बचपन से लेकर मृत्यु तक यदि किसी देवता का जीवन चमत्कारों से भरा है तो वो हैं स्वंय भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण जी। जो कभी सखा तो कभी प्रेमी कभी रक्षक तो कभी मार्गदर्शक बन कर अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करते हैं। जब भी जिस भी समय भक्त ने उन्हें पुकारा वे तुरंत उसकी रक्षा करने उसकी लाज रखने पहुंच जाते हैं। आइये जानते हैं 16 कलाओं में निपुण भगवान श्री कृष्ण के बारे में वे बातें जब भक्तों बुलावे पर वे दौड़े चले आये।
भगवान श्री कृष्ण की लीला के किस्से तो अनेक हैं जिनका वर्णन करने लगें तो कई ग्रंथ भी लिखे जा सकते हैं लेकिन अपने इस लेख में हम जिक्र करेंगें महाभारत काल से लेकर आधुनिक युग तक के कुछ प्रचलित किस्सों का जिनमें भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्तों की लाज रखी। एस्ट्रोयोगी पर ज्योतिषीय परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें
वैसे तो अपने बचपन में ही उन्होंनें कागासुर जैसे अनेक राक्षस, राक्षससियों का वध किया था और माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड दिखाने जैसे अनेक चमत्कार भी उन्होंनें बाल्याकाल में ही किये। गोपालक के रुप में भी गऊओं समेत गोपालकों को भी कई बार संकट से उभारा था कालिया नाग पर नृत्य कर सबको हैरान कर दिया था। लेकिन इंद्र देवता के क्रोध से समस्त गोकुल वासियों को बचाना भी एक महत्वपूर्ण घटना थी। हुआ यूं कि गोकुल वासी इंद्र देवता के कोप से बचने के लिये डर के मारे उनकी पूजा करते थे लेकिन भगवान श्री कृष्ण के कहने पर एक बार उन्होंनें इंद्र देवता की पूजा नहीं की। इंद्र देवता को अपनी शक्तियों का अंहकार हो गया था और वे गोकुल वासियों पर नाराज हो गये और जोरों से बारिश होने लगी गोकुलवासी श्री कृष्ण की शरण में आये तो श्री कृष्ण ने अपनी तर्जनी पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर समस्त गोकुल वासियों की रक्षा की और इंद्र देवता का अंहकार भी चकनाचूर हुआ। बाद में जब उनका अंहकार समाप्त हुआ तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से अपने कृत्य पर क्षमा भी मांगी।
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जब भी कहीं दोस्ती की मिसाल दी जाती है तो श्री कृष्ण और सुदामा का नाम जरुर लिया जाता है। सुदामा बहुत ही गरीबी में जीवन जी रहे होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण द्वाराकाधीश बन जाते हैं। सुदामा की पत्नी उन पर दबाव डालती हैं और अपने सखा श्री कृष्ण के पास उन्हें सहायता करने के लिये भेजती हैं। सुदामा थोड़े से कच्चे चावलों को पोटली में लेकर चल तो पड़ते हैं लेकिन उन्हें यही शंका रहती है कि वे इतने सालों बाद अपने सखा से मिलेंगें वो भी इस हाल में ऐसे में वह कैसे उनसे मिलेगा वह राजा और मैं एक भिखारी कैसे उनके सामने जाऊगां और कौन उन तक मुझे पंहुचने देगा। खैर भगवान श्री कृष्ण अपने मित्र के आने की खबर सुनते ही दौड़कर द्वार पर आते हैं अपने हाथों से सुदामा के पैर धोते हैं और प्रेमपूर्वक सुदामा से पोटली छिनकर कच्चे चावलों को खाते हैं। सुदामा तो उनसे कुछ नहीं मांगते लेकिन जैसे ही वे वापस अपने घर पंहुचते हैं तो सारा नजारा बदला हुआ नजर आता है। उन्हें समझ आता है कि बिना मांगे ही केशव उनकी इच्छा को भांप गये थे और अपनी लीला से उन्होंने रातों रात यह मंजर बदल दिया। इस प्रकार विपदा में फंसे अपने मित्र सुदामा को श्री कृष्ण ने सहारा दिया।
वैसे तो भगवान श्री कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन कहते थे और द्रोपदी भी उन्हें अपना भाई, अपना सखा, अपना ईष्ट देव मानती थीं। जब भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन आदि समस्त पांडवों की उपस्थिति में दुर्योधन ने दुशासन को चीरहरण करने की कही तो द्रोपदी की पुकार को सभा में उपस्थित कोई भी गुरु, कोई भी बुजूर्ग यहां तक की पांडव भी ऐसा करने से उन्हें रोक नहीं पा रहे थे ऐसे में द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण को पुकारा और उन्होंने चीर बढ़ाकर उनकी रक्षा की।
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उपर की कथाएं तो फिर भी पौराणिक ग्रंथों की हैं लेकिन कलियुग में भी भगवान श्री कृष्ण की लीला देखने को मिलती है। भगवान श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मानने वाली मीरा जिन्होंने बाद में संत रविदास को भी अपना गुरु मनाया, उनके पदों में भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और समर्पण की झलक देखने को मिलती है। मीरा ने अपने पदों में ऐसे अनेक उदाहरण पेश किये हैं जिनसे भगवान श्री कृष्ण की लीला दिखाई देती है। चाहे वह राणा द्वारा मीरा को मारने के लिये भेजा गया जहर का प्याला हो जो अमृत बन जाता है, कांटो की सेज फूलों की बन जाती है तो सांप भी फूलों का हार बन जाता है।
कुल मिलाकर ये तमाम कहानियां यही बयां करती हैं कि यदि सच्चे मन से कोई भी भक्त यदि भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहता है तो जरुरत पड़ने पर जब भक्त की इज्जत पर बन आये या फिर समाज जब भक्त के जरिये उसके भगवान की परीक्षा लेना चाहता है तब भगवान श्री कृष्ण किसी न किसी रुप में अपने भक्त की लाज रखने जरुर आते हैं। उन्होंने तो कहा भी है
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥”
✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी