आदि पेरुक्कू एक हिंदू तमिल त्यौहार है जो तमिल महिने, आदि के 18वें दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार जल और जीवनोपयोगी संपतियों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार अक्सर अंग्रेजी कलेंडर के हिसाब से जुलाई और अगस्त के मध्य में आता है, जो इस बार 3 अगस्त को मनाया जा रहा है। ये वो वक्त होता है जब सूर्य की किरणों का असर कम होता है और मौसम के साथ साथ तापमान भी सुहावना होता है।
यह त्यौहार तमिलनाडू में मानसून के आगमन के प्रतीक के रुप में भी मनाया जाता है, इस महीने के दौरान मानसून की बरसात के कारण नदियों का पानी बढने लगता है। इसके अलावा यह त्यौहार प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के साथ साथ कावेरी नदी और मां पार्वती के सम्मान में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार उस पवित्र जल के लिए है जो किसानों के लिए एक नई उम्मीद, परिवारों के लिए एक नई उमंग और नवविवाहितों के लिए एक नए आनंद को अपने साथ लेकर आता है। इसी कारण इस त्यौहार को जल भंडारों के किनारे मनाया जाता है जिसमें नदी, तालाब, कुंए या फिर समुद्र के किनारे भी शामिल होते हैं। कुल मिला कर कहें तो आदि पेरुक्कू त्यौहार जल की देवी को सम्मान और धन्यवाद देने के लिए ही मनाया जाता है। मानव जाति की सुख, समृद्धि और खुशियों के लिए वृषा की देवी अम्मन की पूजा अर्चना इस त्यौहार पर की जाती है जो जन जीवन के कल्याण के लिए प्रकृति पर मेहरबान होती है। मान्यताओं के अनुसार पचई अम्मन उस धार्मिक संरचना का प्रतीक है जो मानव जाति के लिए शांति और सौहार्द की भावनाओं की स्थापना करती है।
पचई अम्मन और कन्नी अम्मन तमिलनाडू के कई स्थानीय क्षेत्रों में स्थापित हैं जो उस स्थान के निवासियों पर धार्मिक उर्जा की उपस्थिति और प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार तिरुमुलेवोयल में पचई अम्मन के प्रगटिकरण के कारण, अम्मन देवी संसार में सफलतापूर्वक सुख और शांति स्थापित करती है। इसे विवाह की देवी के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि लोग मानते हैं कि ये उन लोगो पर कृपा बरसाती है जो शादी के लिए इंतजार करके वैवाहिक बंधन में बंधते हैं।
आदि पेरक्कू त्यौहार खासकर उन किसानों और अन्य लोगों द्वारा विशेषकर मनाया जाता है जो अपने व्यावसाय या जीवन यापन के लिए नदियों और मानसून की बरसात पर निर्भर रहते हैं। इस त्यौहार पर मंदिरों और धार्मक स्थानों पर वर्षा के देव वरुण और कावेरी देवी की पूजा अर्चना की जाती है, ताकि अच्छे जल से अच्छी फसल पा सके और अनिश्चितकालीन बरसात से बचाव हो सके।
अन्य भारतीय त्यौहारो की तरह ही इस त्यौहार पर भी औरतों का मुख्य योगदान रहता है। इस त्यौहार के दिन सुबह सवेरे महिलाएं चावल, गुड़, चीनी, नारियल,केले, दिए, हल्दी, फूल आदि पूजा सामग्री लेकर तालाब, नदि आदि के किनारे पर जाती हैं। पूजा शुरु करने से पहले वे पानी में डुबकी लगाती हैं। इसके बाद वे धरती माता के स्वरूप के रुप में मिट्टी की ढेरियां बनाती हैं। इसके साथ साथ केले के पत्तो पर चावल के आटे को पानी में गुड़ मिला कर छोटे गड्डे नुमा आकार का निर्माण किया जाता है। इसमें घी डाल कर दिए के रुप मे प्रज्जवलित किया जाता है। दिए के साथ साथ फूल, हल्दी और पीले धागे भी रखे जाते हैं। इस दिए को महिलाओं द्वारा नदि में तैराया जाता है।
यहां की स्त्रियां चावलों के विभिन्न पकवान बना कर देवी पार्वती को भोग लगाती है और नदियों में फूल और चावल वित्सर्जन कर पूजा की विधी को संपन्न करती हैं। लोग इस अवसर पर पानी में धार्मिक डुबकियां लगाते हैं और नदियों के किनारों पर पूजा करके इस त्यौहार को मनाते हैं।
तमिलनाडू के कुछ हिस्सों में नवविवाहित जोड़ियों को आमन्त्रित किया जाता है और लड़की वालो की तरफ से अपने जमाई को उपहार भेंट किए जाते हैं। ज्यादातर आदि महिने के दौरान नवविवाहिताएं अपने मां बाप के घर पर ही रहती हैं।
आदि पेरुक्कू 2019
दिनाँक - 3 अगस्त 2019
एस्ट्रोयोगी की ओर से आपको आदि पेरुक्कू पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।