राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा: मान्यता है कि प्रभु श्री राम का नाम लेकर पापियों का भी हृद्य परिवर्तित हुआ है। श्री राम के नाम की महिमा अपरंपार है। श्री राम शरणागत की रक्षा करते हैं। वैसे तो दु:खों से छुटकारा पाने और अपने जीवन को सफल बनाने के लिये राम का नाम ही काफी है लेकिन ऋषि मुनियों ने हजारों साल तपस्या कर समस्त देवी-देवताओं के कुछ विशेष मंत्र व स्त्रोत जन कल्याण के लिये उच्चरित किये जो गुरु-शिष्य परंपरानुसार पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित होते रहे। आज भी ये मंत्र और स्त्रोत उतने ही कारगर हैं। इन्हीं में से एक है प्रभु श्री राम का रक्षा स्त्रोत। मान्यता है कि इस स्त्रोत में प्रभु श्री राम की इतनी कृपा होती है कि यदि विधिवत इसका पाठ किया जाये तो इससे बहुत ही चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होते हैं। कुछ विद्वान तो यहां तक मानते हैं कि मुर्दे में भी जान डालने में श्री राम रक्षा स्त्रोत कारगर है। तो आइये जानते हैं भगवान श्री राम के रक्षा स्त्रोत के बारे में।
श्री राम रक्षा स्तोत्रम् बुध कौशिक ऋषि द्वारा भगवान श्री राम को प्रसन्न करने के लिये उनकी स्तुति में लिखे गये मंत्रों का समुच्च्य है जिन्हें उन्होंने अनुष्टुप छंद में लिखा है। इस स्तोत्रम में माता सीता व भगवान श्री रामचंद्र देवता हैं तो सीता शक्ति भी हैं। रामभक्त बजरंग बलि वीर हनुमान इसमें कीलक हैं भगवान श्री राम प्रसन्न हों इसलिये इस स्तोत्र के जप में विनियोग भी किया जाता है।
।। श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ।।
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।।
।। अथ ध्यानम् ।।
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।।
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ।।
ध्यान करें
जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं, उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें ।
।। इति ध्यानम् ।।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ।1।
श्री रघुनाथ जी अर्थात भगवान श्री राम का चरित्र को सैंकड़ों करोड़ में विस्तारित किया जा सकता है। उनकी स्तुति में गाये गये इस स्तोत्रम का एक एक अक्षर महापातकों का नाश करने वाला है यानि समस्त पापों का हरण करने वाला है।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ।2।
नीले कमल से श्याम रंग वाले, कमल के समान नेत्रों वाले, माता जानकी यानि सीता और लक्ष्मण के साथ जिनकी जटाएं मुकुट के समान उनकी शोभा बढ़ा रही हैं ऐसे देव प्रभु श्री राम का ध्यान करें।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।।2।।
जिन्होंने हाथों में धनुष बाण, तुणीर खड्ग धारण कर रखें हैं, जो राक्षसों का संहार करते हैं, जो सर्वव्यापक हैं अजन्में हैं और जो जगत के कल्याण के लिये, जगत को अपनी लीलाएं दिखाने के लिये अवतरित होते हैं उन प्रभु श्री राम का स्मरण करें।
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ।।4।।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ।।5।।
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ।।6।।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ।।7।।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ।।8।।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ।।9।।
सभी कामों को सिद्ध करने और पापों को नष्ट करने वाले श्री राम रक्षा स्तोत्रम् का मैं पाठ करता हूं। प्रभु श्री राम मेरे शीष और ललाट यानि सिर और मस्तक की रक्षा करें।
कौशल्या नंदन, विश्वामित्र प्रिय, यज्ञों की रक्षा करने वाले सुमित्रा के प्यारे भगवान श्री राम मेरे नेत्र, कान, घ्राण और मुख की रक्षा करें।
जो विधानिधी हैं, भरत जिनकी वंदना करते हैं, वो दिव्यायुध महादेव के धनुष को तोड़ने का सामर्थ्य रखने वाले प्रभु श्री राम मेरी जिह्वा, मेरे कंठ, कंधों व भुजाओं की रक्षा करें।
सिया पति श्री राम, जिन्होंने जमदग्नि पुत्र भगवान श्री परशुराम को भी जीत लिया था जिन्होंनें खर नामक राक्षस का वध किया जिन्होंने जांबवान को आश्रय दिया वे भगवान श्री राम मेरे हाथों, हृद्य, मध्य भाग और नाभि की रक्षा करें।
