नव वर्ष 2020 की शुरूआत में (24 जनवरी 2020) न्याय के देवता शनि करीब 30 साल बाद अपनी स्वराशि में परिवर्तन कर रहे हैं। न्यायकारक शनि 2020 में धनु राशि से अपनी स्वराशि मकर में माघ मास की अमावस्या पर 24 जनवरी को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश करने जा रहे हैं। स्वराशि में शनि का परिभ्रमण 15 मार्च 2023 तक रहेगा। वहीं सभी ग्रहों में शनि गोचर की अवधि सबसे अधिक होती है क्योंकि यह ग्रह लगभग 2.5 साल में राशि परिवर्तन करता है। ऐसे में शनि की साढ़े साती धनु, मकर, कुंभ और शनि की ढैय्या मिथुन और तुला राशि पर शुरू हो रही है। ऐसे में इन जातकों को शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए पूजा-अर्चना करना उचित रहता है। तो चलिए आज हम आपको भारत के कुछ ऐसे शनि मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर जाकर न्याय के देवता शनि की पूजा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
यूपी में ब्रजमंडल के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर कोसी से 6 किमी दूर और नंद गांव के पास है। मान्यता है कि जो यहां आकर शनि देव के दर्शन करता है और परिक्रमा लगाता है, उसको शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि नहीं सताते हैं। पौराणिक कथानुसार, द्वापरयुग में शनिदेव ने श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए कठोर तप किया था और शनि के तप से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें कोयल के रूप में दर्शन दिए थे। इसलिए इस स्थान को कोकिलावन के नाम से जाना जाता है।
करीब 2 हजार साल पुराना देश का पहला नवग्रह शनि मंदिर मप्र के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। इस प्राचीन मंदिर की स्थापना उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने की थी। खासियत यह है कि इस मंदिर में शिव के रूप में शनिदेव विराजमान हैं और इसके साथ अन्य शनि प्रतिमा भी स्थापित है, जिसे ढैय्या शनि कहते हैं। मान्यता है कि जिन लोगों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव होता है वे ढैय्या शनि पर तेल चढ़ाते हैं तो उनको शनिदेव सताते नही हैं।
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में सूर्यपुत्र शनिदेव का मंदिर स्थित है, जिसे शनि शिंगणापुर कहते हैं। पौराणिक कथानुसार, एक समय शिंगणापुर में बाढ़ आ गई थी और पूरा गांव डूब गया था। बाढ़ के पानी में एक अजीबोगरीब पंत्थर बहकर चला आया था। जब बाढ़ समाप्त हो गई तो वह पत्थर पेड़ पर जाकर अटक गया। गांव के एक शख्स ने पत्थर को पेड़ से नीचे गिराने की कोशिश की तो पत्थर से खून निकलने लगा। शख्स यह देखकर घबरा गया उसने पूरी आपबीती गांववालों को सुनाई। गांववालों ने उस पत्थर को पेड़ से नीचे गिराने की बहुत कोशिश की लेकिन सभी असफल रहे। उसी रात्रि एक गांववाले के सपने में शनिदेव आए और उन्होंने कहा कि मेरे इस पत्थर की स्थापना करवाओ और इस पत्थर को मामा-भांजे ही उठा सकते हैं। फिर अगले दिन गांव में मामा-भांजे के रिश्ते वाले लोगों ने पत्थर को उठाकर रख दिया। इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर में कोई शनि प्रतिमा नहीं है बल्कि वह पत्थररूप में स्थापित हैं। कहा जाता है कि इस गांव में बैंक या किसी घर में चोरी नहीं होती है क्योंकि यहां शनिदेव सबकी सुरक्षा करते हैं और चोरी करने वाला कोई भी व्यक्ति गांव से बाहर नहीं जा पाता है और उसे खून की उल्टियां होने लगती है।
मप्र के इंदौर के जूनी इंदौर में करीब 350 साल पुराना शनिदेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर में महिलाएं शनिदेव को तेल अर्पित करती हैं और यहां पर शनिदेव का 16 ऋंगार किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि करीब 300 साल पहले मंदिर के स्थान पर 20 फुट ऊंचा टीला हुआ करता था। जहां पंडित गोपालदास तिवारी को सपने में शनिदेव ने दर्शन दिए थे और उन्हें टीले की खुदवाई कराने का आदेश दिया था। गोपालदास दृष्टिहीन थे लेकिन उनके कहने पर जब खुदाई की गई तो शनिदेव की प्रतिमा निकली और गोपालदास को दिखाई भी देने लगा।
मप्र के ग्वालियर से 18 किमी दूर मुरैना जिले में शनिश्चरा मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से संबंधित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर में शनि को तेल अर्पित करने के बाद उन्हें गले लगाया जाता है। पौराणिक कथानुसार, रामायण काल में लंका के राजा रावण ने शनिदेव को भी कैद कर रखा था। जब बजरंगबली माता सीता की खोज के लिए लंका आए थे, तो शनि ने उनसे उन्हें आजाद करने की विनती की थी और हनुमान ने उन्हें लंका से कहीं दूर फेंक दिया था ताकि वह सुरक्षित जगह पर जा सकें। ऐसे में शनिदेव इस स्थान पर ही आकर गिरे थे तब से इस क्षेत्र को शनिक्षेत्र कहा जाता है। जहां पर शनि गिरे थे वहां आज भी गड्ढा मौजूद है और शनि शिला के रूप में विराजित हैं।
तमिलनाडु के तिरुनल्लर में कावेरी नदी के दक्षिण किराने पर शनिदेव का मंदिर एक छोटे से गांव में स्थित है। यह मंदिर तमिलनाडु के नवग्रह मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पर शनिदेव के साथ भगवान शिव का मंदिर भी स्थापित है। मान्यता है कि जिन लोगों पर शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव होता है, वे इस मंदिर में दर्शन करके कलयुग के देवता को प्रसन्न कर सकते हैं।
गुजरात के भावनगर के पास सारंगपुर में हनुमानजी का मंदिर स्थित हैं। इस मंदिर को सारंगपुर कष्टभंजन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें हनुमान जी के साथ शनिदेव स्त्रीरूप में विराजमान हैं। पौराणिक कथानुसार, जब शनिदेव का प्रकोप काफी बढ़ गया था तब धरती पर जनजीवन काफी अस्तव्यस्त हो गया था। शनि के प्रकोप से बचने के लिए भक्तों ने बजरंगबली की पूजा की। हनुमान जी शनिदेव से नाराज हो गए औऱ उन्हें दंड देने का निश्चय किया। दूसरी ओर जब शनिदेव को पता चला कि हनुमान जी उन्हें दंड देने आ रहे हैं तो वह उनसे बचने का उपाय ढूंढने लगे। तभी उन्हें एक विचार आया कि महावीर जी तो ब्रह्मचारी हैं और वह महिलाओं पर हाथ नहीं उठाते हैं। इसलिए हनुमान जी के गुस्से से बचने के लिए शनिदेव ने स्त्रीरूप धारण कर लिया और उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांग ली। तब से इस मंदिर में शनिदेव को हनुमानजी के चरणों में महिला रूप में पूजा जाता है।