Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी 2025 Date, और काली चौदस की खास परंपराएँ

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Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी 2025 Date, और काली चौदस की खास परंपराएँ

Narak Chaturdashi 2025: नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, काली चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जानते हैं। यह त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस प्रकार नरक चतुर्दशी दीपावली से एक दिन पहले आता है। इससे कुछ विशेष मान्यताएं और परम्पराएं जुड़ी हुई हैं। नरक चतुर्दशी पर हनुमान जी, यम और भगवान कृष्ण की पूजा-उपासना करना सबसे अधिक शुभ माना जाता है। छोटी दिवाली (Choti Diwali) का महत्व केवल धार्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत गहरा है। इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाएँ याद दिलाती हैं कि सच्चाई और सद्गुण हमेशा असत्य और अधर्म पर विजय प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि छोटी दिवाली का पर्व लोगों के भीतर उल्लास और आस्था भर देता है। तो आइए जानते हैं साल 2025 में नरक चतुर्दशी कब है और इस दिन विधि-विधान से कैसे पूजा करनी चाहिए।

नरक चतुर्दशी 2025 Date: जानें छोटी दिवाली का समय और तिथि  

नरक चतुर्दशी 2025 (Narak Chaturdashi) इस साल सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 19 अक्टूबर दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर होगी और इसका समापन 20 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर होगा। इसी अवधि में इस पर्व के विशेष स्नान और पूजा विधि का महत्व माना गया है। इस दिन अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व होता है। अभ्यंग स्नान के लिए शुभ समय सुबह 05:12 से सुबह 06:25 बजे तक है।

छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी का महत्व 

नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली का सबसे बड़ा महत्व इसकी पौराणिक कथा से जुड़ा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा और देवी काली की सहायता से राक्षस नरकासुर का वध किया था। यह घटना केवल एक दैत्य के अंत की नहीं, बल्कि असत्य, अन्याय और अधर्म पर सत्य, धर्म और अच्छाई की विजय का प्रतीक मानी जाती है।

कहानी के अनुसार, नरकासुर ने 16,000 स्त्रियों को बंदी बनाकर रखा था। भगवान कृष्ण ने जब उसका वध किया तो इन सभी महिलाओं को मुक्त कराया। इस घटना ने नरक चतुर्दशी को मुक्ति, प्रकाश और नई शुरुआत का संदेश देने वाला पर्व बना दिया।

दक्षिण भारत की कई परंपराओं में इस दिन का संबंध देवी काली से जोड़ा जाता है। यहाँ इसे काली चौदस (Kali Chaudas) कहा जाता है और इसे अंधकार पर देवी काली की विजय के रूप में मनाया जाता है। चाहे इसे भगवान कृष्ण के रूप में देखा जाए या देवी काली के, यह पर्व हर रूप में हमें यही सिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः उसका अंत निश्चित है।

नरक चतुर्दशी पर करें अभ्यंग स्नान 

नरक चतुर्दशी की सबसे प्रमुख परंपरा अभ्यंग स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पहले तेल स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। लोग तिल के तेल, आटा, हल्दी, फूल और औषधीय जड़ी-बूटियों से बने एक विशेष उबटन का प्रयोग करते हैं। इसे शरीर पर लगाने से न केवल बाहरी शुद्धि होती है बल्कि यह नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य को भी दूर करने वाला माना जाता है। इस दिन काजल लगाना भी बुरी नज़र से बचाने का प्रतीक माना जाता है।

सकारात्मकता के लिए दीपक जलाएं 

इस अवसर पर घरों की सफाई की जाती है और पूजा के लिए वातावरण को शुद्ध किया जाता है। शाम होते ही घरों में दीपक जलाए जाते हैं ताकि अंधकार और नकारात्मकता दूर होकर सुख-समृद्धि का वास हो। पूजा विधि में तेल, चंदन, पुष्प और मिठाइयों का उपयोग किया जाता है। कई परिवार इस दिन विशेष रूप से भगवान हनुमान की पूजा करते हैं और उन्हें नारियल, तिल, गुड़ और चिवड़ा अर्पित करते हैं।

पितरों के प्रति सम्मान दिखाने का अवसर 

दीयों का महत्व भी इस दिन विशेष होता है। सुबह और शाम दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और समृद्धि का द्वार खुलता है। बंगाल में इस परंपरा का एक अलग रूप देखा जाता है, जहाँ 14 दीपक जलाकर पितरों का सम्मान किया जाता है।

काली चौदस पर काली पूजा का दिन 

 इसके अलावा, बंगाल, असम और ओडिशा में इस दिन का संबंध काली पूजा से भी है। यहाँ भक्त देवी काली की उपासना करते हैं और उन्हें लाल गुड़हल के फूलों की मालाएँ, नींबू की माला और विशेष नैवेद्य अर्पित करते हैं। कई भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और पूजा सम्पन्न होने के बाद ही व्रत का समापन करते हैं।

इन सभी परंपराओं का उद्देश्य जीवन से नकारात्मकता को हटाकर, प्रकाश, शुद्धि और समृद्धि का स्वागत करना है।

नारक चतुर्दशी पर क्या नहीं करना चाहिए?

नारक चतुर्दशी को शुभ और पवित्र बनाने के लिए कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक माना जाता है। 

  • इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और यमराज की पूजा का महत्व है, इसलिए किसी भी तरह का हिंसक कार्य या जीव हत्या करना वर्जित माना गया है। 

  • परंपरा के अनुसार, यमराज के सम्मान में इस दिन घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाया जाता है। इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि घर की यह दिशा गंदी या अव्यवस्थित न हो।

  • इस दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करने की परंपरा है, लेकिन एक खास बात यह भी कही गई है कि नारक चतुर्दशी पर तेल का दान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज़ हो जाती हैं।

  • भोजन संबंधी आचारों में भी इस दिन सावधानी बरतनी चाहिए। नरक चतुर्दशी पर मांसाहारी भोजन का सेवन पूरी तरह वर्जित है। 

  • इसी तरह देर तक सोना भी अशुभ माना गया है। मान्यता है कि देर तक सोने से लक्ष्मी कृपा नहीं मिलती और घर में दरिद्रता का वास हो सकता है।

  • इस दिन का संदेश यही है पवित्रता बनाए रखें, अनुशासन में रहें और अपने कर्मों से देवी-देवताओं की कृपा पाने का प्रयास करें। 

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