
Chhath Puja: छठ पूजा भारत के सबसे पवित्र और प्राचीन त्योहारों में शामिल है। यह पर्व विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार में सूर्य देव और छथि मैया की उपासना की जाती है। यह करीब चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। छठ पर्व आपको केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि बल्कि प्रकृति, अनुशासन और समर्पण के मायने भी सिखाता है।
इस व्रत की मान्यता आज देश की सीमाओं को लांघ कर विदेशों तक भी जा पहुंची है। पूरी दुनिया में बसे भारतीय खासतौर पर इस त्योहार के लिए अपने घर लौटते हैं। यह प्रकृति और अपने परिवार से गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। यही कारण है कि इसमें भक्त जल स्त्रोत और सूर्य देव की पूजा करते हैं। छठी मैया की पूजा में सभी भक्त सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
तो आइए, जानते हैं कि साल 2025 में छठ पूजा कब है और यह किस तरह मनाई जाती है?
सूर्य उपासना का यह महापर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें हर दिन का अपना अलग धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है।
“वर्ष 2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के साथ सम्पन्न होगी।”
पहला दिन: नहाय खाय, 25 अक्टूबर 2025, शनिवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06:28 बजे
सूर्यास्त का समय: शाम 05:42 बजे
दूसरा दिन: खरना, 26 अक्टूबर 2025, रविवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06:29 बजे
सूर्यास्त का समय: शाम 05:41 बजे
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य, 27 अक्टूबर 2025, सोमवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06:30 बजे
सूर्यास्त का समय: शाम 05:40 बजे
चौथा दिन: उषा अर्घ्य, 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06:30 बजे
सूर्यास्त का समय: शाम 05:39 बजे
छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन और अनुशासित माना जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें हर दिन की अपनी विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्वता होती है।
नहाय खाय - 25 अक्टूबर 2025
पहले दिन श्रद्धालु पवित्र स्नान करके अपने शरीर और घर को शुद्ध करते हैं। अक्सर यह स्नान गंगा या किसी स्थानीय नदी में किया जाता है। घर की सफाई और सजावट के साथ-साथ केवल सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। इस दिन लोग हल्का उपवास रखते हैं और साधारण भोजन ग्रहण करते हैं।
खरना - 26 अक्टूबर 2025
दूसरा दिन खरना होता है। इस दिन व्रती पूरी तरह निर्जल उपवास रखते हैं, यानी सुबह से लेकर शाम तक पानी तक का सेवन नहीं किया जाता। शाम को छठी मइया की पूजा के बाद ही उपवास तोड़ा जाता है। प्रसाद में गुड़ और गाय के दूध से बनी खीर, रोटी और केले शामिल होते हैं, जिन्हें नए लकड़ी के चूल्हे या मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है। उपवास तोड़ने के बाद व्रती लगभग 36 घंटे तक पानी व बिना भोजन के निर्जल उपवास जारी रखते हैं।
संध्या अर्घ्य - 27 अक्टूबर 2025
सूर्यास्त के समय भक्त तालाब, नदी या घाटों पर इकट्ठा होते हैं। बांस की टोकरी या सूप में ठेकुआ, फल, नारियल और गुड़-अनाज के प्रसाद सूर्य को अर्पित किए जाते हैं। इस दौरान समस्त परिवार और समुदाय एक साथ एकत्रित होता है। इसके बाद लोककथाओं और गीतों के साथ पूरा माहौल आनंद और उल्लास से भर जाता है।
उषा अर्घ्य - 28 अक्टूबर 2025
