इस वर्ष काली जयंती हम 23 अगस्त को मनाने जा रहे हैं। इस दिन को मां काली के अवतरण या कहें तो इनके जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पूजा व दान करने का अपना ही महत्व है। काली को समय और परिवर्तन की देवी भी माना जाता है। हिंदू धर्म मान्यता है कि वे ब्रह्मांड के निर्माण से पहले के समय की अध्यक्षता करती हैं। इस लेख में हम काली जयंती के महत्व, इससे जुड़ी पौराणिक कथा व काली के रौद्र स्वरूप तथा पूजा विधि के बारे में जानेंगे।
इस दिन मां काली की उपासना करना अधिक फलदायी होता है। इस दिन भक्त मां काली के मंदिर जातक अपने अपने सामर्थ के मुताबिक दान, होम व पाठ का आयोजन करवाते हैं। इस दिन सुदरकांड का भी पाठ करवाया जाता है। इसके साथ ही इस दिन शतनाम धारा पाठ का अधिक महत्व है। यदि कोई जातक इस दिन इस पाठ का आयोजन करता है तो उस पर मां काली की कृपा होती है।
मां काली को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें से एक कुछ इस तरह है। देवी का का अवतरण पौराणिक कथा के अनुसार, देवी आदिशक्ति से हुआ है। एक बार राक्षसों व देवताओं में घोर युद्ध हुआ। जिसमें एक रासक्ष रक्तबीज था जो सेना की अगुवाई कर रहा था। देवों द्वारा राक्षस सेना का खात्मा हो गया लेकिन रक्तबीज न मरता, इससे देव परेशान हो गए। इसके बाद देवों ने देवी काली का आह्वाहन किया। मां काली राक्षस रक्तबीज का संहार करने के लिए प्रकट हुई। रक्तबीज ऐसा राक्षस था जिसका रक्त जमीन पर गिरते ही वह रक्त से खुद को पुनः जीवित करने में सक्षम था। जब युद्ध के दौरान देवी काली रक्तबीज के इस वरदान के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने इससे पहले कि रक्तबीज का रक्त जमीन पर टपके मां काली रक्तबीज का रक्त पी जाती है। इस रहत मां काली ने रक्तबीज का संहार किया।
एक और कथा प्रचलित है एक बार देवता मतंग मुनि के आश्रम पहुंते हैं। जहां वे देवी भवगवती की स्तुति करते हैं। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न देवी होकर भगवती रूप में देवताओं को दर्शन देती और पूछती हैं कि आप लोग किसकी स्तुति कर रहे हैं? उसी समय देवी के शरीर से एक स्याम वर्ण की दिव्य नारी का प्रकट होती हैं और देवी भगवती का स्वयं ही उत्तर देती हैं कि ये देव मेरा ही स्तवन कर रहे हैं। स्याह वर्ण की होने से इनका नाम देवी काली पड़ा।
संभवतः हर तस्वीर व मूरत में देवी काली को भगवान शिव की छाती पर एक पैर के साथ युद्ध क्षेत्र में खड़े हुए ही दिखाया गया है। मां काली की जीभ लाल व रक्त से सनी दिखायी देती है। लेकिन ऐसी ही तस्वीर व मूरत क्यों है मां की? कहा जाता है कि जब रक्तबीज का संहार करने के बाद भी माता की क्रोधाग्नी शांत नहीं हुई तो देवो के देव महादेव भगवान शिव उनके आगे लेट जाते हैं जिससे माता का पैर शिव के छाती पर रख देती हैं जिससे मां काली अचरज में पड़ जाती हैं। जिससे उनकी जीभ बाहर निकल आती है और उनके चेहरे का भाव क्रूर हो जाता है। इसके साथ ही माता के चार भुजा को भी दर्शाया गया है। ऊपर के एक हाथ में उसने खूनी खड्ग धारण की हैं और दूसरे ऊपरी हाथ में राक्षस रक्त बीज का कटा सिर पकड़ रखा है। निचले हाथों में से एक में खप्पर है जिसमें वह रक्त एकत्र करती हैं जो ऊपरी हाथ में राक्षस के विच्छेदित सिर से टपकता है। दूसरा निचला हाथ वरद मुद्रा में दिखाया गया है। इसके साथ ही माता गले में एक मुंड माला पहनी हुई हैं जो मानव खोपड़ी से बना है। निचले शरीर में मां काली घनीभूत राक्षस हाथ से बना कमरबंद पहनती है। कुछ तस्वीरों व मूर्तियों में काली मां के ऊपरी हाथों में से एक को वरदा मुद्रा में दिखाया गया है और निचले हाथों में से एक में त्रिशूल है।
दिन आपको प्रातः स्नान कर शुद्ध हो लें इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर मां की प्रतिमा व तस्वीर को लाल रंग के कपड़े की चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद माता को लाल रंग की रोली चढ़ाएं। पूजा में आप लाल रंग के पुष्पों का उपयोग करें। इसके बाद आप काली चालीसा का पाठ कर माता की आरती करें। यह सामान्य पूजा विधि है। राशि व कुंडली के हिसाब से अधिक व प्रभावी लाभ के लिए आप ज्योतिषीय परामर्श ले के पूजा करें। इससे आपको अधिक लाभ होगा। माता की कृपा होगी। अभी परामर्श लेने के लिए बात करें देश के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों से।