भारतीय संस्कृति में चरण स्पर्श और नमस्कार(namaste) समेत 5 तरह के अभिवादन बताए गए हैं। लेकिन सबसे लोकप्रिय अभिवादन नमस्कार ही माना गया है। जिसे प्राचीन काल से लोग करते चले आ रहे हैं लेकिन आज के समय में भारतीयों ने पाश्चत्य संस्कृति को अपना लिया है। इस वजह से लोग अब अभिवादन के रूप में हैंडशेक या गले लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में बनी परंपराओं के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा होता है। फिर चाहे वो चरण स्पर्श करना हो या नमस्ते करना।
नमस्कार केवल एक कल्चर नहीं बल्कि यह आपको संक्रमण से भी दूर रखता है। जिसकी वजह से दूसरे इंसान की बीमारी आप तक नहीं पहुंच पाती है। ये परंपरा बीमारियों को दूर रखने मे बहुत कारगर हैं। इसलिए आज की परिस्थिति को देखते हुए दुनियाभर में लोगों ने नमस्ते को अभिवादन के तौर पर अपना लिया है। आज इस लेख में हम आपको नमस्कार का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व बताएंगे।
नमस्कार का मतलब होता है दूसरों के समक्ष नम्र होना और अपने अहंकार को झुककर समाप्त करना। नमस्कार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नमस से हुई है जिसका अर्थ होता है एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति आभार व्यक्त करना। नमस्ते शब्द नम: और असते से मिलकर बना है। नम: का अर्थ होता है झुकना और असते का अर्थ होता है मेरा अभिमान से भरा हुआ सिर आपके आगे झुक गया है। इसलिए जब भी हम किसी से मिलते हैं या विदाई के वक्त नमस्ते (namaste) ही करते हैं।
यदि आप किसी से नमस्ते करते हैं तो सबसे पहले अपने दोनों हाथों को समान स्थिति में रखते हैं फिर हाथों को हृदय से सटाते हैं और आंखें बंद करते हैं। फिर अपना सिर झुकाते हैं। यह भाव दर्शाता है कि हम आपका सम्मान हृदय से करते हैं।
जब आप भगवान के सामने नमस्कार करें तो दोनों हाथों को जोड़ते हुए माथे तक लेकर जाएं। उसके बाद आंखें बंद करके भगवान की प्रार्थना करें। यह तरीका आपको परमात्मा के और करीब लेकर जाता है।
हाथ जोड़कर सत्कार करने के पीछे कई वैज्ञानिक, धार्मिक और आध्यात्मिक फायदे छिपे हैं।
हाथ जोड़ने से शरीर में रक्त का संचार बढ़ने लगता है।
नमस्ते करने से मानव शरीर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जब आप किसी से नमस्ते करते हैं तो आपको आंतरिक प्रसन्नता का अहसास होता है।
जब आप हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं तो आपकी हथेलियों को दबाव से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है।
नमस्ते करने से मन हमेशा शांत रहता है।
शास्त्रों के मुताबिक यदि आप बुजुर्गों को नमस्ते करते हैं तो दैवीय कृपा प्राप्त होती है।
नमस्ते करने से आपका दिल मजबूत रहता है और अंदर का डर भी खत्म हो जाता है।
नमस्ते (namaste) करते वक्त जब उंगलियों एक दूसरे से मिलती हैं तो दबाव पड़ता है। जिसकी वजह आपकी ज्ञानेन्द्रियां सक्रिय हो जाती हैं।
कहा जाता है कि जब आपको गुस्सा आए तो आप तुरंत नमस्कार की स्थिति में बैठ जाएं। इससे आपका गुस्सा शांत हो जाता है और आप सामने वाले के प्रति विनम्रता प्रकट करने लगते हैं।
आध्यात्मिक तौर पर यदि हम सामने वाले व्यक्ति की आत्मा को नमस्कार कर रहे हैं, यह हममें कृतज्ञता और समर्पण की भावना जागृत करता है। यह आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है।