Mahakaleshwar Bhasma Aarti: मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर, दुनिया भर के हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें जीवन और मृत्यु का स्वामी माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirlinga) में से एक है। इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। काल के देवता बाबा महाकाल का आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में आते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Ujjain) न केवल अपने धार्मिक महत्व के कारण बल्कि अपने दिव्य धाम के लिए भी बहुत प्रसिद्द है। मंदिर इतना खूबसूरत और भव्य है कि जो भी यहां जाता है वे इसकी ऐतिहासिकता में खो जाता है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही, आप शांति और सकारात्मकता की मजबूत भावना महसूस कर सकते हैं। हवा में धूप की सुगंध और मंदिर में गूंजती हुई मंत्रों की ध्वनि लोगों को ध्यान की स्थिति में ले जाती है। भक्त खुद को महाकाल (Mahakal) के करीब महसूस करते हैं। इसके अलावा महाकालेश्वर मंदिर में होने वाली भस्म आरती भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस आरती के बिना बाबा महाकाल के दर्शनों को अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं क्या रहस्य है बाबा महाकालेश्वर की भस्म आरती के पीछे।
महाकालेश्वर में होने वाली बाबा महाकाल की भस्म आरती (bhasma aarti) भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है। इसे देखने वाला भक्त बहुत भाग्यशाली माना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर में प्राचीन काल से भस्म आरती की परंपरा चली आ रही है। इसे मंगला आरती के रूप में भी जाना जाता है। यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां भस्म के द्वारा बाबा की आरती की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस आरती में शामिल होने वाले लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस आरती को देखने के लिए भक्त सुबह-सुबह मंदिर में आ जाते हैं और महाकाल के दर्शन के लिए इंतज़ार करते हैं। रोज़ाना सुबह महाकाल के श्रृंगार से पहले उनकी भस्म आरती की जाती है।
श्रद्धालुओं के लिए यह एक बेहद खूबसूरत पल होता है। जहां लोगों को अपने इष्ट के इस अनोखे रूप में दर्शन प्राप्त होते हैं। पिछले कई सालों तक यह आरती शमशान की भस्म से की जाती थी। हालांकि वर्तमान में यह आरती गोबर के उपलों और अमलतास, शमी, पीपल, पलास, बड़ व बेर की लकड़ी को जलाकर उसकी राख से की जाती है। इस आरती के साक्षी बने भक्तों को उनके कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और बाबा महाकाल का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा कहते हैं कि भस्म आरती देखे बिना बाबा महाकाल के दर्शन पूरे नहीं होते हैं।
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भस्म आरती में शामिल होने पुजारियों और श्रद्धालुओं को कुछ जरूरी नियमों का पालन करना होता है। भस्म आरती सुबह 4 बजे की जाती है। महाकाल की भस्म आरती सिर्फ पुजारी द्वारा ही की जाती है। पुजारी केवल एक ही वस्त्र यानी धोती में इस विधि को पूर्ण करते हैं। इस दौरान इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि जितने भी पुरुष आरती में शामिल हों, वे सभी धोती पहन कर आएं।
इसके अलावा, महिलाओं का इस भस्म आरती को देखना वर्जित होता है। आरती के दौरान उन्हें घूंघट रख कर खड़ा होना पड़ता है। क्योंकि महिलाएं इस भस्म आरती को नहीं देख सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि भस्म आरती के दौरान भगवान शिव निराकार रूप में होते हैं। भगवान अपने शिव रूप को बदलकर शंकर रूप में आते हैं।
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पुराने समय में महाकाल की नगरी उज्जैन में राजा चन्द्रसेन का शासन हुआ करता था। राजा चन्द्रसेन और उज्जैन की प्रजा शिव के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार जब राजा चन्द्रसेन बाबा शिव की उपासना में लीन थे तभी एक छोटा बालक उनके नजदीक आने लगा। यह देखते ही सिपाहियों ने उस बालक को वहां से भगा दिया। इसके बाद वह बालक दूर जंगल में जाकर भगवान शिव की पूजा करने लगा। पूजा के दौरान उसे महसूस हुआ कि उज्जैन नगरी पर आक्रमण होने वाला है। उस बालक ने इस सूचना को लोगों तक पहुंचाया।
राजा रिपुदमन ने राक्षस दूषण के द्वारा उज्जैन पर हमला करने की योजना बनाई थी। वे अपनी पूरी सेना को लेकर उज्जैन के लिए निकल पड़े थे। आक्रमण की इस खबर ने उज्जैन के लोगों में भय का माहौल पैदा कर दिया था। राक्षस दूषण को ब्रह्मा जी द्वारा अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था। राक्षस के प्रकोप से बचने के लिए उज्जैनवासियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान शिव ने धरती पर आकर राक्षस दूषण का वध किया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया। तब से लेकर आजतक उस स्थान पर बाबा महाकाल की पूजा की जाती है और भस्म से उनकी आरती की जाती है।
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