बलराम जयंती का पर्व 5 सितंबर 2023, मंगलवार को मनाया जाने वाला है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करने वाले महाकवि सूरदास ने बालक कृष्ण के बहाने जिन बलदाऊ का यह चित्र खिंचा है इनके बारे में सभी मुख्यत: इतना ही जानते हैं कि बलदाऊ या कहें हलधर बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे। लेकिन पौराणिक ग्रंथों में इनकी महिमा इससे बहुत आगे है। बलराम के शक्तिबल से सभी परिचित हैं। यह बलशाली बलराम श्री कृष्ण के भाई तो थे ही और क्या क्या थे आइये जानते हैं इस लेख में।
शक्ति के प्रतीक बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे, इन्हें आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और एक आदर्श पति भी माना जाता है। श्री कृष्ण की लीलाएं इतनी महान हैं कि बलराम की ओर ध्यान बहुत कम जाता है। लेकिन श्री कृष्ण भी इन्हें बहुत मानते थे। इनका जन्म की कथा भी काफी रोमांचक है। मान्यता है कि ये मां देवकी के सातवें गर्भ थे, चूंकि देवकी की हर संतान पर कंस की कड़ी नजर थी इसलिये इनका बचना बहुत ही मुश्किल था ऐसें में देवकी के सातवें गर्भ गिरने की खबर फैल गई लेकिन असल में देवकी और वासुदेव के तप से देवकी का यह सत्व गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में प्रत्यापित हो चुका था। लेकिन उनके लिये संकट यह था कि पति तो कैद में हैं फिर ये गर्भवती कैसे हुई लोग तो सवाल पूछेंगें लोक निंदा से बचने के लिये जन्म के तुरंत बाद ही बलराम को नंद बाबा के यहां पलने के लिये भेज दिया गया था।
मैया बहुत बुरौ बलदाऊ।
कहन लग्यौ बन बड़ो तमासौ, सब मोड़ा मिलि आऊ।
मोहूँ कौं चुचकारि गयौ लै, जहां सघन वन झाऊ।
भागि चलौ, कहि, गयौ उहां तैं, काटि खाइ रे हाऊ।
हौं डरपौं, कांपौं अरू रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ।
थरसि गयौं नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ।
मोसौं कहत मोल को लीनौ, आपु कहावत साऊ।
सूरदास बल बडौ चवाई, तैसेहि मिले सखाऊ।।
भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 05 सितंबर को बलराम जयंती है.
षष्ठी तिथि प्रारंभ: सायं 04:41 (04 सितंबर 2023 )
षष्ठी तिथि समाप्त: सायं 03:45 (05 सितंबर 2023 )
सुबह सवेरे उठकर महुये के दातून से सबसे पहले दांत साफ किया जाता है।
इसके बाद दोपहर पूजा करने तक व्रत रखना होता है।
इसके पश्चात खेत में बिना हल से जूते पैदा हुए खाद्य पदार्थ खाये जाते हैं। जिसमें पसई धान के चावल, जिसे तिनी के चावल के नाम से जाना जाता है भेंस के दूध के साथ इसका उपयोग भोजन में किया जाता है। ध्यान रहे भोजन पूजा के बाद ही करना है।
हल षष्ठी पूजा सामग्री में महुये का फल, फुल व पत्ते, कुश व तिनी का चावल सबसे जरूरी सामग्री है।
महुये के पत्ते के देव छेवली बनाया जाता है।
महुये का फल, भेंस का दूध, घी, दही का उपयोग कर भोग का प्रसाद बनाया जाता है।
गोबर का उपयोग कर पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है।
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यह मान्यता है कि भगवान विष्णु ने जब-जब अवतार लिया उनके साथ शेषनाग ने भी अवतार लेकर उनकी सेवा की। इस तरह बलराम को भी शेषनाग का अवतार माना जाता है। लेकिन बलराम के विवाह का शेषनाग से क्या नाता है यह भी आपको बताते हैं। दरअसल गर्ग संहिता के अनुसार एक इनकी पत्नी रेवती की एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार पूर्व जन्म में रेवती पृथ्वी के राजा मनु की पुत्री थी जिनका नाम था ज्योतिष्मती। एक दिन मनु ने अपनी बेटी से वर के बारे में पूछा कि उसे कैसा वर चाहिये इस पर ज्योतिष्मती बोली जो पूरी पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली हो। अब मनु ने बेटी की इच्छा इंद्र के सामने प्रकट करते हुए पूछा कि सबसे शक्तिशाली कौन है तो इंद्र का जवाब था कि वायु ही सबसे ताकतवर हो सकते हैं लेकिन वायु ने अपने को कमजोर बताते हुए पर्वत को खुद से बलशाली बताया फिर वे पर्वत के पास पंहुचे तो पर्वत ने पृथ्वी का नाम लिया और धरती से फिर बात शेषनाग तक पंहुची।
फिर शेषनाग को पति के रुप में पाने के लिये ज्योतिष्मती ब्रह्मा जी के तप में लीन हो गईं। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने द्वापर में बलराम से शादी होने का वर दिया। द्वापर में ज्योतिष्मती ने राजा कुशस्थली के राजा (जिनका राज पाताल लोक में चलता था) कुडुम्बी के यहां जन्म लिया। बेटी के बड़ा होने पर कुडुम्बी ने ब्रह्मा जी से वर के लिये पूछा तो ब्रह्मा जी ने पूर्व जन्म का स्मरण कराया तब बलराम और रेवती का विवाह तय हुआ। लेकिन एक दिक्कत अब भी थी वह यह कि पाताल लोक की होने के कारण रेवती कद-काठी में बहुत लंबी-चौड़ी दिखती थी पृथ्वी लोक के सामान्य मनुष्यों के सामने तो वह दानव नजर आती। लेकिन हलधर ने अपने हल से रेवती के आकार को सामान्य कर दिया। जिसके बाद उन्होंनें सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत किया।
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बलराम और रेवती के दो पुत्र हुए जिनके नाम निश्त्थ और उल्मुक थे। एक पुत्री ने भी इनके यहां जन्म लिया जिसका नाम वत्सला रखा गया। माना जाता है कि श्राप के कारण दोनों भाई आपस में लड़कर ही मर गये। वत्सला का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण के साथ तय हुआ था, लेकिन वत्सला अभिमन्यु से विवाह करना चाहती थी। तब घटोत्कच ने अपनी माया से वत्सला का विवाह अभिमन्यु से करवाया था।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जयंती के रूप में देशभर में मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान शेषनाग ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे। इस पर्व को हलषष्ठी एवं हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि मान्यता है कि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल हैं जिस कारण इन्हें हलधर कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है। इस दिन बिना चल चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी आदि खाने का विशेष महत्व माना जाता है। गाय के दूध व दही के सेवन को भी इस दिन वर्जित माना जाता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिये विवाहिताएं व्रत भी रखती हैं।