वानर राज सुग्रीव के स्वामी, श्री हनुमान के प्रभु और समस्त राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ मेरी कमर, हड्डियों व रानों की रक्षा करें।
रामसेतु का निर्माण करवाने वाले, दश सिर वाले रावण का वध करने वाले, शरणागत विभीषण को ऐश्वर्य देने वाले भगवान श्री राम मेरे जानुओं, मेरी जंघाओं, चरणों सहित संपूर्ण शरीर की रक्षा करें।
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।।10।।
जो भी रामभक्त सच्ची श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ इस राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता है उसके सभी कार्य शुभ होते हैं। प्रभु श्री राम की कृपा से वह दीर्घायु, सुखी, संतानवान, विजयी और विनयशील हो रहता है।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ।।11।।
जो दुष्ट प्राणी तीनों लोकों में छद्म वेश धारण कर विचरण करते रहते हैं और मनुष्य को हानि पंहुचाने की ताक में रहते हैं वे श्री राम के नाम का जाप करने वाले के निकट आना तो दूर उन्हें देख तक नहीं पाते।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।।12।।
जो प्रभु श्री राम के राम, रामभद्र, रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करता है वह पाप कर्मों से दूर रहता है और प्रभु उसे जीवन पर्यंत भौतिक सुख के साथ-साथ मरणोपरांत मोक्ष प्रदान करते हैं।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ।।13।।
संसार पर विजय प्राप्त करने वाले इस श्री राम रक्षा स्तोत्रम को जो भी कंठस्थ कर लेता है, उसे समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ।।14।।
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं ।
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ।।15।।
भगवान शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया।
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ।।16।।
जिस प्रकार कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर कोई इच्छा करने मात्र से सभी आपदाएं दूर हो जाती हैं। उसी प्रकार इस राम रक्षा स्तोत्र से प्रभु श्री राम भी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ।।17।।
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।।18।।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ।।19।।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ।।20।।
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ।।21।।
जो युवा हैं, सुन्दर हैं, सुकुमार हैं, महाबली हैं, जो कमल के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह आचरण करने वाले कृष्ण मृग का चर्म धारण करने वाले हैं। जो फल और कंद का आहार लेते हैं, जो संयमी, तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, वे दशरथ पुत्र दोनों भाई राम और लक्ष्मण हमारी रक्षा करें।
शरणागत को शरण देने वाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ, राक्षस कुलों का नाश करने वाले प्रभु श्री राम हमारा कल्याण करें।
संधान किए धनुष धारण किये, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिये हुए, प्रभु श्री राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।
हमेशा तत्पर रहने वाले, कवच धारण करने वाले, हाथों में खडग, धनुष-बाण रखने वाले जो युवा हैं। वे भगवान श्री राम लक्ष्मण सहित आगे चलते हुए हमारी रक्षा करें।
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ।।22।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ।।23।।
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ।।24।।
दशरथ पुत्रों में शूरवीर श्री राम, लक्ष्मण और बालि जिनके अनुचर हैं। ककुत्स्थ राजा के वंश में जन्म लेने वाले पुरुषोत्तम कौशल्या पुत्र श्री राम पूरे रघुकूल में सबसे श्रेष्ठ हैं। जो वेदों के ज्ञाता हैं, यज्ञों के देवता हैं, पौराणिक पुरूष पात्रों में जो सबसे उत्तम हैं। जो अपना पराक्रम सिद्ध कर जानकीवल्लभ अर्थात माता सीता के पति बने। उन भगवान श्री राम के नामों का जाप नित्य श्रद्धापूर्वक करने से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इसमें कोई संदेह नहीं करना चाहिये।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ।।25।।
दूर्वादल के समान श्याम वर्णीय प्रभु श्री राम, जिनके नेत्र कमल के समान हैं जो पीले वस्त्रों को धारण करने वाले हैं उनके दिव्य नामों की स्तुति करने वाला संसार के मायाजाल से मुक्त हो जातै है।
