चतुर्मास जिसे हम चौमासा भी कहते हैं। भारतीय पंचांग में इसे वर्षा का काल कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से लेकर श्रावण, भाद्रपद, अश्विन एवं कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक के चार महीनों को चुतर्मास कहा जाता है। इन्हीं महीनों की शुक्ल चतुर्दशी तिथि को चौमासी चौदस भी कहा जाता है।
भारत में मौसम भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार मौसम में भी विविधताएं होती हैं। मौजूद 6 ऋतुओं में वर्षा ऋतु भी एक है। वर्षा ऋतु के काल की अवधि चार मास तक की होती है इसलिये इसे चौमासा कहा जाता है। वर्षा ऋतु का आगमन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मानसून की पहली बारिश के साथ ही माना जाता है। आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी यानि देवउठनी एकादशी तक रहता है। चौमासे के इन चार महीनों को बहुत खास माना जाता है जिस कारण इन महीनों में पड़ने वाली शुक्ल चतुर्दशी यानि चौमासी चौदस भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्राचीन समय से ही यह मान्यता चली आ रही है कि भगवान शिव को चौमासी चौदस अतिप्रिय होती है। इन महीनों में विष्णु भगवान निद्रा में रहते हैं। इस कारण भी भगवान शिव की आराधना करने की मान्यता है। भगवान शिव व शक्ति के मिलन के विशेष पर्व के रूप में भी इस चतुर्दशी की मान्यता होती है। मान्यता तो यह भी है कि ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव चतुर्दशी के प्रदोष काल में हुआ था। पुराणों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कि दिव्य ज्योतिर्लिंग का उद्भव इस तिथि को हुआ। यही कारण है प्रत्येक मास की दोनों चतुर्दशी (शुक्ल व कृष्ण चतुर्दशियां) शिव चतुर्दशी कही जाती है।
चतुर्दशी पर भगवान शिव का पूजन कैसे करें? एस्ट्रोयोगी ज्योतिषाचार्य का कहना है कि इसके लिये तन व मन से उपासक का निर्मल होना बहुत आवश्यक है। मन वचन व कर्म से व्यक्ति का स्वच्छ होना ही वास्तविक रूप से निर्मल होना है। उपासना के लिये घर की पूर्व दिशा में पीले रंग का कपड़ा बिछाकर विधि विधान से पारद शिवलिंग या शिवयंत्र की स्थापना कर विधिनुसार उसका पूजन किया जाता है। घी का दीपक, चंदन की धूप, तिलक के लिये पीला चंदन, अर्पित करने के लिये पीले रंग के पुष्प, भोग लगाने के लिये केसर की खीर एवं पपीते को फल के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। रूद्राक्ष की माला लेकर 108 बार भगवान शिव के विशेष मंत्र का जाप भी किया जा सकता है।
चौमासी चौदस की जैन समुदाय में भी काफी मान्यता है। जैन समुदाय में इसे बहुत ही लोकप्रिय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। चौमासे के पर्व को जैन समुदाय में वर्षा वास भी कहा जाता है जो कि आषाढ़ पूर्णिमा से शुरु होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
चौमासे यानि चतुर्मास में धर्म कर्म व दान पुण्य का भी बहुत महत्व माना जाता है। चूंकि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शयनमुद्रा में चले जाते हैं जिसके पश्चात वह देवोठनी एकादशी पर जागृत होते हैं। ऐसे में ऋषि मुनियों ने इन महीनों में धर्म कर्म के कार्यों में ही रत रहने का विधान बताया है।
चौमासी चौदस – 04 जुलाई 2020