भारतीय परंपरा के अंतर्गत योगासन आता है और योग के आठ अंगों में से चौथा अंग प्राणायाम(pranayam) है। प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है प्राण और आयाम। प्राण का मतलब जीवात्मा से है और आयाम का मतलब रोकना या विस्तार करना। प्राणायाम श्वास विश्वास की एक तकनीक है जिसके द्वारा हम अपने प्राणों का विस्तार करते हैं। प्राणायाम का उद्देश्य शरीर में व्याप्त प्राण शक्ति को उत्प्रेरित, संचारित, नियंत्रित और संतुलित करना है।
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में मानसिक तनाव और खांसी, जुकाम, वायरल, मांसपेशियों में दर्द आदि की समसया बनी रहती है। ऐसे में योगासान(yoga) और प्राणायाम इन सबसे निजात दिलाने के सबसे अच्छा उपाय है। साथ ही यह आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है ताकि आप बीमारियों से लड़ सकें। इन दिनों दुनियाभर में जो महामारी फैली है उससे निपटने के लिए अभी तक कोई कारगर इलाज सामने नहीं आ पाया है। वहीं इस महामारी से बचने के लिए डॉक्टर्स योगासन और प्राणायाम करने की सलाह दे रहे हैं। आप घर पर रहकर योगासन और प्राणायाम दोनों ही कर सकते हैं। जहां योगासन आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ रखेगा वहीं प्राणायाम आपको मानिसक रूप से।
आज हम आपको कुछ ऐसे 5 प्राणायाम के बारे में बताने जा रहे हैं जिनको करने से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। जैसे - भस्त्रिका, कपालभाती, अनुलोम विलोम, भ्रामरी, उज्जायी आदि। आपको बता दें कि किसी भी प्राणायाम को करने के लिए आप सुखासन, पद्मासन और सिद्धासन में बैठ सकते हैं।
प्राणायाम करते वक्त बाहरी आवाजों को सुनकर अपने मन को ना भटकाएं।
प्राणायाम के लिए सुबह का समय सबसे उचित माना जाता है।
प्राणायाम करते वक्त सुखासन, पद्मासन और सिद्धासन में बैठना अच्छा होता है।
प्राणायाम करते वक्त चेहरे पर मुस्कान बनाकर रखें।
प्राणायाम करने के लिए स्वच्छ और शुद्ध वातावरण होना जरूरी है।
पूर्व दिशा की ओर मुख करके प्राणायाम करने लाभदायी है।
खाली पेट और सूर्योदय से पहले प्रणायाम करना चाहिए।
भास्त्रिका का मतलब होता है धौंकनी, क्योंकि इस प्राणायाम में लगातार तेजी से बलपूर्वक सांस ली जाती है और छोड़ी जाती है। इसको करने के लिए सबसे पहले पद्मासन में बैठ जाएं। फिर पूरे शरीर को शिथिल कर लें। अब दाईं नाक को बंद करें और धीरे-धीरे बाईं नाक से श्वास लें और बलपूर्वक दाईं नाक से सांस छोड़े। दूसरी बार बाईं नाक को बंद करें और दाईं नाक से तेजी से श्वास लें और बाईं नाक से तेजी से श्वास छोड़ें। इस तरह आप तेजी के साथ कम से कम 10 बार श्वास लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया को 3 से 5 मिनट तक करें।
इस प्राणायाम को करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
पाचन शक्ति बढ़ती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
फेफड़े मजबूत हो जाते हैं और सांस से संबंधित बीमारियों से भी निजात मिल जाती है।
भास्त्रिका को नियमित करने से आपके शरीर में कफ, पित्त और वात संतुलित रहते हैं।
इस योग को करने से गले की सूजन से राहत मिलती है।
नोट - इस प्राणायाम को हाईबीपी, हृदय संबंधी, दमा, अल्सर और मिर्गी जैसे मरीजों को नहीं करना चाहिए।
कपालभाति प्राणायाम करने से आपके मुख पर सदैव तेज या चमक बनी रहती है। यह प्राणायाम के हठ योग की तरह है। नियमित इस योग करने से कुंडलिनी जागृत हो जाती है। इस प्राणायाम में बलपूर्वक तेजी से श्वांस को छोड़ना पड़ता है। इसको करने के लिए सबसे पहले सिद्धासन में बैठ जाएं। अब आंखें बंद करें और पेट को अंदर करते हुए धीरे -धीरे श्वास अंदर लें और फिर झटके से नाक के साथ श्वास बाहर छोड़ें। इस प्रक्रिया कम से कम 10 बार दोहराएं। इस आसन को करने के बाद ध्यान की मुद्रा में बैठ जाएं।
