किसी भी जातक की कुंडली में अनेक शुभाशुभ योग होते हैं। इन्हीं योगों के आधार पर जातक जीवन में अपना मुकाम हासिल कर पाता है। अशुभ योगों के प्रभाव से राजपरिवार में जन्मे जातक को भी दर-दर की ठोकर खानी पड़ सकती हैं और रंक सा जीवन जीना पड़ सकता है। वहीं शुभ योगों के प्रभाव से भिक्षा मांग कर जीवन यापन करने वाले का भाग्य भी बदलने में वक्त नहीं लगता। हालांकि जन्म के समय जातक की कुंडली में जो योग ग्रह बना रहे होते हैं उनका प्रभाव दीर्घकालीन होता है लेकिन क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का नियम है और समय के साथ हर चीज गतिमान है। इसी कारण ग्रहों के गोचर से समयानुसार शुभाशुभ दौर जातक के जीवन में आते रहते हैं। ऐसा ही एक दौर तब आता है जब गोचर करते-करते ग्रह जातक की कुंडली में शुभ एवं पापकर्तरि योग का निर्माण करते हैं। आइये जानते हैं कैंची की तरह काम करने वाले इस शुभ और पाप कर्तरियोग के बारे में।
जब जातक की कुंडली के किसी भी भाव के दोनों और शुभाशुभ ग्रह गोचररत हों तो ऐसी अवस्था में शुभ एवं पाप कर्तरि योग का निर्माण होता है। यदि किसी भी भाव के दोनों तरफ शुभ ग्रह हों तो यह शुभ कर्तरि योग कहलायेगा और दोनों और पाप अथवा क्रूर ग्रह हों तो जातक की कुंडली में पाप कर्तरि योग बनता है। अब आपके जहन में यह सवाल भी उठ सकता है कि आखिर शुभ और पाप या क्रूर ग्रह कौनसे माने जाते हैं। तो बुध, चंद्रमा, बृहस्पति एवं शुक्र को ज्योतिषशास्त्र में शुभ ग्रह माना जाता है तो सूर्य, मंगल, शनि व राहू को अशुभ ग्रह माना जाता है।
शुभ कर्तरि संजातस्तेजोवित्तबलाधिक:
पापकर्तरिके पापी भिक्षाशी मलिनो भवेत
अर्थात शुभ कर्तरि योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति तेजस्तवी, धनी एवं बल से परिपूर्ण होता है वहीं पाप कर्तरि योग में जन्म लेने वाला मनुष्य भिक्षा मांगकर गंदगी में अपना जीवन यापन करने पर विवश होता है। इस श्लोक से आप शुभ एवं पाप कर्तरि योग के प्रभाव को तो समझ ही गये होंगे लेकिन यदि शुभ कर्तरि योग में भी शुभ ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो इस योग का शुभ प्रभाव नहीं मिलता। इसी प्रकार यदि पाप कर्तरि योग के दौरान शुभ ग्रह पूरे बल से अशुभ ग्रहों को देख रहे हों तो अशुभ फल में भी कुछ कमी आ जाती है। दोनों ही स्थितियों में जिस भी भाव में इन योगों का निर्माण हो रहा हो उस भाव के अनुसार सकारात्मक व नकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इतना ही नहीं जो शुभाशुभ ग्रह यह योग बना रहे हों आपकी राशि के अनुसार उनके कारक तत्वों पर भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यदि शुक्र ग्रह जो कि लाभ व सुख-समृद्धि के कारक हैं इस योग से प्रभावित हैं तो आपके लिये लाभ के अवसर बढ़ेंगें और सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी। लेकिन वहीं पाप कर्तरि योग में जो भी पापी या क्रूर ग्रह इसे बना रहे हों उनके कारक तत्वों में वृद्धि हो जायेगी यानि हानि के संकेत बढ़ जायेंगें।