हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के प्रथम दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते है। साल 2025 में कब है गुड़ी पड़वा? कैसे लगाएं इस दिन गुड़ी पड़वा? जानने के लिए अभी पढ़ें।
गुड़ी पड़वा को गुड़ी पड़वा या उगादि के नाम से भी जाना जाता है जो महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश सहित गोवा के निकटवर्ती क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाने का विधान है। इस दिन को नवसंवत्सर के रुप में पूरे देश भर में मनाया जाता है। चंद्र सौर कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा को नव वर्ष के आरम्भ का प्रतीक माना गया है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - मार्च 29, 2025 को 04:27 पी एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - मार्च 30, 2025 को 12:49 पी एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - मार्च 19, 2026 को 06:52 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - मार्च 20, 2026 को 04:52 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 07, 2027 को 05:20 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 08, 2027 को 04:28 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - मार्च 26, 2028 को 10:00 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - मार्च 27, 2028 को 11:43 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 14, 2029 को 03:09 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 15, 2029 को 05:32 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 03, 2030 को 03:31 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 04, 2030 को 05:18 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - मार्च 23, 2031 को 09:18 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - मार्च 24, 2031 को 08:31 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 10, 2032 को 08:08 ए एम बजे प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 11, 2032 को 06:10 ए एम बजे
गुड़ी पड़वा को पूरे देश में अत्यंत उत्साह के साथ मनाते है लेकिन विभिन्न स्थानों पर इसे अनेक नामों, सांस्कृतिक मान्यताओं और उत्सवों के साथ मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते हैं जिनका आरम्भ सूर्योदय के साथ ही हो जाता हैं और निरंतर पूरे दिन चलते हैं। दक्षिण भारत के मूल निवासी गुड़ी पड़वा के पर्व को उगादी के रूप में मनाते हैं। इन दोनों त्यौहारों को एक ही दिन मनाया जाता हैं।
हिन्दू धर्म में नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का राजा माना जाता हैं। साल 2025 में हिन्दू नववर्ष का आरंभ रविवार के दिन हो रहा है, अतः नए सम्वत् के स्वामी सूर्य देव है।
गुड़ी पड़वा का शाब्दिक अर्थ है गुड़ी अर्थात ध्वज और पड़वा को प्रतिपदा तिथि कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। गुड़ी पड़वा पर सभी लोगों द्वारा भगवान ब्रह्मा की पूजा-अर्चना की जाती हैं जिन्हे सृष्टि के रचियता कहा गया हैं। शास्त्रों और अनेक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान ब्रह्मा ने गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था।
इस दिन महाराष्ट्र राज्य में एक अलग रौनक और भव्यता देखने को मिलती है। पौराणिक मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन सभी बुराईयों को नाश होता है, साथ ही यह सौभाग्य एवं समृद्धि को भी आकर्षित करता है। गुड़ी पड़वा अत्यंत शुभ दिन है और इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि का आरंभ होता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की स्मृति में गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता हैं।
मान्यता है कि इस दिन सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को हराने की ख़ुशी में लोगों द्वारा घरों पर गुड़ी को लगाया गया था।
छत्रपति शिवाजी की जीत की स्मृति में कुछ लोगों द्वारा गुड़ी लगाया जाता हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी इसलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना गया है। इसे इन्द्र-ध्वज भी कहा जाता है।
ऐसा मान्यता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि का वास रहता है।
गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहा जाता हैं; अतः इसके प्रत्येक हिस्से का विशेष अर्थ है जैसे उल्टा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
इस त्यौहार को किसान द्वारा रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में मनाते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन अच्छी फसल की कामना के उद्देश्य से किसान अपने खेतों को जोतते हैं।
हिन्दू धर्म में पूरे साल के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त को अत्यंत शुभ माना गया हैं। यह साढ़े तीन मुहूर्त इस प्रकार हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीवाली को आधा मुहूर्त माना गया है।
देश में विभिन्न हिस्सों में गुड़ी पड़वा को अनेक प्रकार से मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा को गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय द्वारा संवत्सर पड़वो के रूप में मनाते है।
यह पर्व कर्नाटक में युगाड़ी नाम से प्रसिद्ध है।
गुड़ी पड़वा को आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगाड़ी के रूप में मनाते हैं।
इस दिन को कश्मीरी हिन्दूओं द्वारा नवरेह के तौर पर मनाया जाता हैं।
गुड़ी पड़वा को मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहते है।
गुड़ी पड़वा के दिन ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है।
कैसे लगाएँ गुड़ी?
घर में जहाँ पर गुड़ी लगानी हो, उस स्थान को अच्छी तरह से साफ़ कर लें।
गुड़ी लगाने वाले स्थान को पवित्र करने के लिए सबसे पहले स्वस्तिक चिह्न लगाएं।
स्वस्तिक के एकदम केन्द्र में हल्दी और कुमकुम अर्पण करना चाहिए और अंत में गुड़ी स्थापित की जाती है।
गुड़ी पड़वा के दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद सर्वप्रथम गुड़ी को सजाया जाता है। इस दिन सभी लोग घरों की साफ़-सफ़ाई करते हैं। गाँवों में घरों को गोबर से लीपा जाता है।
घर के मुख्य द्वार पर सुन्दर रंगोली बनाई जाती है और घर को ताज़े फूलों से सजाते हैं।
इस दिन सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। सामान्यरूप से गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएँ नौवारी साड़ी पहनती हैं जबकि पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा पहनते हैं।
संध्याकाल के समय लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी किया जाता हैं।
गुड़ी पड़वा को सभी लोग एकसाथ मिलकर मनाते हैं और एक-दूसरे को नव संवत्सर की शुभकामनाएं देते हैं।
इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने का भी रिवाज़ है।
गुड़ी पड़वा पर पूरन पोळी, श्रीखण्ड, खीर आदि तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
दिनाँक | Thursday, 21 November 2024 |
तिथि | कृष्ण षष्ठी |
वार | गुरुवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:11 |
सूर्यास्त | 17:25:32 |
चन्द्रोदय | 22:44:5 |
नक्षत्र | पुष्य |
नक्षत्र समाप्ति समय | 15 : 37 : 29 |
योग | शुक्ल |
योग समाप्ति समय | 12 : 1 : 21 |
करण I | वणिज |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 13:26:54 to 14:46:26 |