पापों से मुक्ति पाने के लिए करें ऋषि पंचमी का व्रत

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पापों से मुक्ति पाने के लिए करें ऋषि पंचमी का व्रत

धरती पर भगवान की सबसे खूबसूरत रचना महिलाओं को माना गया है, लेकिन महिला होना कोई आसान बात नहीं है। खासतौर पर हर माह होने वाला मासिक धर्म किसी भी महिला के लिए काफी कष्टकारी होता है। ऐसे में इस प्रक्रिया के दौरान कई नियम और कायदे-कानून भी बनाए गए हैं। दरअसल हिंदू धर्म में मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान स्त्रियां रसोई में नहीं जा सकती हैं और ना ही कुछ भी पका सकती है. इसके अलावा ना तो वे मंदिर में जा सकती हैं और ना ही पूजा-पाठ कर सकती हैं, लेकिन कई बार गलती से औरतें महावारी के दौरान गलतियां कर बैठती हैं और पाप की भागी बन जाती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, महावारी के पहले दिन स्त्री चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र मानी जाती है और चौथे दिन स्नानादि के बाद शुद्ध होती है। 

 

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वहीं जाने-अनजाने राजस्वला स्त्री द्वारा किए गए पापों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी को काट माना गया है।  कहा जाता है कि यदि कोई भी स्त्री शुद्ध मन से इस व्रत को करें तो उसके सारे पाप नष्ट हो सकते हैं और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस बार पापों से मुक्ति दिलाने वाला ऋषि पंचमी व्रत 11 सितंबर 2021 को मनाया जा रहा है और हिंदू पंचांग के मुताबिक, यह पर्व हरतालिका तीज के 2 दिन बाद और गणेश चतुर्थी के अगले दिन यानि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है।

 

ऋषि पंचमी शुभ मुहुर्त 

ऋषि पंचमी- 11 सितंबर 2021

पूजा मुहुर्त- सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01 बजकर 32 मिनट तक

पंचमी तिथि प्रारंभ- रात 09 बजकर 57 मिनट (10 सितंबर 2021) से

पंचमी तिथि समाप्त- शाम 07 बजकर 37 मिनट तक (11 सितंबर 2021) तक

 

ऋषि पंचमी का महत्व

हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी को पर्व कम और व्रत ज्यादा समझा जाता है।  इस दिन को भारतीय ऋषियों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सप्तऋषि के रूप में सम्मानित 7 ऋषियों की पूजा की जाती है, जो इस प्रकार हैं- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। इन सात ऋषियों ने धरती पर पाप को खत्म करने के लिए अपने जीवन तक को त्याग दिया।

 

ऋषि पंचमी पूजन विधि

  • ऋषि पंचमी के दिन महिलाओं को प्रातः काल उठकर स्नानादि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए।
  • इस दिन पूरे घर को गाय के गोबर से लेपकर या गंगाजल का छिड़कर पवित्र कर देना चाहिए। इसके बाद सप्तऋषि और देवी अरुंधती की प्रतिमा का निर्माण करना चाहिए।
  • प्रतिमा स्थापित करने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए और उपवास का संकल्प लेना चाहिए. फिर सप्तऋषियों का पूजन हल्दी, चंदन, पुष्प, अक्षत आदि से करना चाहिए।
  • पूजन के दौरान कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।। मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • इसके बाद स्त्रियों को सप्तरऋषि की कथा को सुनना चाहिए और कथा के बाद आरती करके, प्रसाद वितरण करना चाहिए।
  • व्रतधारी स्त्रियों को जमीन में बोए हुए किसी भी अनाज को ग्रहण नहीं करना चाहिए बल्कि पसई धान के चावल का सेवन करना चाहिए। 
  • स्त्री को राजस्वला प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। विधि पूर्वक उद्यापन के लिए इस दिन सात ब्रह्माणों को भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान-दक्षिणा देना चाहिए। 

 

ऋषि पंचमी व्रत कथा

भविष्यपुराण की कथानुसार, विदर्भ देश में एक उत्तक नाम ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी सुशीला के साथ रहता था। उत्तक के एक पुत्र और पुत्री भी थी। विवाह योग्य होने पर ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह सुयोग्य वर के साथ कर दिया लेकिन कुछ दिनों बाद पुत्री के पति की अकाल मृत्यु हो गई और उत्तक की पुत्री वापस मायके लौट आई। एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी तभी उसकी मां ने देखा कि बेटी के शरीर में कीड़े उत्पन्न हो गए। अपनी कन्या की यह हालत देखकर सुशीला काफी व्यथित हो गई। वह अपने पति के पास पुत्री को लेकर गई और कहा कि हे प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति कैसे हुई? उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाया और पुर्वजन्म के बारे में देखा कि उनकी पुत्री पहले भी ब्राह्मण की बेटी थी. लेकिन राजस्वला के दौरान ब्राह्मण की पुत्री ने पूजा के बर्तन छू लिए थे और इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था जिसकी वजह से इस जन्म में कीड़े पड़े. फिर पिता के कहे अनुसार विधवा पुत्री ने इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पंचमी का व्रत किया और उसे अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।

 

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