हिंदू धर्म के हर शुभ कार्य में चावल का उपयोग किया जाता है। आपने भी गौर किया होगा कि आपके घर कोई पूजा या कथा का आयोजन किया जाता है तो उसमें चावल का प्रयोग पंडित जी करते नजर आ जाते हैं। परंतु क्या आपने कभी यह सोचा है कि मांगलिक कार्यों में चावल का उपयोग क्यों किया जाता है? इसके पीछे की वजह क्या है? क्या आपने कभी किसी से इसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की? यदि आपका उत्तर नहीं है तो आपको आपके इस सवाल का जवाब आज इस लेख में मिल जाएगा। आखिर क्यों शुभ कार्यों में चावल का उपयोग किया जाता है।
शुभ व मांगलिक कार्यों में चावल यानी का अक्षत का उपयोग आदि काल से किया जा रहा है। अक्षत को हिंदू धर्म में पूजा का अभिन्न अंग माना जाता है। इसके साथ ही चावल को अक्षत के रूप में ही देवों को अर्पण किया जाता है। चावल को शास्त्रों में देव अन्न की भी संज्ञा दी गई है। यानी की वो अन्न जो देवों को प्रिय है। जिसका भोग सभी देवों को पसंद है। कई वैदिक ग्रंथों में अक्षत के महत्व को विस्तार से बताया गया है। जिससे आप अक्षत के बारे में आप जान सकते हैं। परंतु आज के दौर में आपके पास कितना समय है। इसलिए आपके लिए हम अक्षत से जुड़े कुछ जानकारी दे रहे हैं। इसके क्या मायने हैं इसका उपयोग अक्षत में कैसे किया जाता है।
अक्सर आपने देखा होगा कि चावल का उपयोग शुभ कार्यों में हल्दी, कुंमकुम व गुलाल तथा अन्य सामग्रियों के साथ किया जाता है। यह सभी सामग्री सुगंध मुक्त हैं। फिर भी इन्हें देवी देवताओं को अर्पित किया जाता है। इन सभी को मिलाकर अक्षत बनाया जाता है। इसके बिना कोई भी पूजा- पाठ पूर्ण नहीं होती है। अक्षत को बनाने के लिए जिस चावल का उपयोग होता है वह भी पूर्ण होता है। कहीं से भी वह चावल टूटा नहीं होता है। क्योंकि अक्षत को पूर्णता का प्रतीक माना गया है। यदि अक्षत का चावल टूटा हुआ हो तो इसे बहुत ही अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे कार्य का फल प्राप्त नहीं होता है।
किसी भी शुभ कार्य को पूरा करने के लिए अक्षत का उपयोग अनिवार्य माना गया है। आपने देखा होगा कि पूजा पाठ के दौरान पूरोहित अक्षत लेकर संकल्प करवाते हैं। ऐसा क्यों करवाते हैं कभी आपने इस पर विचार किया है? यदि नहीं किया है तो हम आपको बता दें कि ऐसा क्यों किया जाता है। इसके पीछे की वजह है कार्य को पूरा करना। मान्याता है कि शुभ कार्य बिना किसी अड़चन व विघ्न के पूर्ण हो जाए इसके लिए संकल्प लिया जाता है। साथ ही इसे देवों व देवियों को चढ़ाया जाता है। पूजा पाठ ही नहीं शादी विवाह में भी अक्षत का प्रयोग किया जाता है। वो इसलिए क्योंकि वर वधु का साथ बना रहे। दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहें। उनके वैवाहिक जीवन में किसी तरह का कोई भी मुश्किल न आए।
अक्षत चढ़ाते हुए एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है। परंतु यदि पंडित मौके पर न हो तो आप इसे स्वयं भी चढ़ा सकते हैं। तो आइए जानते वह कौन सा मंत्र है।
अक्षताश्य सुरश्रेष्ठ कुंमकुमाक्ताः सुशोभितः।
मया निवेदिता भक्त्याः गृहाण परमेश्वर।।
इस वैदिक का सामान्य अर्थ यह है कि हे देव कुंमकुम से सुशोभित यह श्रेष्ठ अक्षत मैं आपको अर्पण कर रहा हूं। कृपा कर आप इसे स्वीकार्य कर अपने भक्त की भावना को अपनाएं। क्योंकि यह अन्नों में सर्वश्रेष्ठ है। इसे मैं आपको अर्पित करता हूं।