“जिस बाग में तरह-तरह के फूल हों, उसकी खूबसूरती अद्भुत होती है“ -स्वामी विवेकानंद
हमारे देशरूपी बाग में अनेक धर्मों ने फूलों की तरह खिलकर इसे खूबसूरत गुलदस्ते का रूप दिया है। यही धार्मिक एकता, सद्भाव हमारी विशेषता है, जिसके बूते हम कहते हैं 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।' आज विश्व में धार्मिक एकता वाला कोई देश है तो वह भारत ही है। सभी धर्म के लोग जितने प्यार और भाईचारे के साथ यहाँ रह रहे हैं दुनिया के किसी और मुल्क में ऐसा नहीं है।
बेशक कभी-कभी धर्म के नाम पर लोग झगड़ भी लेते हैं, लेकिन हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि जितना हिन्दू मुस्लिम प्यार यहाँ मिलता है, वो दुनिया के अन्य देशों में दो धर्मों को लेकर नहीं मिल सकता है। आज ना जाने कितने मुस्लिम फकीरों की पूजा हिन्दू कर रहे हैं और कई हिन्दू पूजा स्थलों को मुस्लिम लोग चला रहे हैं।
आइये इसी क्रम में आज पढ़ते हैं हनुमान जी के दो मंदिरों के बारे में, जिनका निर्माण हनुमान जी के दो मुस्लिम भक्तों ने करवाया है-
भगवान राम की नगरी अयोध्या में स्थित है, हनुमान गढ़ी मंदिर। यह मंदिर सरयू नदी के किनारे पर बना हुआ है। यहाँ जाने के लिए आपको 76 सीढियाँ चढ़नी होती हैं। वैसे कहते हैं कि भगवान राम के दर्शन करने से पहले आपको हनुमान जी से आज्ञा लेनी पड़ती है। आज भारत में हनुमान गढ़ी मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के पीछे छुपी कहानी काफी रोचक है। करीब 300 साल पहले यहाँ के सुल्तान मंसूर अली थे। एक रात इनके इकलौते बेटे की तबियत काफी खराब हो गयी। रात में बेटे की सांसें जब खत्म होने लगीं, तब सुल्तान मंसूर अली हनुमान जी के चरणों में आये। (उस समय यहाँ एक हनुमान जी का बहुत ही छोटा सा मंदिर था)
पहले तो सुल्तान को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन जब इन्होनें हनुमान जी को दिल से पुकारा तो बेटे की उखड़ी सांसें वापस आ गयीं। तब इनकी आस्था बजरंग बलि जी के लिए इतनी ज्यादा हो गयी कि इन्होनें यहाँ 52 बीघा जमीन मंदिर और इमली वन के नाम कर दी। और इस मंदिर को विशाल रूप देकर, मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया।
संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण पूरा हुआ। संत अभयारामदास निर्वाणी अखाड़ा के शिष्य थे और यहाँ इन्होंने अपने सम्प्रदाय का अखाड़ा भी स्थापित किया था।
बाद में वैसे इस प्यार को खत्म करने का काम, देश के बाहर से आये शासकों ने कई बार किया। इन्होनें कई बार टीले पर बने मंदिर को तोड़ने की कोशिश की, पर आज हनुमान टीले पर मंदिर खड़ा हुआ है और हिन्दू-मुस्लिम एकता का गवाह बना हुआ है।
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लगभग 200 साल पहले पूर्व अवध के नवाब थे मुहम्मद अली शाह। इनकी बेगम रबिया थीं। दोनों ही औलाद सुख से महरूम थे। काफी दुआ की गयीं, जगह-जगह माथा टेका गया। दोनों जो कर सकते थे वो दोनों ने किया। पर इनके यहाँ नन्हा फरिस्ता नही आया।
एक दिन बेगम को कोई, यहाँ रहने वाले एक संत के बारे में बताता है कि आप एक बार उन हिन्दू संत बाड़ी वाले बाबा के पास जाओ। बेगम संत के पास जाती हैं, और बाबा इनकी फरियाद पहुँचा देते हैं, हनुमान जी तक।
रात को बेगम को सपने में हनुमान जी के दर्शन होते हैं, जो इनको इस्लामबाडी टीले के नीचे दबी अपनी मूर्ति को निकालने और फिर मंदिर निर्माण की आज्ञा देते हैं। बेगम सुबह संत के साथ वहां जाती हैं और मूर्ति इनको खुदाई में मिलती है। वही मूर्ति अलीगंज के मन्दिर में स्थापित है। बेगम ने जब इस मंदिर का निर्माण करा दिया तो इसके बाद बेगम को बेटे की प्राप्ति होती है।
इन दोनों ही मंदिरों में चमत्कारिक और अद्भुत शक्ति का वास बताया जाता है। देश विदेश से लाखों लोग यहाँ हनुमान जी का आशीर्वाद लेने पूरे साल आते रहते हैं। आज भारत के यह दोनों मंदिर, एकता और भाईचारे की एक मिसाल हैं।
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