Devuthani ekadashi 2024: क्या आप जानते हैं कि देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, क्यों इतनी खास मानी जाती है? यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है। इस साल देवउठनी एकादशी 12 नवंबर 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जागते हैं, और इसके साथ ही शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत होती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस साल 2024 में 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जायेगी। इसे कई जगह देव उत्थान के नाम से भी जाना जाता है।
देवउत्थान एकादशी: 12 नवंबर 2024, मंगलवार
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण - दोपहर 01:01 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ: 11 नवंबर 2024 को शाम 06:46 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2024 को शाम 04:04
13 नवंबर को पारण का समय: सुबह 06:39 बजे से सुबह 08:52 बजे तक।
इस शुभ अवसर पर व्रत रखकर और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके आप उनके विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति कर सकते हैं।
देवउठनी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। चातुर्मास के दौरान, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक योगनिद्रा में रहते हैं। इन चार महीनों के दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और नामकरण संस्कार आदि नहीं किए जाते। जब भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन अपनी योगनिद्रा से जागते हैं, तब से ये सभी धार्मिक और शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं।
इस दिन को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। भक्तों का मानना है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही, इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है, जिसे वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
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देवउठनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। आइए जानें कि इस दिन व्रत और पूजा कैसे की जाती है:
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखना बेहद शुभ माना जाता है। लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते हैं या फलाहार करके व्रत का पालन करते हैं। व्रत करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। पूजा के दौरान भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाया जाता है और धूप-दीप से आरती की जाती है। पूजा में भगवान को तुलसी पत्र चढ़ाना बेहद शुभ माना जाता है।
इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह भी रचाया जाता है, जिसे तुलसी विवाह कहा जाता है। यह विवाह एक सांकेतिक अनुष्ठान है, जो वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। घर-घर में इस विवाह का आयोजन किया जाता है और इसे बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की कथा का सुनना भी बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। इस कथा में भगवान विष्णु की लीलाओं और उनके जागरण के बारे में बताया जाता है। कथा सुनने से व्रत और पूजा का पूर्ण फल मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
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देवउठनी एकादशी से जुड़ी एक बहुत ही दिलचस्प पौराणिक कथा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हैं। इस दौरान ब्रह्मांड का संचालन भगवान शिव और अन्य देवगण करते हैं। चातुर्मास की इस अवधि में सभी धार्मिक और शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि स्थगित रहते हैं।
जब भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं, तब से सारे धार्मिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन को भगवान विष्णु के जागरण का दिन माना जाता है और इसे लेकर भक्तजन भगवान से अपने जीवन में नए शुभ अवसरों की कामना करते हैं।
तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी का एक बेहद महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है और भगवान विष्णु को लक्ष्मीपति कहा जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन करने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह के लिए पहले तुलसी के पौधे को सजाया जाता है और उसके पास भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की जाती है। फिर विधिपूर्वक मंत्रोच्चार के साथ तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह संपन्न कराया जाता है। यह विवाह वैवाहिक जीवन के लिए बहुत शुभ माना जाता है और इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी के व्रत और पूजा में कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनका पालन करना बहुत जरूरी होता है। आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में:
इस दिन भक्त निर्जला व्रत रखते हैं यानी दिन भर पानी भी नहीं पीते। कुछ लोग फलाहार करके भी व्रत का पालन करते हैं। व्रत के दौरान सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए और अनाज का सेवन वर्जित होता है।
व्रत रखने वालों को प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा का विधान करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लिया जाता है।
तुलसी के पौधे की पूजा इस दिन बहुत महत्वपूर्ण होती है। तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती है और तुलसी पत्र चढ़ाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
एकादशी की शाम को भगवान विष्णु की कथा सुनना और सुनाना बेहद शुभ माना जाता है। इस कथा का श्रवण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है। 13 नवंबर 2024 को सुबह 06:39 बजे से 08:52 बजे के बीच व्रत तोड़ा जा सकता है। इस समय के दौरान व्रत का पारण करना बेहद शुभ माना जाता है।
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देवउठनी एकादशी के दिन कुछ खास कार्यों को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आइए जानें कि इस दिन क्या करना चाहिए:
भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा जरूर करनी चाहिए। इससे जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह का आयोजन: तुलसी विवाह का आयोजन करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
गरीबों और जरूरतमंदों को दान: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
संध्या समय आरती और कथा: संध्या समय भगवान की आरती करनी चाहिए और देवउठनी एकादशी की कथा का श्रवण करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी पर क्या न करें?
देवउठनी एकादशी के दिन कुछ कार्य वर्जित होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी है:
अनाज का सेवन न करें: इस दिन अनाज का सेवन वर्जित होता है।
क्रोध और विवाद से बचें: व्रत के दिन क्रोध करना और किसी से विवाद करना ठीक नहीं होता।
सात्विक जीवन शैली अपनाएं: इस दिन मांसाहार और तामसिक चीजों से दूर रहें।