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ।।26।।
राम और लक्ष्मण जिनके पूर्वज रघु हैं, जो सीताजी के पति हैं बहुत ही सुंदर हैं, काकुत्स्थ वंश में जिनका जन्म हुआ है, वे करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्र-भक्त, धार्मिक, राजाओं के राजा, सत्यनिष्ठ, दशरथ पुत्र, जो श्याम वर्णीय हैं जो शांति की मूरत हैं, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल के तिलक, एवं रावण के शत्रु राघव प्रभु श्री राम की मैं वंदना करता हूँ।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ।।27।।
विधाता स्वरुप श्री राम जिन्हें रामभद्र, रामचंद्र, रघुनाथ, जो माता सीता सहित समस्त जगत के स्वामी हैं उन प्रभु श्री राम को नमन है।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।28।।
इसका कुल मिलाकर तात्पर्य यही है कि हे श्री राम मुझे अपनी शरण में लें। श्री राम का नाम इसमें 16 बार आया है यह अकेला पद्यांश भी अपने आप में एक संपूर्ण मंत्र माना जाता है।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।।29।।
भगवान श्री रामचंद्र के चरणों का मन से स्मरण करते हैं, वचन से अर्थात वाणी से इनका गुणगान करते हैं, इनके चरणों में शीश झूका कर नमन करते हुए श्री रामचंद्र के चरणों की शरण लेते हैं।
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ।।30।।
श्री राम की शरण लेने के पश्चात हमारे माता, पिता, स्वामी, सखा सबकुछ श्री रामचंद्र हैं। उनके अलावा हम किसी को अन्य को नहीं जानते।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ।।31।।
इनके दक्षिण में लक्ष्मण हैं तो बांई ओर माता सीता हैं इनके सामने श्री रामभक्त हनुमान हैं। हम इन्हीं श्री रामचंद्र जी की वंदना करते हैं।
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ।।32।।
हम सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणधीर, कमलनयन, रघुवंश नायक, करुणा स्वरूप, दया के सागर, श्री राम की शरण लेते हैं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।33।।
हम शरण लेते हैं उन श्री रामदूत की जिनकी गति मन के समान और वायु से तेज हैं, जो इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। जो अति बुद्धिमान हैं, उन्हीं वानरराज वायुपुत्र वीर हनुमान की शरण लेते हैं।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ।।34।।
जिस प्रकार कोयल अपनी मधुर वाणी से कूकती है उसी प्रकार कवितामयी शाखा पर विराजमान होकर अपने शब्दों से, अपनी कविताई से श्री राम के मधुर नाम की वाणी को हम तक पंहुचाया हम उस वाल्मिकी रूपी कोयल की वंदना करते हैं।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।35।।
सर्वसुख प्रदान करने वाले और समस्त आपदाओं से दूर रखने वाले जगतप्रिय, सबसे सुंदर उन भगवान श्री रामचंद्र को बार-बार नमन करते हैं।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ।।36।।
राम नाम की गर्जन ऐसी है कि यमदूत तक निकट नहीं आते हैं। श्री राम नाम का भजन करने वाले भव सागर से तो पार हो ही जाते हैं साथ ही जीवन पर्यन्त वे सभी सुख सुविधाओं का भोग करते हुए ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते हैं।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ।।37।।
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। हम उन्हीं लक्ष्मीपति भगवान श्रीराम का भजन करते हैं। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को नमस्कार करते हैं। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। हम उन श्री रामचंद्र के दास हैं। हमारा चित सदा श्री राम के भजन में ही लीन रहे हे प्रभु हमारा उद्धार करें और भव सागर से हमें पार करें।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।38।।
भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि हे सुमुखी! श्री राम का नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम के नाम का ही स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ।
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ।।
।। श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ।।
बोलो सियावर रामचंद्र की जय।