Lohri 2025: लोहड़ी का त्योहार आते ही ठंड में गर्माहट का एहसास होने लगता है। यह खास दिन सिर्फ आग के पास बैठकर तिल, मूंगफली और रेवड़ी खाने का नहीं, बल्कि खुशियां और उत्साह बांटने का भी है। क्या आप जानते हैं कि लोहड़ी का त्योहार पंजाब और उत्तर भारत के किसानों के लिए क्यों इतना खास होता है? लोहड़ी सिर्फ नई फसल का स्वागत करने का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे रिश्तों में मिठास घोलने और परंपराओं को जिंदा रखने का मौका भी देता है। आइए जानें, इस साल लोहड़ी कब है, इसकी खासियतें क्या हैं, और इसे मनाने के सही तरीके।
यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है, और 2025 में यह सोमवार को पड़ेगा। लोहड़ी की खासियत यह है कि इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नामों से जाना जाता है, जैसे तमिलनाडु में पोंगल, असम में भोगाली बिहू, गुजरात में उत्तरायण और मध्य भारत में मकर संक्रांति।
लोहड़ी 2025: 13 जनवरी 2025, सोमवार को है।
लोहड़ी संक्रान्ति का क्षण - सुबह 09:03, 14 जनवरी 2025
मकर संक्रान्ति 14 जनवरी 2025, मंगलवार को है।
लोहड़ी का मुख्य महत्व प्रकृति, कृषि और समुदाय से जुड़ा है। यह त्यौहार सर्दियों की ठंडक को अलविदा कहकर सूरज की गर्मी का स्वागत करता है। साथ ही, यह दिन किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि फसल कटाई के बाद नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
सूर्य देवता को समर्पित इस त्यौहार में आग के चारों ओर परिक्रमा करके तिल, गुड़ और मूंगफली चढ़ाई जाती है। यह सामूहिकता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
लोहड़ी शब्द 'लोह' से निकला है, जो एक बड़े तवे को दर्शाता है। यह सामूहिक भोजन और एकजुटता का प्रतीक है। यह पर्व हिमालय क्षेत्र में ठंडी सर्दियों के बाद रबी फसलों की कटाई के समय मनाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में लोहड़ी को शाही दरबार में भी मनाया जाता था।
लोहड़ी का जिक्र दुल्ला भट्टी की कहानी के बिना अधूरा है। दुल्ला भट्टी, जिन्हें 'पंजाब के रॉबिनहुड' के नाम से जाना जाता है, ने कमजोरों की मदद की और गरीब लड़कियों की शादी करवाई। आज भी, दुल्ला भट्टी के सम्मान में लोकगीत गाए जाते हैं।
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किसानों के लिए लोहड़ी न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अहम है। यह दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इतिहास में इसे फसल के किराए और राजस्व संग्रह के दिन के रूप में भी देखा गया।
लोहड़ी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि परंपरा, एकजुटता और प्रकृति से जुड़ाव का उत्सव है। यह हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों और विरासत को संजोने का संदेश देता है। चाहे आप पंजाब में हों या दुनिया के किसी कोने में, लोहड़ी का जश्न आपको गर्मजोशी और खुशी से भर देगा। तो इस लोहड़ी, परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस त्यौहार का आनंद लें और खुशियों को फैलाएँ।
लोहड़ी का जश्न पारंपरिक रीति-रिवाजों और गतिविधियों से भरपूर होता है।
अग्नि पूजा और परिक्रमा:
लोग रात को लकड़ियों का बड़ा अलाव जलाते हैं। इसके चारों ओर तिल, गुड़, मूंगफली और रेवड़ी डालते हैं। यह क्रिया पुराने साल को अलविदा और नए साल का स्वागत करने का प्रतीक है।
पारंपरिक नृत्य और गीत:
भांगड़ा और गिद्धा जैसे पारंपरिक नृत्य इस दिन की खास पहचान हैं। ढोल की ताल पर लोग नृत्य करते हैं और दुल्ला भट्टी से जुड़े लोकगीत गाते हैं।
पारंपरिक भोजन:
इस दिन सरसों का साग और मक्के की रोटी का स्वाद अलग ही होता है। इसके साथ गजक, रेवड़ी और मूंगफली जैसी मिठाइयाँ परोसी जाती हैं।
बच्चों की विशेष भागीदारी:
बच्चे घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाते हैं और बदले में मिठाई, पैसे और उपहार इकट्ठा करते हैं।
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