वैसे तो भगवान को सर्वशक्तिमान माना जाता है। कहा जाता है कि उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। लेकिन कहा यह भी जाता है कि भक्ति में वो ताकत होती है कि भगवान को भी अपने भक्त के समक्ष झुकना पड़ता है। कुछ ऐसा ही वाक्या है भगवान श्री राम और हनुमान का। आइये जानते हैं क्या है किस्सा?
हुआ यूं कि अश्वमेध यज्ञ संपन्न होने पर। देवता, मुनि, गंधर्व, यक्ष, ऋषि सभी आयोजन में पधारे हुए थे। वहीं पर समस्त राज्यों से राजा भी पधार रहे थे। सभी राजा ऋषि मुनियों का सत्कार कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। क्या हुआ कि एक राजा ने बाकि ऋषि मुनियों को तो प्रणाम कर दिया लेकिन भूलवश गुरु विश्वामित्र की उनसे अनदेखी हो गई। अब वहीं पर नारद मुनि भी थे उन्हें तो चिंगारे दिखाने में बड़ा आनंद आता है। वे जा पंहुचे विश्वामित्र के पास और उन्हें सुलगा दिया कि फलां राजन ने सबको प्रणाम किया सिर्फ आपको छोड़कर यह तो आपका सरासर अपमान है, जो बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये। बस इससे आगे तो उन्हें कुछ कहने का मौका ही नहीं मिला विश्वामित्र तो वैसे भी स्वभाव से क्रोधित ही थे आग बबूला होकर श्री राम से कहा कि तुम्हारे दरबार में तुम्हारे द्वारा कराये इस आयोजन में तुम्हारे गुरु का अपमान हुआ है मुझे सूर्यास्त तक उस राजन् के प्राण चाहिये जिसने मेरा अपमान किया। श्री राम विश्वामित्र की बात को तो टाल ही नहीं सकते थे। उधर जब उस राजा तक यह खबर पंहुची तो वह बड़ा भयभीत हुआ लेकिन उससे यह भूलवश हुआ था अब उसने रामभक्त हनुमान की शरण लेना ही उचित समझा। हनुमान ने शरणागत की रक्षा का वचन दे दिया और पूछा कि कौन तुम्हारे प्राण लेना चाहता है? बोला, स्वयं प्रभु श्री राम। इस पर हनुमान अजीब से धर्मसंकट में फंस गये लेकिन हनुमान बड़े ही चतुर बड़े बुद्धिमान माने जाते हैं। उन्होंने राजन को सुझाव दिया कि वह अभी से प्रभु श्री राम के नाम का जाप करना शुरु कर दे।
उसने भी वैसा किया सरयू किनारे पंहुचकर प्रभु श्री राम के नाम का जप करने लगा पास ही हनुमान भी सूक्ष्म रूप में प्रभु नाम का स्मरण करने लगे। जब श्री राम उस राजन् को मृत्युदंड देने के लिये आये तो उन्होंने देखा कि वह तो उन्हीं के नाम का जाप कर रहा है अपने ही भक्त की वह कैसे हत्या कर सकते हैं। लेकिन गुरु को दिया वचन भी था। अब प्रभु श्री राम बाण चलायें लेकिन उनका कोई असर न हो। भक्ति की शक्ति के आगे श्री राम की शक्ति क्षीण पड़ गई और उन्हें मूर्च्छा आ गई। अब यह सारा किया धरा तो नारद का था, नारद भी अपने कृत्य पर पच्छताए और विश्वामित्र को पूरी बात बताई, फिर महर्षि वशिष्ठ ने भी विश्वामित्र को शांत करते हुए श्री राम को वचन मुक्त कर उन्हें संकट से उबारने की कही। इस प्रकार विश्वामित्र ने श्री राम को वचन से मुक्त कर दिया और सबने भक्ति की शक्ति को देखा। इसलिये कहा जाता है कि भक्त भगवान से भी बड़ा होता है। श्री राम से भी ज्यादा उनके नाम की महिमा है।
कुछ पौराणिक कथाओं में यह प्रसंग ययाति के लिये भी आता है जो श्री राम से अपने प्राणों की रक्षा के लिये सीधे हनुमान की शरण न लेकर माता अंजनी की शरण जाते हैं और माता अंजनी के कहने पर हनुमान उनकी रक्षा का वचन देते हैं। तब भगवान राम व हनुमान में युद्ध होता है हालांकि हनुमान श्री राम पर कोई वार नहीं करते लेकिन श्री राम के ब्रह्मास्त्र तक का असर उन पर नहीं होता। इस तरह भक्ति की शक्ति की महिमा का गुणगान इस कथा में थोड़े अलग तरह से आया है।
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