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए व्रती और उनके परिवार सुबह जल स्रोत पर जाते हैं। इस दिन उपवास का समापन होता है और प्रसाद बांटा जाता है। पूरा माहौल जश्न और खुशियों से भर जाता है।
छठ पूजा का यह चार दिवसीय पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और सामुदायिक एकता का सुंदर उदाहरण भी है।
छठ पूजा न केवल भक्ति और अनुशासन का पर्व है, बल्कि इसे सही तरीके से और पूरी श्रद्धा के साथ मनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। खासकर जो उपवास रखते हैं और पूजा में भाग लेने वाले लोगों के लिए कुछ नियम और सावधानियाँ बनायी जाती हैं, ताकि पर्व पवित्र, सुरक्षित और फलदायी बने।
पूजा के दौरान सफाई बनाए रखना बहुत जरूरी है। पूजा से पहले पवित्र नदी या जल स्त्रोत में स्नान करना चाहिए, जिससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।
केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। प्याज, लहसुन या तीखे मसाले से बचें। पूजा के समय साफ-सुथरे, बेहतर हो तो नए वस्त्र पहनें।
प्रसाद जैसे ठेकुआ, फल और खीर केवल नए या पूरी तरह से स्वच्छ बर्तनों में बनाएं, और कोशिश करें कि नए मिट्टी के चूल्हे या शुद्ध गैस स्टोव का उपयोग हो। पूजा में प्रयुक्त टोकरी या बर्तन बांस, पीतल या मिट्टी के ही हों, प्लास्टिक या सिंथेटिक सामग्री से बचें।
सूर्य देव को सुबह और शाम अर्घ्य अर्पित करते समय भक्ति भाव से सूर्यमंत्र का उच्चारण करें या छठ गीत गाएँ। पूजा के बाद बड़ों से आशीर्वाद लें और प्रसाद सम्मानपूर्वक बांटें।
इन बातों में रहें सावधान
उपवास और पूजा के दौरान मांसाहारी भोजन, प्याज और लहसुन का सेवन या उनका उपयोग पूरी तरह वर्जित है। पूजा का प्रसाद सूर्य को अर्पित करने से पहले न खाएं। पूरे पर्व के दौरान शराब, तंबाकू और अन्य नशीली वस्तुओं से दूर रहें।
गंदे हाथों या स्नान किए बिना पूजा सामग्री, फल या प्रसाद को न छुएँ। बच्चों या दूसरों को निर्धारित समय से पहले प्रसाद न खाने दें। पूजा के दौरान गंदे या पुराने कपड़े न पहनें, और बर्तनों में पहले से इस्तेमाल मांसाहारी या प्याज-लहसुन वाले बर्तन का प्रयोग न करें।
सकारात्मक मन और मानसिक शांति बनाए रखें। बहस, गॉसिप या नकारात्मक बोलचाल से बचें। स्वास्थ्य की आपात स्थिति के अलावा उपवास समय से पहले न तोड़ें। अर्घ्य या पूजा स्थल के आसपास स्वच्छता बनाए रखें और पानी में अनावश्यक रूप से सामग्री या कचरा न डालें।
छठ पूजा को विशेष इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह एकमात्र ऐसा पर्व है जहाँ भक्त सूर्य देव की न केवल उगते रूप में, बल्कि अस्त अवस्था में भी आराधना करते हैं। यह पूजा आपको प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और सूर्य की ऊर्जा के प्रति आभारी होने की भावना सिखाती है।
इस त्योहार के माध्यम से श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मइया से अपने परिवार के स्वास्थ्य, समृद्धि और संतान की कुशलता की कामना करते हैं। उपवास, संयम और आत्मशुद्धि के माध्यम से अपने शरीर और मन को पवित्र करने का संकल्प लेते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत से आत्मबल बढ़ता है और मन में शांति भी आती है।
छठ पूजा केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि सामूहिक एकता का प्रतीक भी है। जब हजारों श्रद्धालु एक साथ नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, तो वह दृश्य समाज में एकता, समानता और पर्यावरण के प्रति सम्मान की भावना को प्रकट करता है। यह पर्व आपको याद दिलाता है कि जब आप प्रकृति के साथ संतुलन में जीते हैं, तभी जीवन वास्तव में मंगलमय बनता है।
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