कब है कालभैरव जयन्ती 2024? जानें इसके महत्व, पूजा विधि और कथा

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कब है कालभैरव जयन्ती 2024? जानें इसके महत्व, पूजा विधि और कथा

Kaal Bhairav Jayanti 2024: क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के रौद्र रूप, कालभैरव की जयंती क्यों मनाया जाती है और इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है? कालभैरव, जिन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है, अपने भक्तों के संकटों का खात्मा कर जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाते हैं। उनकी पूजा में खास नियम और विधियां अपनाई जाती हैं, जैसे रात में व्रत रखना, काले तिल और सरसों के तेल से पूजा करना, और काले कुत्ते को भोजन कराना। आइए, इस पावन दिन के महत्व, पूजा विधि, और कालभैरव की कथा के माध्यम से जानें कि कैसे यह दिन आपके जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर सकता है।

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कब है कालभैरव जयंती 2024(Kaal Bhairav Jayanti)?

इस वर्ष कालभैरव जयन्ती 22 नवंबर 2024, शुक्रवार को मनाई जाएगी। कार्तिक माह की कालाष्टमी के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व भक्तों को भय, कष्ट और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

कालभैरव जयन्ती:  शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024 

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 22, 2024 को शाम 06:07 बजे से,

अष्टमी तिथि समाप्त - नवम्बर 23, 2024 को शाम 07:56 बजे तक।

कालभैरव जयन्ती का महत्व

कालभैरव जयन्ती, विशेष रूप से कार्तिक माह की कालाष्टमी के दिन मनाई जाती है, जो इस वर्ष 22 नवम्बर 2024 (शुक्रवार) को पड़ रही है। यह दिन विशेष रूप से भगवान कालभैरव की पूजा और व्रत के लिए समर्पित है। कालभैरव को भगवान शिव के रौद्र रूप के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हैं। कालभैरव का स्वरूप विकराल और क्रोधी होता है, और यह अपनी शक्ति से सभी प्रकार के भय, दुख और कष्टों को दूर करते हैं।

कालभैरव की पूजा विशेष रूप से रात में की जाती है, और उनका व्रत रखने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस दिन, कालभैरव की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से छुटकारा मिलता है। कालभैरव को अपने भक्तों को हर प्रकार का आशीर्वाद देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है, और उनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

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कालभैरव जयन्ती कब मनाई जाती है?

कालभैरव जयन्ती, हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, जिसे कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन, भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव की पूजा की जाती है। साल 2024 में यह दिन 22 नवम्बर (शुक्रवार) को है। यह दिन पापियों को दंड देने वाला माना जाता है, और इस दिन पूजा करने से सभी भय और संकट समाप्त हो जाते हैं।

क्यों मनाई जाती है कालभैरव जयन्ती?

कालभैरव जयन्ती का आयोजन भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव के जन्म दिवस के रूप में किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के रूप में कालभैरव का जन्म हुआ था। इस दिन की पूजा से न केवल भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि व्यक्ति की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कालभैरव को दंडपाणि और महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वे सभी प्रकार के पापों और नकारात्मक शक्तियों का दमन करते हैं।

कालभैरव की पूजा विधि (Kaal Bhairav Puja Vidhi)

कालभैरव जयन्ती की पूजा विशेष रूप से रात में की जाती है। इस दिन उपासक को व्रत का संकल्प लेकर पवित्रता से पूजा करनी चाहिए। पूजा में काले तिल, सरसों का तेल, धूप, दीपक, और उड़द का उपयोग किया जाता है। पूजा के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से कालभैरव की कथा सुनना भी अनिवार्य होता है, जिससे पूजा का फल और अधिक शुभकारी होता है।

कालभैरव की पूजा का लाभ

कालभैरव की पूजा से कई लाभ प्राप्त होते हैं:

  • इससे आपको भय, दुख और संकटों से मुक्ति मिल सकती है।

  • कालभैरव पूजा करने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का वास हो सकता है।

  • यह पूजा करने से कष्टों और समस्याओं का समाधान हो सकता है।

  • कालभैरव की पूजा करने से आपको पापों से मुक्ति और कर्मों का शुभ फल मिलता है।

कालभैरव की कथा

एक समय देवताओं के बीच यह विवाद हुआ कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। भगवान ब्रह्मा ने स्वयं को श्रेष्ठ घोषित किया और भगवान शिव का अपमान किया। इस पर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उनके रौद्र रूप कालभैरव का अवतार हुआ। कालभैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया और ब्रह्मा को अपमान करने के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कालभैरव काशी पहुंचे, जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। काशी में उनकी स्थापन के बाद उन्हें काशी का कोतवाल माना गया।

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कालभैरव को काशी का कोतवाल क्यों कहा जाता है?

काशी के कोतवाल के रूप में कालभैरव की पूजा का महत्व अत्यधिक है। काशी की देखरेख और सुरक्षा का जिम्मा भगवान कालभैरव पर है, इसलिए काशी के हर भक्त को विश्वनाथ के दर्शन से पहले कालभैरव के दर्शन करने चाहिए। मान्यता है कि काशी में बिना कालभैरव के दर्शन के विश्वनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। कालभैरव को काशी का कोतवाल मानने के पीछे एक विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक कारण है, जो शिव पुराण से जुड़ा हुआ है।

कालभैरव जयन्ती, जो इस वर्ष 22 नवम्बर 2024 को मनाई जाएगी, एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है जो भक्तों को जीवन के हर कष्ट, भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाता है। इस दिन की पूजा विधि, कालभैरव की कथा, और विशेष मंत्रों का जाप करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। कालभैरव का आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों को इस दिन की पूजा सही विधि से करनी चाहिए।

कालभैरव जयन्ती से जुड़ी किसी भी व्यक्तिगत जानकारी के लिए अभी सम्पर्क करें एस्ट्रोयोगी के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर से।

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