तुलसी का पौधा बड़े काम की चीज है, चाय में तुलसी की दो पत्तियां चाय का स्वाद तो बढ़ा ही देती हैं साथ ही शरीर को ऊर्जावान और बिमारियों से दूर रखने में भी मदद करती है, इसके इन्हीं फायदों की बदौलत आर्युवेदिक दवाओं में भी तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन तुलसी स्वास्थ्य के लिहाज से नहीं बल्कि धार्मिक रुप से भी बहुत मायने रखती है। एक और तुलसी जहां भगवान विष्णु की प्रिया हैं तो भगवान श्री गणेश से उनका छत्तीस का आंकड़ा है। क्या आप जानते हैं कि असल में ये तुलसी कौन हैं और कैसे बनी ये भगवान विष्णु की प्रिया?
बात पौराणिक काल की है। राक्षस कुल में एक कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया वृंदा। वह बचपन से ही भगवान श्री विष्णु की भक्ति करने लगी थी। विवाह योग्य होने पर उसका विवाह समुद्र से उत्पन्न हुए जलंधर से कर दिया गया। वृंदा पतिव्रता स्त्री थी, उसे पतिव्रत धर्म से जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया।
जलंधर जब भी युद्ध पर जाता वृंदा पूजा अनुष्ठान करती, वृंदा की भक्ति के कारण जलंधर को कोई भी नहीं मार पा रहा था। जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, सारे देवता जलंधर को मारने में असमर्थ हो रहे थे, जलंधर उन्हें बूरी तरह से हरा रहा था। सब कुछ छिन जाने के डर से सभी देवता इकट्ठे होकर भगवान विष्णु के पास पंहुचे। भगवान विष्णु पर भी अब धर्म संकट आन पड़ा एक ओर समस्त देवता उनसे सहायता मांग रहे थे तो दूसरी और उनकी परम भक्त वृंदा का तप था। तब कुछ सोच-विचार कर भगवान विष्णु ने देवताओं को मदद का आश्वासन दिया। अब भगवान विष्णु यह जानते थे कि जब तक वृंदा का अनुष्ठान नहीं रुकेगा जलधंर को हरा पाना असंभव है इसलिये वे जलंधर का वेश धारण कर वृंदा के पास पंहुच गये। अपने पति को देख वृंदा ने अनुष्ठान रोक दिया और पूजा से उठकर अपने पति के वेश में पधारे भगवान विष्णु के चरण छू लिये। इससे वृंदा का संकल्प टूट गया और देवताओं को जलंधर का वध करने में कामयाबी मिल गई। देवताओं ने जलंधर का सिर धड़ से अलग कर दिया। धड़ से अलग होने के बाद जलंधर का कटा हुआ सिर वृंदा के पास गिरा। वृंदा ने पति के कटे सिर को देखा तो वह समझ नहीं पाई की माजरा क्या है? वृंदा ने जलंधर के वेश में वहां खड़े भगवान विष्णु पर सवालिया नजर दौड़ाई और घबराते हुए पूछा कि आप कौन हैं यदि आप ही मेरे पति हैं तो फिर यह सिर किसका है तब भगवान विष्णु अपने असली रुप में आ गये। वृंदा को गहरा आघात पहुंचा और भगवन मैं बचपन से आपको पूजती आ रही हूं आपने मेरे साथ छल किया, आपने मेरा सतीत्व भंग किया? भगवान विष्णु न वृंदा से नजरें मिला सके न कुछ बोल सके तब वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप दिया कि आपने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं कि और पत्थर की तरह व्यवहार किया इसलिये आप पत्थर के ही हो जाओगे।
भगवान को पत्थर का होते देख पूरी सृष्टी में हाहाकार मच गया, समस्त देवता त्राहि-त्राहि पुकारने लगे, तब माता लक्ष्मी ने गिड़गिड़ाते हुए वृंदा से प्रार्थना की तब वृंदा ने जगत कल्याण के लिये अपना शाप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा। कार्तिक महीने में तो तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन को तुलसी विवाह के रुप में भारतवर्ष में मनाया भी जाता है।
तुलसी जी के पौधा बनने की एक कहानी कुछ इस तरह भी है कि एक समय में धर्मात्मज नाम के राजा हुआ करते उनकी कन्या तुलसी यौवनावस्था में थी, अपने विवाह की इच्छा लेकर तुलसी तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ी। उन्होंनें कई जगह की यात्रा कि एक स्थान पर उन्हें भगवान श्री गणेश जो कि उस समय तरुणावस्था में थे, को तपस्या में विलीन देखा। शास्त्रानुसार तपस्या में विलीन भगवान गणेश की रुप इस समय बहुत ही मोहक और आकर्षक था। तुलसी भगवान गणेश के इस रूप पर मोहित हो गई और अपने विवाह का प्रस्ताव उनके आगे रखने के लिये उनका ध्यान भंग कर दिया। भगवान गणेश ने तुलसी स्वयं को ब्रह्मचारी बताते हुए तुलसी क विवाह को ठुकरा दिया। तुलसी को भगवान गणेश के इस रुखे व्यवहार और अपना विवाह प्रस्ताव ठुकराये जाने से बहुत दुख हुआ और उन्होंनें आवेश में आकर भगवान गणेश को दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को असुर से विवाह होने का शाप दे डाला। बाद में तुलसी को अपनी भूल का अहसास हुआ और भगवान गणेश से क्षमा मांगी तब भगवान गणेश ने कहा कि मेरा शाप तो खाली नहीं जायेगा इसलिये तुम्हारा विवाह जरुर राक्षस से होगा लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें भी पूजा जायेगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जायेगा
कुछ पौराणिक कहानियों में तुलसी का विवाह शंखचूर्ण नामक राक्षस के साथ बताया जाता है।
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