मई दिवस को पूरे विश्व में मजदूर सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस क्यों घोषित किया गया। इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है। जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे। इस दिन को मनाने के लिए मजदूर यूनियन व समाजिक संगठन कई आयोजन करते हैं जिसमें श्रमिकों को उनके अधिकार के बारे में उचित जानकारी दी जाती है। इस लेख में हम श्रमिक दिवस क्यों मनाया जाता है, इस दिन का क्या ऐतिहासिक महत्व है, भारत में कब यह दिवस मनाया गया, इसके बारे में जानकारी देंगे।
यह दिवस 1 मई को पूरे विश्व में श्रमिकों के त्याग तथा बलिदान व उनके द्वारा अपने अधिकारों को पाने के लिए किए गए संघर्षों को याद करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन का प्रमुख उद्देश्य मजदूरों को मुख्य धारा में बनाए रखने के साथ ही उनके अधिकारों की रक्षा करना है। वर्तमान में इस अवसर पर कई यूनियनों व समाजिक संस्थाओं द्वारा श्रमिकों के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इस दिवस को मनाने व तय करने के पीछे का श्रेय अठारहवीं शताब्दी के अस्सी के दशक में हुए एक आंदोलन को जाता है। जिसे अमेरिका के श्रमिकों द्वारा किया गया था। श्रमिकों का यह आंदोलन तब एक जन आंदोलन में बदल गया, जब आंदोलन के दौरान पुलिस व श्रमिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। इस झड़प में पुलिस ने गोलीबारी की जिसमें कई श्रमिक मारे गए। जिसके विरोध में स्थानीय लोग उठ खड़े हुए। परंतु इस आंदोलन से पूर्व ही 18वीं शताब्दी की शुरूआत में ही कई अमेरीकी यूनियनों ने काम का समय दस घंटे किए जाने को लेकर आंदोलन कर अपने अधिकारों को प्राप्त किया। लेकिन 18वीं शताब्दी के अस्सी के दशक में हुए हेमार्केट आंदोलन ने सब कुछ बदल दिया। इस आंदोलन में हुई हिंसक झड़प का कारण एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा आंदोलन के दौरान किया गया बम धमाका था। जिसमें कईयों को अपनी जान गवानी पड़ी थी।
1889 में हुए अंतर्राष्ट्रीय महासभा के दूसरे बैठक में मई दिवस को मानाने की मान्यता प्रदान की गई। माना जाता है कि इस मान्यता को फ्रेंच आंदोलन में हुए भारी संघर्ष को ध्यान में रखकर दिया गया था। अंतर्राष्ट्रीय महासभा में 80 देशों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में इस दिन को मनाने की घोषणा कर दी। उस दिन विश्व के 80 देशों ने श्रमिक समुदाय के अधिकारों को मान्यता देते हुए एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश देना तय किया।
उपलब्ध जानकारी के आधार पर विश्व की पहली मजदूर राजनीतिक दल का गठन 1828 में फ़िलाडेल्फ़िया अमेरिका में हुआ। जिसके बाद अमेरिका में छः वर्षों के भीतर साठ से अधिक शहरों में कई मजदूर राजनीतिक पार्टियों का गठन हुआ। इन सभी दलों की मांगों में राजनीतिक सामाजिक मुद्दे शामिल थे। जिनमें कार्य का दिवस दस घंटे करना, मजदूरों के बच्चों को शिक्षा, देश की सेना में अनिवार्य सेवा देने के नियम को हटाना, कर्जदार श्रमिकों को सजा नहीं, श्रम का मेहनताना नकद में देना तथा आयकर का प्रावधान खत्म करने जैसी कई मांगे शामिल थीं। इन मांगों को लेकर पार्टियां नगर पालिका व विधानसभा के चुनाव में उतरीं और साल 1829 के अमेरिकी चुनाव में 20 श्रमिक प्रत्यासी चुनाव जीते, इसके बाद दस घंटे कार्य दिवस करने के संघर्ष की बदौलत न्यूयार्क में वर्किंग मैन्स पार्टी की स्थापना हुई।
भारत में पहली बार मई दिवस मनाने का आह्वान 1923 में किया गया था। इसके पीछे कमूनिस्ट नेता सिंगारवेलु चेट्टियार की अहम भूमिका थी। उन्होंने ही भारत में विश्व की तर्ज पर मई दिवस यानि की श्रमिक दिवस मानाने का सुझाव दिया। जिसके लिए कई सभाओं व रैलियों का आयोजन किया और श्रमिकों में जागरूकता फैलायी गई। इन सभाओं व जूलूस के जरिए मजदूरों के हित व अधिकार की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया। आखिरकार 1923 में भारत में मई दिवस को आवकाश घोषित कर दिया गया।