Badrinath Dham Secrets: हिमालय की लुभावनी सुंदरता के बीच बसा बद्रीनाथ धाम सदियों से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है। इसे धरती का बैकुंठ माना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर, हिन्दुओं के पवित्र चार धाम स्थलों में से एक है और यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान बद्री को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने ज्ञान प्राप्त करने के लिए बद्री वृक्ष के नीचे ध्यान किया था, जिससे यह एक तीर्थ बन गया। आज भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां नारायण के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बद्रीनाथ धाम एक दिन लुप्त हो सकता है? जी हां स्कंदपुराण के केदारखंड में सनत संहिता में उल्लेख किया गया है कि चार धामों में प्रसिद्द यह धाम एक दिन लुप्त हो जाएगा। इसके पीछे कई अलग-अलग कारण दिए जाते हैं। बद्रीनाथ जी से जुड़े ऐसे कई रहस्य हैं जो बेहद कम लोग ही जानते हैं। आज हम अपने लेख में आपको बद्रीनाथ से जुड़े कुछ खास रहस्य बताएंगे।
केदारघाटी में दो पहाड़ मौजूद हैं जिसे नर और नारायण के नाम से जाना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर, समुद्रतल से 3,133 मीटर (10,279 ft) की ऊंचाई पर स्थित है। यहां का मौसम हमेशा ठंडा रहता है और सर्दियों में यहां बहुत बर्फ़बारी होती है। यही कारण है कि इस मंदिर के कपाट साल में केवल छह महीनों के लिए खुले रहते हैं। शीतकालीन समय के दौरान कपाट बंद कर दिए जाते हैं और वसंत में फिर से श्रद्धालुओं के लिए कपाट खोल दिए जाते हैं। इस अवधि के दौरान, भगवान बद्रीनाथ की एक प्रतीकात्मक मूर्ति को पास के गांव पांडुकेश्वर में ले जाया जाता है, जहां बद्री नारायण के शीतकालीन दर्शन किए जाते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर धाम के पास ही एक अद्भुत तप्त कुंड भी है। इसके बारे में माना जाता है कि इसमें कुछ ऐसे औषधीय गुण हैं जो किसी भी बड़ी से बड़ी शारीरिक समस्या से छुटकारा दिलवाने में सक्षम हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस तप्त कुंड में डुबकी लगाना तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
जब 6 माह के लिए बद्रीनाथ धाम (Badrinath dham) के कपाट बंद होते हैं और भगवान नारायण निद्रा में होते हैं तो यहां एक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह ज्योति 6 कपाट बंद होने से लेकर खुलने तक लगातार जलती है। यह अचल ज्ञानज्योति श्रद्धालुओं के लिए भगवान नारायण की महिमा का प्रतीक है।
बद्रीनाथ धाम के पास तिब्बत सीमा से पहले "भारत के प्रथम गांव" के रूप में एक गांव भी स्थित है। इसे गांव को माणा गांव के नाम से जाना जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि यह गांव हिंदू और तिब्बती संस्कृतियों का एक अद्वितीय मिश्रण है। यह एक बेहद खूबसूरत और धार्मिक रूप से समृद्ध गांव है। कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां दो ऋषियों, व्यास और वशिष्ठ ने महाभारत और रामायण लिखी थी। यहां आपको व्यास गुफा, भीम शिला जैसी इतिहास के कई अनोखे साक्ष्य देखने को मिल जाते हैं।
वसुधारा झरना बद्रीनाथ से लगभग 11 कि.मी की दूरी पर स्थित है। यहां का रास्ता माणा गाँव से होकर जाता है। यह सुनने और दिखने में किसी भी आम पहाड़ी झरने की तरह है। यह देखने में जितना खूबसूरत है उतना ही रहस्मयी भी है। यह झरना 400 फ़ीट की ऊंचाई से गिरता है। पर्यटकों के लिए यह प्रकृति का बेहतरीन नज़ारा होता है, लेकिन इसके पीछे का रहस्य इस झरने को और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बना देता है। माना जाता है कि यह झरना सब लोगों पर नहीं गिरता यानी कि जिन लोगों जीवन में ज्यादा पाप किये हों उन पर इस झरने का पानी नहीं गिरता। इसके अलावा जिस पर भी इस झरने का पानी गिरता है वे निरोगी हो जाता है।
बद्रीनाथ धाम के कुछ रहस्यों में से एक मुख्य रहस्य बद्रीनाथ के लुप्त होने को लेकर भी प्रसिद्द है। यह कहानी जोशीमठ (Joshimath) में मौजूद नृसिंह मंदिर से जुड़ी है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि नृसिंह मंदिर में मौजूद नृसिंह भगवान की मूर्ती का एक हाथ हर साल लगातार पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ पूर्ण रूप से मूर्ती से अलग हो जायेगा उस दिन से बद्रीनाथ धाम भी लुप्त होना शुरू हो जाएगा। इसके बाद भगवान बद्री की पूजा जोशीमठ से 22 किलोमीटर दूर सुवई गांव में स्थित भविष्य बद्री में की जायेगी।