ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम् अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है| इसमें मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति संबधित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है| नभमंडल में स्थित ग्रह नक्षत्रों की गणना एवं निरूपण मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और यह व्यक्तित्व की परीक्षा की भी एक कारगर तकनीक है और इसके द्वारा किसी व्यक्ति के भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पता किया जा सकता है साथ ही यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति के जीवन में कौन-कौन से घातक अवरोध उसकी राह रोकने वाले हैं अथवा प्रारब्ध के किस दुर्योग को उसे किस समय सहने के लिए विवश होना पड़ेगा और ऐसे समय में ज्योतिष शास्त्र ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जातक को सही दिशा प्राप्त होती है|
ज्योतिष को लोग एक धर्मशास्त्र की तरह देखते हैं, परंतु वस्तुतः यह एक विज्ञान है| ज्योतिष के मर्मज्ञ एवं आध्यात्मिक ज्ञान के विशेषज्ञ दोनों ही एक स्वर से इस सच्चाई को स्वीकारते हैं कि मनुष्य जैसे उच्चस्तरीय प्राणी की स्थिति में परिवर्तन उसके कर्मो, विचारों, भावों एवं संकल्पों के अनुसार होता है इसलिए मनुष्य के जन्म के क्षण का विशेष महत्व है यह वही क्षण है जो व्यक्ति को जीवन भर प्रभावित करता है|
ऐसा क्यों है? इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि प्रत्येक क्षण में ब्राह्मंडीय उर्जा की विशिष्ट शक्तिधारायें किसी-न-किसी बिंदु पर किसी विशेष परिमाण में मिलती हैं मिलन के इन्हीं क्षणों में मनुष्य का जन्म होता है और इस क्षण में यह निर्धारित हो जाता है कि उर्जा की शक्तिधारायें भविष्य में किस क्रम में मिलेंगी और जीवन पर अपना क्या प्रभाव डालेंगी|
व्यक्ति के जन्म का क्षण सदा ही उसके साथ रहता है| जन्म के क्षण का विशेष महत्व है क्योंकि यह बताता है कि जीवात्मा किन कर्मबीजों,प्रारब्धों व संस्कारों को लेकर किन और कैसे उर्जा -प्रवाहों के मिलन बिंदु के साथ जन्मी है|
जन्म का क्षण इस विराट ब्राह्मंड में व्यक्ति को व उसके जीवन को एक विशेष स्थान देता है| यह कालचक्र में ऐसा स्थान होता है जो सदा अपरिवर्तनीय है और इनके मिलन के क्रम के अनुरूप ही सृष्टि, व्यक्ति, जंतु, वनस्पति, पदार्थ, घटनाक्रम इत्यादि जन्म लेते हैं इसी क्रम में उनका विलय-विर्सजन भी होता है|
ज्योतिष विज्ञान के अन्वेषक महर्षियों ने इस ब्रह्माण्डीय उर्जा प्रवाहों को चार चरणों वाले सत्ताइस नक्षत्रों, बारह राशियों एवं नवग्रहों में वर्गीकृत किया है| इनमें होने वाले परिवर्तन क्रम को उन्होंने विंशोत्तर, अष्टोत्तर एवं योगिनी नक्षत्रों के क्रम में देखा है| इनकी अंतर और प्रत्यंतर दशाओं के क्रम में इन उर्जा -प्रवाहों के परिवर्तन क्रम की सूक्ष्मता समझी जाती है|
ज्योतिष विज्ञान को सही ढंग से जान लिया जाए तो मनुष्य अपनी मौलिक क्षमताओं को पहचान सकता है और उन्हें पहचान कर अपने स्वधर्म की खोज भी कर सकता है।उस स्थिति में वह कालचक्र में अपनी स्थिति को प्रभावित करने वाले उर्जा प्रवाहों के क्रम को पहचान कर ऐसे अचूक उपायों को अपना सकता है जिससे कालक्रम के अनुसार परिवर्तित होने वाले उर्जा प्रवाहों के क्रम से उसे क्षति न पहुँचे। इस कालक्रम का ज्ञान किसी को एक योग्य ज्योतिषी ही करा सकता है और ज्योतिष के ज्ञान का यही विशेष महत्व है और इस ज्ञान की महत्वपूर्ण कड़ी एक योग्य ज्योतिषी ही है। महादशाओं, अंतर्दशाओं एवं प्रत्यंतरदशाओं में ग्रहों के मंत्र, दान की विधियों, मणियों का प्रयोग आदि बताकर इनके दुष्प्रभावों से एक ज्योतिषी आपका उचित मार्गदर्शन कर सकता है और जीवन में सफलता अर्जित करने का सही मार्ग दिखा सकता है। किन्तु आज के समय में हमें योग्य ज्योतिषी की खोज एक कठिन कार्य मालूम पड़ता है लेकिन इस कठिन कार्य को एस्ट्रोयोगी नें आम जनमानस के लिए बहुत सरल कर दिया है एस्ट्रोयोगी के माध्यम से भारत के सर्वश्रेष्ठ और प्रमाणित ज्योतिषीयों से परामर्श प्राप्त किया जा सकता है| एस्ट्रोयोगी ज्योतिष जगत में जनमानस के लिए एक वरदान की तरह है|