आध्यात्मिक शान्ति का स्थान है बोधगया

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आध्यात्मिक शान्ति का स्थान है बोधगया


2630 ईसा पूर्व में राजसी ठाठ में पले बड़े राजकुमार सिद्धार्थ ने दुनियाभर में लोगों के दुख से व्यथित होकर सांसारिक मोह माया को त्यागने का फैसला किया था। एक राजा के लिए यह कोई आसान काम नहीं था जो महलों को छोड़कर, जंगलों की तरफ जा रहा था।.


यही वह समय था जब भोग विलासिता भरे जीवन को त्याग कर वह ज्ञान की खोज में निकल पड़े थे। नदी, नालों और पहाड़ों को पार कर वह बोधगया पहुंचे। यहां पर पांच वर्षों की कठोर तपस्या के बाद पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद ही वह भगवान बुद्ध कहलाए।


आज बोधगया , ना सिर्फ भारतीयों के लिए, अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए आध्यात्मिक शांति का एक स्थान बन चुका है  आप अगर अपने जीवन में कुछ सुकून के पल बिताना चाहते हैं तो आपको कुछ दिनों के लिए बोधगया का रूख कर लेना चाहिए।


आइये एक नजर डालते हैं बोधगया की सामान्य जानकारी पर-


बोधगया का इतिहास

गौतम बुद्ध सबसे पहले ‘फाल्गू नदी’ के किनारे आये थे और बोधिवृक्ष के नीचे इन्होनें साधना की थी। बोधगया ही वह स्थान है जहाँ बुद्ध ने अपने ज्ञान की खोज को समाप्त किया और यहीं इन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हुए थे।

इस स्थान का उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलता है और और चीनी  तीर्थयात्रियों फैक्सियान और जुआनजैंग के पास भी इसका सन्दर्भ मिलता है। यह क्षेत्र कई सदियों तक बौद्ध सभ्यता का केन्द्र रहा लेकिन 13वीं शताब्दी में तुर्की के सेनाओं ने इसपर कब्जा कर लिया था।

बुद्ध की मृत्यु के कई शताब्दियों बाद, मौर्य शासक अशोक ने बौद्ध धर्म को श्रृद्धान्जलि देते हुये कई मठों और लाटों का निर्माण कराया। बराबर की पहाड़ियों पर स्थित बराबर गुफाओं की शानदार वास्तुकला अपने विशाल चापों के कारण अपने समय से काफी बाद के लगते हैं।



महाबोधि मंदिर

यह मंदिर मुख्‍य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्‍थापित स्‍तूप के समान है। इस मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्‍थापित है। मंदिर परिसर में उन सात स्‍थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्‍ताह व्‍यतीत किये थे। जातक कथाओं में उल्‍लेखित बोधि वृक्ष भी यहां है। यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्‍य मंदिर के पीछे स्थित है। कहा जाता बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं  पीढी है। मंदिर समूह में सुबह के समय घण्‍टों की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है।


बोधि वृक्ष

बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद दूसरा सप्‍ताह इसी बोधि वृक्ष के आगे खड़ा अवस्‍था में बिताया था। यहां पर बुद्ध की इस अवस्‍था में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है।


बोधगया के अन्य प्रमुख आकर्षण है

 80 फुट की बुद्ध की प्रतिमा, कमल  तालाब ,बुधकुंड , राजायतन, ब्रह्मयोनि , चीनी मंदिर एवं मानेस्ट्री , बर्मीज मंदिर, भूटान का बौध भवन और जापानी मंदिर, थाई मंदिर एवं मठ , तिब्बती मठ , सुजाता गाँव का पुरातात्विक संग्राहालय (2 कि0मी0 ), डूंगेस्वरी पहाड़ी (प्राग बोद्धि ) सड़क से 22 कि0मी0 , मैत्रेय प्रॉजेक्ट (3 कि0मी0 )


 कैसे पहुँचे बोधगया 

वायुमार्ग-पटना निकटतम हवाई अड्डा है जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।

रेलमार्ग-निकटतम रेलवे स्टेशन गया (16 किमी) है। यह स्टेशन भारत के कई महत्वपूर्ण स्टेशनों से जुड़ा है।

सड़कमार्ग-बोधगया, ‘गया’ से 16 किमी की दूरी पर है जो ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। बोधगया से पटना 97 किमी, वाराणसी 250 किमी और इलाहाबाद 375 किमी की दूरी पर स्थित है।

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