कपालभाति करने से माथे और चेहरे पर तेज आ जाता है।
इस प्राणायाम को करने से फेफडों और थायराइड संबंधी विकार भी दूर हो जाते हैं।
इसको करने से मेटाबॉलिज्म और इम्युनिटी सिस्टम मजबूत हो जाता है।
कपालभाति से वात, पित्त और कफ संतुलित रहता है।
यह प्राणायाम का सबसे महत्वपूर्ण आसन माना जाता है। इस प्राणायाम में दाईं नाक से श्वांस लेना होता है और बाईं नाक से श्वास निकालनी होती है। इसे नाड़ी शोधक प्राणायाम भी कहते हैं। इसको करने के लिए सबसे पहले सुखासन में बैठ जाएं। फिर अपने दाएं हाथ के अंगूठे से दाईं नाक को बंद करें और बाईं नाक से श्वास अंदर की ओर लें। अब बाईं हाथ के अंगूठे से बाईं नाक को बंद कर दें। उसके बाद दाएं नाक के अंगूठे को हटाएं और दाईं नाक से श्वास छोड़ें। फिर दूसरी बार अपने बाएं हाथ के अंगूठे से बाईं नाक को बंद करें और दाईं नाक से श्वास अंदर की ओर लें। अब दाएं हाथ के अंगूठे से दाईं नाक को बंद कर दें। उसके बाद बाईं नाक के अंगूठे को हटाएं और बाईं नाक से श्वास छोड़ें। इस प्रक्रिया को कम से कम 10 से 15 मिनट तक दोहराएं। इस आसन को करने के बाद ध्यान की मुद्रा में बैठ जाएं।
इस प्राणायाम को करने से अवसाद, तनाव और अनिद्रा को कम होता है।
इसको करने से आंखों की रोशनी और रक्त का संचार अच्छे से होने लगता है।
अनुलोम विलोम को करने से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
यह आसन मोटापा कम करने और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं को दूर करता है।
इस योग को करने से वात, पित्त और कफ संतुलित रहता है।
यह प्राणायाम क्रोध, चिंता और निराश से मुक्ति दिलाता है। इसको करने से माइग्रेन और साइनोसाइटिस जैसी बीमारियों से जल्द आराम मिल जाती है।
इस प्रणायाम को करने के लिए सबसे सुखानस में बैठ जाएं। फिर आंखें बंद कर लें। अपने शरीर को शिथिल छोड़ दें। इसके बाद दोनों हाथों की तर्जनी उंगली से कानों को बंद कर दें। अब लंबी गहरी श्वास लें और श्वास छोड़ते हुए धीरे से उपास्थि( कान की हड्डी) को दबाएं। आप उपास्थि को दबाकर रखें और मुंह बंद करके नीचे सुर से ऊँ की आवाज निकालें। दोबारा गहरी श्वास लें और इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं।
इस आसन को करने से तनाव, क्रोध और अवसाद से निजात मिलती है।
भ्रामरी माइग्रेन और साइनोसाइटिस मरीजों के लिए रामबाण उपाय है।
यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
इस योग करने से मन शांत रहता है और एकाग्रता आती है।
यह प्राणायाम की सबसे सरल प्रक्रिया है। जिसे मेडिटेशन के रूप में भी जाना जाता है। इस प्राणायाम में ओमकार का जाप किया जाता है। इसको करने से तनाव, अवसाद, घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है। इसको करने के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके सुखासन में बैठ जाएं। फिर आंखें बंद करें और शरीर को शिथिल छोड़ दें। दोनों हाथों की तर्जनी को दोनों हाथों के अंगूठे से जोड़ लें। अब सामान्य गति से श्वास लें और ऊँ मंत्रोच्चार के साथ श्वास को बाहर छोड़ें। इस प्रक्रिया में सामान्य सांस लेनी होती है। इस प्रक्रिया में 'ओ' को जितनी देर बोलते हैं उससे तीन गुना देर तक 'म' को बोलें। इस प्रक्रिया को 10 बार करें।
इसको करने से शरीर में इम्युनिटी बढ़ने के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।
इस प्राणायाम को करने से तनाव, चिंता, अवसाद और अनिद्रा से राहत मिल जाती है।
इस योग को करने से हाईबीपी, हृदय रोग और माइग्रेन जैसी बीमारियां खत्म हो जाती हैं।
नोट - यदि आपको डायबिटीज, हाईबीपी या कमर दर्द, गर्दन दर्द या हृदय संबंधी कोई भी बीमारी है तो आप इन आसनों को करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लें। ताकि भविष्य में आपको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़े।