देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखती है। यह आषाढ़ महीने की शुक्ल एकादशी के दिन पड़ती है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने की अवधि के लिए गहरी नींद यानि योग निद्रा की स्थिति में प्रवेश करते हैं। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें ये लेख!
देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी या पद्मा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ के ग्यारहवें दिन (एकादशी) पड़ती है। यह आमतौर पर जून या जुलाई में होती है, जो चातुर्मास अवधि की शुरुआत को चिह्नित करती है, जिसे कुछ गतिविधियों के लिए अशुभ समय माना जाता है। भक्त इस दिन उपवास, अनुष्ठान और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि देवशयनी एकादशी को भक्ति के साथ उपवास रखने से पापों को साफ करने और आशीर्वाद मिलने में मदद मिल सकती है।
देवशयनी एकादशी के बाद देवी-देवताओं का सूतककाल शुरू हो जाता है, जिसके दौरान चार महीने तक शुभ कार्यों से बचा जा सकता है। यह हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। भक्त इस दिन को प्रार्थना और भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक अनुकूल समय मानते हैं। लोगों का मानना है कि उपवास और भक्ति करने से, वे अपने पापों मुक्ति और दैवीय कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है, जो गुरुवार के दिन पड़ रही है। देवशयनी एकादशी को कई नामों से जाना जाता है जैसे पद्मा एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी। इस एकादशी के बाद भगवान विष्णु पाताल लोक में सो जाते हैं और कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi)को जागते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि (Devshayani Ekadashi 2023 Date) की शुरुआत 29 जून 2023 को प्रात: 03 बजकर 18 मिनट पर होगी और अगले दिन 30 जून 2023 को प्रात: 02 बजकर 42 मिनट पर इसका समापन होगा।
देवशयनी एकादशी व्रत पारण समय - 30 जून 2023, दोपहर 01.48 से शाम 04.36 तक।
विष्णु जी की पूजा का समय : 30 जून 2023, सुबह 10.49 से दोपहर 12.25 तक।
देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2023) का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इसके महत्व के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
भगवान विष्णु जी की नींद: देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु की नींद या योग निद्रा की शुरुआत का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस दिन महासागर में गहरी नींद में चले जाते हैं और शेषनाग पर विश्राम करते हैं। वह देवउठनी एकादशी तक लगभग चार महीने तक इसी अवस्था में रहते हैं, जिसके बाद वह जाग जाते हैं।
चातुर्मास प्रारंभ: देवशयनी एकादशी से चातुर्मास काल की शुरुआत होती है। चातुर्मास चार महीने तक रहता है और कुछ गतिविधियों जैसे विवाह, नए घर में जाने या नए बिजनेस शुरू करने के लिए एक अशुभ समय माना जाता है। इसके बजाय, यह अवधि आध्यात्मिक प्रथाओं में शामिल होने, शास्त्रों का अध्ययन करने और आत्म-प्रतिबिंब पर ध्यान केंद्रित करने के लिए है।
शुभ बदलाव: देवशयनी एकादशी को दो प्रमुख हिंदू मौसमों के बीच एक बदलाव काल माना जाता है: गर्मी और मानसून। यह वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो चिलचिलाती गर्मी से राहत दिलाती है और पृथ्वी को फिर से जीवंत करती है।
आध्यात्मिक महत्व: भक्तों का मानना है कि इस दिन उपवास करने, अनुष्ठान करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से पाप से मुक्ति सकती है, आशीर्वाद मिल सकता है और आध्यात्मिक उत्थान हो सकता है। इसे किसी की भक्ति को गहरा करने और भगवान विष्णु की दिव्य कृपा प्राप्त करने के अवसर के रूप में देखा जाता है।
त्योहार समारोह: भक्त इस एकादशी को उपवास, प्रार्थना और धार्मिक ग्रंथों के पठन के साथ मनाते हैं। वे विष्णु मंदिरों में जाते हैं, देवता को फूल, फल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं। भक्ति गीत और भजन गाए जाते हैं, और इस अवसर को मनाने के लिए धार्मिक प्रवचन आयोजित किए जाते हैं।
देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) को भगवान विष्णु से जुड़ने, उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने और आध्यात्मिक आत्मनिरीक्षण की अवधि को गले लगाने के अवसर के रूप में देखा जाता है। यह अपने कार्यों पर चिंतन करने, मन को शुद्ध करने और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को गहरा करने का समय है।
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देवशयनी एकादशी को भक्तों द्वारा विभिन्न अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इस शुभ दिन से जुड़ी कुछ सामान्य प्रथाएं इस प्रकार हैं:
व्रत: कठोर उपवास करना देवशयनी एकादशी का एक अनिवार्य हिस्सा है। भक्त पूरे दिन किसी भी भोजन या पानी का सेवन नहीं करते हैं। कुछ लोग फल, दूध, या विशिष्ट शाकाहारी व्यंजन खाकर आंशिक उपवास करना चुन सकते हैं।
प्रार्थना और पूजा: भक्त सुबह जल्दी उठकर प्रार्थना और पूजा करने से पहले विधिपूर्वक स्नान करते हैं। वे विष्णु मंदिरों में जाते हैं या अनुष्ठान करने के लिए घर में एक पवित्र स्थान स्थापित करते हैं। भगवान विष्णु की मूर्तियों या छवियों को फूलों, चंदन के लेप और अन्य शुभ वस्तुओं से सजाया जाता है। भक्त प्रार्थना करते हैं, भक्ति भजन गाते हैं, और भगवान विष्णु को समर्पित मंत्रों का पाठ करते हैं।
तुलसी पूजा: तुलसी (पवित्र तुलसी) हिंदू अनुष्ठानों में बहुत महत्व रखती है। देवशयनी एकादशी पर भक्त तुलसी के पौधे की विशेष पूजा करते हैं। वे पौधे को पानी देते हैं, इसकी पत्तियों पर सिंदूर (कुमकुम) लगाते हैं, और देवी तुलसी का आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना करते हैं।
पवित्र ग्रंथों को पढ़ना: भक्त भगवद गीता, विष्णु सहस्रनाम (भगवान विष्णु के हजार नाम), या पद्म पुराण जैसे पवित्र ग्रंथों को पढ़ने और पढ़ने में समय व्यतीत करते हैं, जिसमें देवशयनी एकादशी से जुड़ी कथा शामिल है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन के दौरान इन ग्रंथों को पढ़ने और चिंतन करने से आध्यात्मिक योग्यता प्राप्त होती है।
दान और अच्छे कर्म: देवशयनी एकादशी पर भक्त दान और दया के कार्यों में शामिल होते हैं। वे जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या पैसे दान करते हैं और आशीर्वाद और सकारात्मक कर्म पाने के लिए निस्वार्थ कार्य करते हैं।
रात्रि जागरण: कुछ भक्त देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2023 Date) की रात में जागते रहते हैं, निरंतर भक्ति गतिविधियों में शामिल रहते हैं जैसे भजन गाना (भक्ति गीत), धार्मिक प्रवचन सुनना, या धार्मिक समारोहों में भाग लेना।
ये मान्यताएं क्षेत्रीय रीति-रिवाजों और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर अलग भी हो सकती हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन कर्मों का मुख्य उद्देश्य इस महत्वपूर्ण दिन के दौरान भक्ति व्यक्त करना, आध्यात्मिक विकास की तलाश करना और भगवान विष्णु से जुड़ना है।
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