कहा जाता है कि 84 लाख योनियों को भोगने के बाद ही जीव को मानव शरीर की प्राप्ति होती है और मनुष्य योनि को सबसे उत्तम योनि माना गया है। वहीं मनुष्य के जन्म और मृत्यु का लेखाजोखा ऊपरवाले के हाथों में होता है। आपके पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर ही अगले जन्म में आपको सुख-दुख की प्राप्ति होती है और सुख-दुख आपकी जन्मकुंडली में उपस्थिति ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर तय होते हैं। इसके अलावा आपके जन्म की तिथि और ग्रहों की स्थिति भी आपके जीवन में आने वाले सुख-दुख को तय करती है। यदि आपका जन्म अशुभ वक्त पर हुआ है तो आपको जीवन में कई कष्ट भोगने पड़ सकते हैं, लेकिन आपका जन्म शुभ समय पर हुआ है तो आपको जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।
यह उपाय सामान्य ज्योतिषीय आकलन के आधार पर लिखे गए हैं। अपनी कुंडली और ग्रहों के अनुसार अशुभ प्रभावों को जानने और उनके समाधान के लिए आप अनुभवी ज्योतिषाचार्यों से परामर्श ले सकते हैं। अभी बात करने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें और +91-99-990-91-091 पर कॉल करें।
यदि किसी जातक का जन्म अमावस्या तिथि को हुआ है तो इसे काफी अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह दिन पूर्ण चंद्रमा रहित होता है और वैसे भी आमतौर पर अमावस्या को शुभ कार्यों के लिए भी अनुचित माना गया है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, अमावस्या को 'दर्श' के नाम से जाना जाता है। अमावस्या के दिन जिस व्यक्ति का जन्म होता है उसे जीवनभर आर्थिक परेशानी से जूझना पड़ सकता है और उन्हें यश-सम्मान की प्राप्ति नहीं हो पाती है। इतना ही नहीं उस जातक के जन्म के साथ उसके परिवार में भी आर्थिक समस्याएं शुरु हो जाती हैं। इसलिए अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर सूर्य-चंद्र जैसे ग्रहों की शांति के लिए शांतिपाठ करवाना चाहिए ताकि इसके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सके।
सूर्य की संक्रांति में जन्मे जातक के जीवन पर काफी बुरा असर पड़ता है. इस तिथि को अशुभ माना जाता है वैसे तो सूर्य की 12 संक्रांति हैं लेकिन ग्रहों की संक्रांतियों के नाम कुछ इस प्रकार हैं, जैसे- घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मंदा, मंदाकिनी, मिश्रा और राक्षसी इत्यादि। इसके अलावा अलग-अलग संक्रांति में जन्मे लोगों के जन्म का प्रभाव भी अलग-अलग होता है। इसके नेगेटिव प्रभाव से बचने के लिये ज्योतिषाचार्य आपको अच्छे से गाइड कर सकते हैं। आप एस्ट्रोयोगी पर इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से ऑनलाइन गाइडेंस ले सकते हैं। यहां दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
भद्राकाल में जन्म
आमतौर पर भद्राकाल में किसी भी मंगल कार्य को नहीं किया जाता है। भद्राकाल को अशुभ मानते हुए इस तिथि में जन्मे लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। इस काल में जन्मे जातकों को जीवनभर परेशानियों और असफलता का सामना करना पड़ सकता है। इस भद्रा योग के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए जातक को सूर्य सूक्त, पुरुष सूक्त और शांति पाठ जैसे अनुष्ठान कराने चाहिए। इसके अलावा पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए।
कृष्ण चतुर्दशी में जन्म
यदि किसी जातक का जन्म कृष्ण चतुर्दशी में होता है तो उसे अरिष्ट कारक माना जाता है। इस तिथि को पराशर महोदय ने 6 भागों में विभाजित किया और अलग-अलग काल में अलग-अलग फल बताए हैं। पराशर महोदय कृष्ण चतुर्दशी तिथि को 6 भागों में बांट कर उस काल में जन्म लेने वाले जातक के विषय में अलग अलग फल बताते हैं। अगर किसी का जन्म पहले भाग में हुआ है तो उसे शुभ माना जाता है लेकिन शेष सभी 5 भागों में जन्में लोगों के लिए यह तिथि कष्टकारी होती है। इसके दूसरे भाग में जन्म लेने पर पिता को, तीसरे भाग में जन्म लेने पर माता को और चौथे भाग में जन्म लेने पर मामा को कष्ट उठाना पड़ता है। वहीं 5वें भाग में जन्म लेने पर वंश के लिए अरिष्ट कारक माना जाता है और अंतिम भाग में जन्म लेने पर आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। यदि आपके बच्चे का जन्म इस तिथि में हुआ हो तो आपको रूद्राभिषेक करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए ताकि इसके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सके।
समान नक्षत्र में जन्म
ज्योतिष के अनुसार, यदि आपके परिवार में पिता और पुत्र, माता और पुत्री, दो भाई और दो बहनों का जन्म नक्षत्र एक ही है, तो उनमें से जिसकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति कमजोर होगी, उसे जीवनभर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपको नवग्रह पूजन, नक्षत्रों की पूजा करानी चाहिए ताकि इसके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सके।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण में जन्म
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, जिन लोगों का जन्म सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण काल में हुआ है, तो ऐसे जातकों को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं सूर्यग्रहण काल के दौरान जन्मे लोगों की अकस्मात मृत्यु की संभावना भी बनी रहती है। इस काल में जन्मे जातकों को नक्षत्र के स्वामी की पूजा करनी चाहिए।
सर्पशीर्ष में जन्म
अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय और चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। इस तिथि में जन्मे जातक पर अशुभ प्रभाव पड़ता है। इस योग में शिशु का जन्म होने पर रुद्राभिषेक और ब्रह्माणों को भोजन जैसे अनुष्ठान करवाने चाहिए।
गंडांत योग में जन्मे जातक
पूर्णातिथि(5,10,15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि(1,6,11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इस योग में जन्मे जातक के पिता को बच्चे का मुख देने की अनुमति नहीं होती है। इस योग की शांति के लिए गाय, बैल और सोने का दान करना चाहिए। इसके अलावा
“दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि।
जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।। “
मंत्रोच्चार करना चाहिए।
त्रिखल दोष में जन्म
जब 3 बेटियों के बाद बेटे का जन्म होता है या 3 बेटों के बाद बेटी का जन्म होता है तब त्रिखल दोष लगता है। इस दोष में माता-पिता दोनों को अरिष्टकारी परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इस दोष को शांत करने के लिए शांतिपाठ का अनुष्ठान करना चाहिए।
मूल में जन्म दोष
उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों में मूल नक्षत्र भी आते हैं। जब किसी जातक का जन्म इस नक्षत्र में होता है तो इसका प्रभाव उसके जीवन में काफी बुरा पड़ता है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक की वजह से माता-पिता की आयु और धन की हानि हो सकती है। इस नक्षत्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए 27 दिन के भीतर मूल शांति का पाठ करा लेना चाहिए।
अन्य दोष
उपरोक्त दोषों के अलावा कुंडली में स्थित यमघण्ट योग, वैधृति या व्यतिपात योग और दग्धादि योग को भी अशुभ माना गया है। इस योग में जन्मे जातकों को शांति पूजा अवश्य करानी चाहिए।
अशुभ जन्मतिथि के अरिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिये ज्योतिषाचार्य आपको अच्छे से गाइड कर सकते हैं। आप एस्ट्रोयोगी पर इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से ऑनलाइन गाइडेंस ले सकते हैं।