Sabarimala Temple: क्या आप जानते हैं कि सबरिमलय मंदिर जाने से पहले भक्तों को 41 दिनों तक कड़ी साधना और नियमों का पालन करना होता है? नवंबर से जनवरी तक सबरीमाला मंदिर में मनाई जाने वाली मंडल पूजा और मकर विलक्कू महोत्सव के दौरान लाखों भक्त भगवान अय्यप्पा के दर्शन के लिए आते हैं। सबरीमाला मंदिर, जिसे भगवान अय्यप्पा का धाम कहा जाता है, दक्षिण भारत के केरल में स्थित है। यह मंदिर अपनी अनूठी परंपराओं और श्रद्धालुओं के कठिन तप के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
इस पवित्र मंदिर की यात्रा एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव है, जहां भक्त घने जंगलों और पहाड़ियों को पार करते हुए भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं। अगर आप भी इस साल सबरीमाला यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो चलिए जानते हैं इसके प्रमुख त्योहारों, नियमों और महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में। यह जानकारी आपकी यात्रा को और भी यादगार और आसान बना सकती है।
सबरीमाला (Sabarimala) में अय्यप्पा मंदिर भक्तों के लिए एक आस्था का प्रमुख केंद्र है। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इस साल सबरिमलय मंदिर के कपाट वार्षिक मंडलम-मकरविलक्कू तीर्थयात्रा सीजन के लिए 15 नवंबर 2024 से 26 दिसंबर 2024 तक खुले रहेंगे। इसके बाद, मकर विलक्कू महोत्सव (Vilakku Mahostav) 30 दिसंबर 2024 से 19 जनवरी 2025 तक मनाया जाएगा। भक्तों के दर्शन का प्रमुख दिन 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति होगा।
मंडल पूजा महोत्सव 15 नवंबर 2024 से शुरू होगा।
यह उत्सव 41 दिनों तक चलेगा।
भक्त अय्यप्पा स्वामी के दर्शन और विशेष अनुष्ठान में भाग लेंगे।
यह अवधि आत्म-अनुशासन, भक्ति और तपस्या के लिए विशेष मानी जाती है।
26 दिसंबर 2024 को मंडल पूजा महोत्सव का समापन होगा।
इस दिन भक्त 41 दिनों के व्रत और अनुशासन का समापन करते हैं।
विशेष पूजा और आरती के साथ मंदिर में अंतिम दिन का आयोजन किया जाएगा।
मकर विलक्कू महोत्सव 30 दिसंबर 2024 से शुरू होगा।
यह महोत्सव 19 जनवरी 2025 तक चलेगा।
भक्त "मकर ज्योति" के दर्शन करते हैं, जिसे भगवान अय्यप्पा का दिव्य आशीर्वाद माना जाता है।
इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते हैं।
मकर संक्रांति, 14 जनवरी 2025, मकर विलक्कू महोत्सव का मुख्य दिन होगा।
इस दिन लाखों भक्त मंदिर में दर्शन के लिए उपस्थित होते हैं।
गर्भगृह में विशेष पूजा और मकर ज्योति के दर्शन भक्तों के लिए पवित्र और लाभकारी माने जाते हैं।
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सबरिमलय मंदिर का यह आयोजन भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है, जिसमें हर साल लाखों भक्त शामिल होते हैं। साल 2024-25 के लिए मंदिर में पूजा और दर्शन के लिए खास समय तय किए गए हैं। शुक्रवार और शनिवार को भक्त सुबह 3 बजे से दर्शन कर सकते हैं। बाकि दिनों में दर्शन की अनुमति दोपहर 1 बजे से दी जाती है। इस दौरान भक्तों को पहाड़ी पर चढ़ने की अनुमति भी मिलेगी। सबरिमलय मंदिर के गर्भगृह को शाम 5 बजे निवर्तमान मेलसंथी द्वारा खोला जाएगा। सबरीमाला मंदिर के ये आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि भक्तों के लिए अय्यप्पा स्वामी के आशीर्वाद प्राप्त करने का सुनहरा अवसर भी होते हैं।
अय्यप्पा स्वामी का जन्म भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का एक रूप) के पुत्र के रूप में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान शिव मोहिनी रूप से प्रभावित हुए, जिससे अय्यप्पा का जन्म हुआ। उन्हें हरिहरपुत्र भी कहा जाता है क्योंकि वे शिव और विष्णु के संयुक्त रूप माने जाते हैं।
अय्यप्पा स्वामी (Ayyappa Swami) के बारे में मान्यता है कि उन्होंने शेरनी का दूध लाने के लिए जंगल में महिषि नामक राक्षसी का वध किया और लोगों को उसके आतंक से मुक्त किया। इसके बाद, उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया और शबरीमाला में तपस्या करने चले गए। यही वजह है कि अय्यप्पा स्वामी को शास्ता और मणिकांता नामों से भी पुकारा जाता है। सबरीमाला मंदिर में अय्यप्पा स्वामी के दर्शन करना भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर न केवल उनकी शक्ति और वैराग्य का प्रतीक है, बल्कि भक्तों को एकता और शांति का संदेश भी देता है।
सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) केरल की पश्चिमी घाटी की सह्याद्रि पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह मंदिर पंपा नदी के किनारे बसा है और यहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों का सफर करना पड़ता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियां पार करनी होती हैं। इन सीढ़ियों का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। पहली पांच सीढ़ियां मानव की इंद्रियों का प्रतीक हैं, आठ सीढ़ियां भावनाओं का, तीन गुणों का, और अंतिम दो ज्ञान और अज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं।
सबरिमलय मंदिर में आने वाले श्रद्धालु सिर पर नैवेद्य (चढ़ावे की सामग्री) लेकर पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति व्रत रखकर, तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर यहां आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को 41 दिनों के कठिन व्रत का पालन करना होता है। यह प्रक्रिया श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है, जो भक्त और भगवान के बीच के संबंध को और भी गहरा बनाती है।
मकर विलक्कू महोत्सव सबरीमाला मंदिर का सबसे प्रमुख आयोजन है। यह महोत्सव 30 दिसंबर 2024 से शुरू होकर 19 जनवरी 2025 तक चलेगा। मकर संक्रांति की रात यहां पहाड़ी पर एक दिव्य ज्योति दिखाई देती है, जिसे "मकर ज्योति" कहा जाता है। भक्त इस ज्योति को भगवान का चमत्कार मानते हैं और इसके दर्शन के लिए दुनियाभर से आते हैं।
सबरिमलय मंदिर की मकर ज्योति के दर्शन के दौरान भक्तों को एक अद्भुत अनुभूति होती है। इस ज्योति के साथ एक विशेष शोर भी सुनाई देता है, जिसे "देव ज्योति" का आह्वान माना जाता है। यह आयोजन भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव का माध्यम है। मकर विलक्कू के दौरान पंडालम राजमहल से अय्यप्पा स्वामी के आभूषणों को लेकर एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जो तीन दिनों में सबरीमाला तक पहुंचती है।