक्षत्र | पूर्व भाद्रपद |
नक्षत्र समाप्ति समय | 22 : 9 : 15 |
योग | वृद्धि |
योग समाप्ति समय | 14 : 14 : 29 |
करण I | कौलव |
सूर्यराशि | कन्या |
चन्द्रराशि | कुम्भ |
राहुकाल | 14:59:22 to 16:25:31 |