कुंडली में ग्रहों की स्थिति व स्थान के महत्व को हम इसी बात से समझ सकते हैं कि इनका हमारे जीवन पर सीधा असर पड़ता है। यदि आप ग्रहों व उनकी स्थिति का हमारे जीवन पर कैसा व किस तरह का प्रभाव पड़ता है इसके बारे में जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख अंत तक पढ़ना चाहिए। इस लेख में हम ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति व योग के बारे में बात करेंगे। जिससे आपको आपके कई प्रश्नों का उत्तर यहां मिल जाएगा। तो आइये जानते हैं कि ज्योतिष में ग्रहों का क्या महत्व है? कुंडली में ग्रहों की स्थिति के चलते कैसी परिस्थितियां खड़ी हो सकती हैं?
बात अगर ज्योतिष में ग्रह की महत्ता की करें तो हम आपको बता दें कि ग्रह के बिना ज्योतिष की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ज्योतिषियों की माने तो ग्रहों की स्थिति व दशा के आधार पर ही ज्योतिषीय गणना की जाती है। ज्योतिषाचार्य का कहना है कि वैदिक ज्योतिष में ग्रहों को विशेष स्थान प्राप्त है। राशिचक्र के बारह राशि के स्वामी ग्रह होते हैं। जो अपने व्यवहार व सामर्थ्य के अनुसार जातक को अच्छे व बुरे परिणाम देते हैं। नौ ग्रह वैदिक ज्योतिष में माने गए। इन्हीं के आधार पर ज्योतिषशास्त्र खड़ा है। जन्म कुंडली में ज्योतिषाचार्य ग्रहों की स्थिति देखकर ही किसी जातक के भविष्य की गणना करते हैं। इस गणना को करने के लिए वे गणित की सहायता लेते हैं। क्योंकि ज्योतिष पूरी तरह से गणित पर आधारित है। ग्रहों की स्थिति व स्थान इसी से जाना जाता है। कुल मिलाकर ग्रह की स्थिति व स्थान की गणना किए बिना ज्योतिषीय परिणाम नहीं निकाला जा सकता। यदि आप भी अपनी कुंडली का सटीक विश्लेषण करवाकर अपने करियर या जीवन से जुड़े किसी भी विषय पर जानकारी चाहते हैं तो आप देश के जाने माने ज्योतिषाचार्य से परामर्श कर सकते हैं। अभी बात करने के लिए यहां क्लिक करें।
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की स्थिति के कई महत्व व परिणाम बताएं गए हैं। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रह सही स्थान पर हो तो जातक के जीवन में कोई भी समस्या नहीं आती है। लेकिन किसी कारण आ भी गई तो उससे उबरने में अधिक परेशानी नहीं होती है। ग्रह के प्रभाव समस्या को कम करने का कार्य करते हैं। इससे आप आसानी से हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम बनते हैं। इसके अलावा कुंडली में ऐसे कई ग्रह संयोग बनते हैं। जिनके बनने से जीवन का कायाकल्प हो जाता है। जैसे बुध आदित्ययोग। इस योग का निर्माण बुध व सूर्य ग्रह के एक साथ आने पर होता है। परंतु ज्योतिष कहते हैं कि यह योग काफी आम है। 10 में से 6 के कुंडली में यह योग होता है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि यह योग कुंडली के किस भाव में बना है? इसके साथ ही ग्रह की स्थिति क्या है? वे कितने प्रभावी हैं? ज्योतिषियों का कहना है कि ग्रह कितने अंश पर विराजमान है यह भी उसके परिणाम को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए यदि आपका बुध कर्म स्थान में 18 अंश पर विराजमान है और सूर्य उसी स्थान में 29 अंश पर विराजमान है तो ऐसे में इस योग का आपको कुछ खास परिणाम नहीं मिलने वाला है। क्योंकि यहां एक ग्रह अधिक प्रभावी है। जो दूसरे को दबा रहा है। परंतु दोनों का प्रभाव समान हो तो यह आपके लिए बहुत ही लाभदायक योग बन जाएगा।
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जैसे ग्रह संयोग कुंडली में शुभ योग का निर्माण करते हैं वैसे ही कुछ ग्रहों के संयोग से दोष का भी निर्माण होता है। जो हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। ग्रहों के संयोग से कुंडली में कई तरह के दोष बन जाते हैं। जैसे शनि दोष, मंगल दोष, कालसर्प दोष, प्रेत दोष आदि। इन दोषों का हमारे जीवन व परिवार पर व्यापक असर पड़ता है। यहां तक की अच्छा भला व्यापार व करियर तबाह हो जाता है। पारिवारिक जीवन में कलह आ जाती है। विवाह नहीं होता है। ऐसे कई समस्याएं सामने आती हैं। इसलिए समय रहते इनका निवारण करना आवश्यक हो जाता है। इसी के चलते कुंडली का आकलन करते समय ज्योतिषाचार्य ग्रह की स्थिति व स्थान देखते हैं। यदि आपके पारिवारिक या व्यापारिक संबंध में समस्या है तो हो सकता है आपके कुंडली में कोई अशुभ योग हो, इसका समय रहते निवारण करना आपके लिए अच्छा रहेगा, अन्यथा आपको इससे हानि का सामना करना पड़ सकता है। अभी कुंडली का आकलन करवाकर निवारण जानने के लिए यहां क्लिक करें।