Father’s Day: 2022 में कब है फादर्स डे? कब और क्यों मनाया जाता हैं ये दिन, जानिए

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Father’s Day: 2022 में कब है फादर्स डे? कब और क्यों मनाया जाता हैं ये दिन, जानिए

Father’s Day (फादर्स डे) जिस तरह माताओं के सम्मान के लिये मदर्स डे यानि मातृ दिवस मनाया जाता है उसी प्रकार पिताओं के सम्मान के लिये फादर्स डे भी मनाया जाता है। भारत सहित दुनिया के अनेक देश इसे जून महीने के तीसरे रविवार को मनाते हैं। वर्ष 2022 में यह रविवार 18 जून को पड़ रहा है।

फादर्स डे वर्तमान में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। अधिकतर देश इसे जून माह के तीसरे रविवार को मनाते हैं लेकिन कुछ देशों में इस दिन को मनाने की अलग-अलग तिथियां भी है। भारत के संदर्भ में देखा जाये तो वर्तमान में भारत में भी इन पर्वों का प्रचलन बढ़ रहा है। लेकिन भारत में केवल पिता के सम्मान में नहीं बल्कि समस्त पूर्वज़ों के सम्मान में और सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि महीने के पूरे 15 दिन विशेषकर हिंदूओं में पितृ-पक्ष पितरों की शांति के लिये उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिये मनाया जाता है। इसलिये इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। खैर फादर्स डे का भी अपना महत्व है।

पितृ दिवस और पितृ दोष
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पिताओं के सम्मान में केवल एक दिन मनाया जाता है लेकिन भारत में पिता ही नहीं बल्कि समस्त पितरों की स्मृति में हिंदू पंचांग मास का एक पूरा पखवाड़ा यानि पंद्रह दिनों तक श्राद्ध पक्ष मानाया जाता है। इसे पितृ पक्ष भी कहा जाता है। पितर कौन होते हैं? पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष क्या होता है इसके लिये नीचे दिये लिंक पर क्लिक कर आप विस्तार से पढ़ सकते हैं।

पढ़ें - पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष क्या होता है?

हिंदुओं में तो जातक की जन्मकुंडली से ही पता लगाया जा सकता है कि अमूक जातक की कुंडली में कहीं पितृ दोष तो नहीं है यदि है तो उसकी शांति भी बहुत जरुरी होती हैं यानि पिता को मनाना बहुत आवश्यक होता है।

क्यों मनाया जाता है फादर्स डे 
फादर्स डे की जड़ें पश्चिमि देशों में गड़ी हैं। इतिहास की बात करें तो यह अधिक पुराना नहीं है। बल्कि इसकी शुरुआत 1907-08 से मानी जाती है। इस दिन को मनाने के पिछे एक बड़ी वजह थी। 6 दिसंबर 1907 को पश्चिमी वर्जीनिया के ही मोनोंगाह में एक खान दुर्घटना घटी। इस दुर्घटना में काफी सारे लोगों की मौत हुई जिनमें 210 लोग पिता थे। इन मृत पिताओं के सम्मान में श्रीमति ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने फादर्स डे का पहला आयोजन 5 जुलाई 1908 को पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में किया। जिस चर्च में यह आयोजन हुआ वह आज भी फेयरमोंट में सेंट्रल मेथोडिस्ट चर्च के नाम से जानी जाती है।

फादर्स डे का महत्व
फादर्स डे-मदर्स डे, पुरुष दिवस-महिला दिवस, जैसे अनेक दिन प्रत्येक वर्ष अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने लगे हैं। लेकिन इनकी शुरुआत पश्चिमी देशों से होकर फिर प्रसार दुनिया के अन्य देशों में हुआ। भारत में तो इनका चलन हाल के कुछ सालों से अधिक देखने को मिल रहा है। पश्चिमी देशों में फादर्स डे मनाने के लिये कारण समझ में आता है। वहां चूंकि संयुक्त परिवारों की परंपरा अमूमन तो है ही नहीं यदि है तो बहुत कम। दूसरा माता-पिता के बीच के रिश्तों में स्थायीत्व न होने से भी बच्चों पर इसका असर पड़ता है और अधिकतर परिवारों में बच्चों को माता-पिता का एक साथ प्यार बहुत कम मिल पाता है। या तो बच्चे मां के पास रहते हैं या फिर उन्हें पिता का प्यार मिल पाता है। ऐसे में कमी रहना वाजिब है। एकल माता-पिता अपने बच्चे की परिवरिश किन तकलीफों से गुजर कर करते हैं इससे भी माता-पिता के लिये सम्मान वाजिब है।

पितृ दोष कैसे दूर होगा? इसके लिये आप एस्ट्रोयोगी पर इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से गाइडेंस ले सकते हैं।


भारत में फादर्स डे
भारत में फादर्स डे का महत्व बताने की आवश्यकता नहीं है। भारत का तो समाज ही पितृसत्तात्मक समाज माना जाता है। पिता के हाथ में पूरे परिवार की बागडौर रहती है। हालांकि समय के साथ-साथ संयुक्त परिवारों के विघटन होने व पश्चिमी संस्कृति के प्रचार-प्रसार, आधुनिक चकाचौंध और समय की जरुरतों ने परिवार बहुत छोटे कर दिये हैं। खासकर बड़े शहरों में तो परिवार बहुत छोटे हो गये हैं। ऐसे में माता-पिता से मिलना या उनके लिये प्यार जताने के लिये भी एक विशेष दिन की आवश्यकता पड़ने लगी है। दिन ब दिन वृद्धाश्रमों में बढ़ रही बुजूर्गों की संख्या भी माता-पिता के साथ आधुनिक पीढ़ी के रिश्तों को उजागर करती है। यह स्थिति अगर गहराई से देंखें तो भयावह नज़र आती है।

फादर्स डे पर लें संकल्प
फादर्स डे यानि पितृ दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने पिता सहित घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान करेंगें जैसी कि भारतीय परंपरा भी रही है। क्योंकि आज हम जिस मुकाम पर खड़े हैं निश्चित तौर पर हमारी कामयाबी के पीछे हमारे माता-पिता की कड़ी मेहनत, उनकी लगन का हाथ है। उनके आशीर्वाद के बिना हम यह सफर तय नहीं कर पाते। जब हम खुद माता-पिता के भूमिका में आते हैं तो उनकी मेहनत को अच्छे से समझ पाते हैं।

 


 

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